जानें, मथुरा और वृंदावन में कितने प्रकार की खेली जाती है होली
मथुरा की होली देश-विदेश में मशहूर है। मथुरा की होली को ब्रज की होली के नाम से जाना जाता है। मथुरा और वृन्दावन में यह त्योहार भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है और सभी के नाम भी गौरतलब है, जैसे बरसाना और नंदगांव में लठमार होली, जहां चंचल ताल पैदा करने के लिए लाठियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिस पर युवा पुरुष और महिलाएं नृत्य करते हैं। गोवर्धन पहाड़ी के पास गुलाल कुंड में फूलों वाली होली, जिसके दौरान रास लीला की जाती है, और होली खेली जाती है।
फाग का उत्सव
होलाष्टक के पहले दिन फाल्गुन अष्टमी को बरसाना में गोपियां नंदगांव में फाग का उत्सव का निमंत्रण लेकर आती हैं। उस दिन शाम को राधारानी के मंदिर में फाग निमंत्रण की स्वीकृति का संदेश मिलने पर लड्डू की होली खेली जाती है। फिर फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाती है, जिसमें नंदगांव के मर्दों को लाठियां पड़ती है और फिर रंगों से स्वागत भी किया जाता है। आइए जानते है मथुरा में होली के कार्यक्रम की पूरी लिस्ट
देखें कार्यक्रम की पूरी लिस्ट
- 17 मार्च 2024 दिन रविवार- बरसाना के राधा रानी मंदिर में फाग आमंत्रण महोत्सव एवं लड्डू होली
- 18 मार्च 2024 दिन सोमवार- बरसाना के राधा रानी मंदिर में लट्ठमार होली
- 19 मार्च 2024 दिन मंगलवार- लट्ठमार होली नंदगांव
- 20 मार्च 2024 दिन बुधवार- फूलवाली होली बांके बिहारी वृंदावन
- 20 मार्च 2024 दिन गुरुवार- कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में होली
- 21 मार्च 2024 दिन शुक्रवार- गोकुल में छड़ी मार होली
- 23 मार्च 2024 दिन शनिवार- राधा गोपीनाथ मंदिर वृन्दावन में विधवा स्त्रियों द्वारा खेली जाने वाली होली
- 24 मार्च 2024 दिन रविवार- होलिका दहन और बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली
- 25 मार्च 2024 दिन सोमवार- रंग वाली होली मथुरा-वृंदावन
- 26 मार्च 2024 दिन मंगलवार- बलदेव में दाऊजी मंदिर पर हुरंगा होली।
फूलों की होली क्यों खेली जाती है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, ईश्वर श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा रानी उनसे नाराज थीं। क्योंकि श्रीकृष्ण लंबे समय से उनसे नहीं मिले थे। श्रीकृष्ण के अनुपस्थिति के कारण फूल और मवेशी मरने लगे थे, इस बात की जानकारी होने पर श्रीकृष्ण तुरंत मथुरा आए। जिस दिन वे मथुरा आए उस दिन फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि थी। श्रीकृष्ण के वापस मथुरा आने से राधा रानी खुश हो गई और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। नाराज राधा रानी को मनाने के लिए कृष्ण ने खिल रहे एक फूल को तोड़कर राधा रानी को छेड़ने के लिए उन पर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया। यह देखकर वहां पर उपस्थित गोपियों ने भी एक-दूसरे पर फूल बरसाने प्रारम्भ कर दिए। तभी से इस दिन फूलों वाली होली खेलने की परंपरा प्रारम्भ हो गई।
क्यों खेली जाती है लट्ठमार होली
लट्ठमार होली हिंदुस्तान का एक प्रमुख त्योहार है। यह बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से मनाया जाता है। लट्ठमार होली हर वर्ष होली के त्योहार के समय बरसाना और नंदगांव में खेला जाता है, इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए पहुंचते हैं। यह त्योहार लगभग एक हफ्ते तक चलता है और रंग पंचमी के दिन खत्म हो जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है, इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके उल्टा बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं।