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Alluri Sitarama Death Anniversary : जानें इनके अनसुने किस्से

अल्लूरी सीताराम राजू (अंग्रेज़ी: Alluri Sitarama Raju; जन्म: 15 मई, 1897, विशाखापट्टनम; शहादत- 7 मई, 1924) हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक थे. उन्हें औपचारिक शिक्षा बहुत कम मिल पाई थी. अपने एक संबंधी के संपर्क से वे अध्यात्म की ओर आकृष्ट हुए तथा 18 साल की उम्र में ही साधु बन गए. सन 1920 में अल्लूरी सीताराम पर महात्मा गांधी के विचारों का बहुत असर पड़ा और उन्होंने आदिवासियों को मद्यपान छोड़ने तथा अपने टकराव पंचायतों में हल करने की राय दी. किंतु जब एक साल में स्वराज्य प्राप्ति का गांधी जी का स्वप्न साकार नहीं हुआ तो सीताराम राजू ने अपने अनुयायी आदिवासियों की सहायता से अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र उपद्रव करके स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के कोशिश आंरभ कर दिए.

जन्म तथा परिवार

अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 ई को पांडुरंगी गाँव, विशाखापट्टनम, आन्ध्र प्रदेश में हुआ था. वह क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते थे. उनकी माता का नाम सूर्यनारायणाम्मा और पिता का नाम वेक्टराम राजू था. उन्हें अपने पिता के प्यार से बहुत शीघ्र ही वंचित हो जाना पड़ा. सीताराम राजू की अल्पायु में ही पिता की मौत हो गयी, जिस कारण वे मुनासिब शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके. बाद में वे अपने परिवार के साथ टुनी रहने आ गये. यहीं से वे दो बार तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान कर चुके थे.[1]

क्रांतिकारियों से भेंट

पहली तीर्थयात्रा के समय वे हिमालय की ओर गये. वहाँ उनकी मुलाक़ात महान् क्रांतिकारी पृथ्वीसिंह आज़ाद से हुई. इसी मुलाक़ात के दौरान इनको चटगाँव के एक क्रांतिकारी संगठन का पता चला, जो गुप्त रूप से कार्य करता था. सन 1919-1920 के दौरान साधु-सन्न्यासियों के बड़े-बड़े समूह लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए और संघर्ष के लिए पूरे राष्ट्र में भ्रमण कर रहे थे. इसी अवसर का फायदा उठाते हुए सीताराम राजू ने भी मुम्बई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, असम, बंगाल और नेपाल तक की यात्रा की. इसी दौरान उन्होंने घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, योग, ज्योतिष और प्राचीन शास्त्रों का अभ्यास और शोध भी किया. वे काली माँ के उपासक थे.

संन्यासी जीवन

अपनी तीर्थयात्रा से वापस आने के बाद सीताराम राजू कृष्णदेवीपेट में आश्रम बनाकर ध्यान और साधना आदि में लग गए. उन्होंने संन्यासी जीवन जीने का निश्चय कर लिया था. दूसरी बार उनकी तीर्थयात्रा का प्रयाण नासिक की ओर था, जो उन्होंने पैदल ही पूरी की थी. यह वह समय था, जब पूरे हिंदुस्तान में ‘असहयोग आन्दोलन’ चल रहा था. आन्ध्र प्रदेश में भी यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा तक पहुँच गया था. इसी आन्दोलन को गति देने के लिए सीताराम राजू ने पंचायतों की स्थापना की और क्षेत्रीय विवादों को आपस में सुलझाने की आरंभ की. सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज़ शासन के डर को निकाल फेंका और उन्हें ‘असहयोग आन्दोलन’ में भाग लेने को प्रेरित किया.[1]

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

कुछ समय बाद सीताराम राजू ने गांधी जी के विचारों को त्याग दिया और सेना सगठन की स्थापना की. उन्होंने सम्पूर्ण रम्पा क्षेत्र को क्रांतिकारी आन्दोलन का केंद्र बना लिया. मालाबार का पर्वतीय क्षेत्र छापामार युद्ध के लिए अनुकूल था. इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय लोगों का पूरा योगदान भी उन्हें मिल रहा था. आन्दोलन के लिए प्राण तक न्यौछावर करने वाले लोग उनके साथ थे. इसीलिए आन्दोलन को गति देने के लिए गुदेम में गाम मल्लू डोरे और गाम गौतम डोरे बंधुओ को लेफ्टिनेट बनाया गया. आन्दोलन को और तेज़ करने के लिए उन्हें आधुनिक शस्त्र की जरूरत थी. ब्रिटिश सैनिकों के सामने धनुष-बाण लेकर अधिक देर तक टिके रहना सरल नहीं था. इस बात को सीताराम राजू भली-भाँति समझते थे. यही कारण था कि उन्होंने डाका डालना प्रारम्भ किया. इससे मिलने वाले धन से शस्त्रों को ख़रीद कर उन्होंने पुलिस स्टेशनों पर धावा करना प्रारम्भ किया. 22 अगस्त, 1922 को उन्होंने पहला धावा चिंतापल्ली में किया. अपने 300 सैनिकों के साथ शस्त्रों को लूटा. उसके बाद कृष्णदेवीपेट के थाने पर धावा कर किया और विरयया डोरा को मुक्त करवाया.

ब्रिटिश गवर्नमेंट की चिंता

अल्लूरी सीताराम राजू की बढ़ती गतिविधियों से अंग्रेज़ गवर्नमेंट सावधान हो गयी. ब्रिटिश गवर्नमेंट जान चुकी थी की अल्लूरी राजू कोई सामान्य डाकू नहीं है. वे संगठित सेना शक्ति के बल पर अंग्रेज़ों को अपने प्रदेश से बाहर निकाल फेंकना चाहते है. सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए गवर्नमेंट ने स्कार्ट और आर्थर नाम के दो ऑफिसरों को इस काम पर लगा दिया. सीताराम राजू ने ओजेरी गाँव के पास अपने 80 अनुयायियों के साथ मिलकर दोनों अंग्रेज़ ऑफिसरों को मार गिराया. इस एनकाउंटर में ब्रिटिशों के अनेक आधुनिक शस्त्र भी उन्हें मिल गए. इस विजय से उत्साहित सीताराम राजू ने अंग्रेज़ों को आन्ध्र प्रदेश छोड़ने की धमकी वाले इश्तहार पूरे क्षेत्र में लगवाये. इससे अंग्रेज़ गवर्नमेंट और भी अधिक सजग हो गई. उसने सीताराम राजू को पकड़वाने वाले के लिए दस हज़ार रुपये पुरस्कार की घोषणा करवा दी. उनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए लाखों रुपया खर्च किया गया. मार्शल लॉ लागू न होते हुए भी उसी तरह सैनिक बन्दोबस्त किया गया. फिर भी सीताराम राजू अपने बलबूते पर गवर्नमेंट की इस कार्रवाई का प्रत्युत्तर देते रहे. ब्रिटिश गवर्नमेंट लोगों में फुट डालने का काम गवर्नमेंट करती थी, लेकिन अल्लूरी राजू की सेना में लोगों के भर्ती होने का सिलसिला जारी रहा.[1]

पुलिस से मुठभेड़

ब्रिटिश गवर्नमेंट पर सीताराम राजू के हमले लगातार जारी थे. उन्होंने छोड़ावरन, रामावरन् आदि ठिकानों पर हमले किए. उनके जासूसों का रैकेट सक्षम था, जिससे सरकारी योजना का पता पहले ही लग जाता था. उनकी चतुराई का पता इस बात से लग जाता है की जब पृथ्वीसिंह आज़ाद राजमहेन्द्री कारावास में क़ैद थे, तब सीताराम राजू ने उन्हें आज़ाद कराने का प्रण किया. उनकी ताकत और संकल्प से अंग्रेज़ गवर्नमेंट परिचित थी. इसलिए उसने इर्द-गिर्द के जेलों से पुलिस बल मंगवाकर राजमहेंद्री कारावास की सुरक्षा के लिए तैनात किया. इधर सीताराम राजू ने अपने सैनिकों को भिन्न-भिन्न जेलों पर एक साथ धावा करने की आज्ञा दी. इससे लाभ यह हुआ की उनके भंडार में शस्त्रों की और वृद्धि हो गयी. उनके इन बढ़ते हुए कदमों को रोकने के लिए गवर्नमेंट ने ‘असम रायफल्स’ नाम से एक सेना का संगठन किया. जनवरी से लेकर अप्रैल तक यह सेना बीहड़ों और जंगलों में सीताराम राजू को खोजती रही. मई 1924 में अंग्रेज़ गवर्नमेंट उन तक पहुँच गई. ‘किरब्बू’ नामक जगह पर दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ.

शहादत

अल्लूरी राजू विद्रोही संगठन के नेता थे और ‘असम रायफल्स’ का नेतृत्त्व उपेन्द्र पटनायक कर रहे थे. दोनों ओर की सेना के अनेक सैनिक मारे जा चुके थे. अगले दिन 7 मई को पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक सीताराम राजू को पकड लिया गया. उस समय सीताराम राजू के सैनिकों की संख्या कम थी फिर भी ‘गोरती’ नामक एक सेना अधिकारी ने सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियाँ बरसाईं. अल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान के बाद भी अंग्रेज़ गवर्नमेंट को विद्रोही अभियानों से मुक्ति नहीं मिली. इस प्रकार लगभग दो सालों तक ब्रिटिश सत्ता की नींद हराम करने वाला यह वीर सिपाही शहीद हो गया

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