काशी में खेली जाती है चिता-भस्म की अनोखी होली, ये है यहाँ की पौराणिक मान्यता
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में देवस्थान और महाश्मसान का महत्व एक जैसा है। काशी नगरी में जन्म और मौत दोनों मंगल है। ऐसी अलबेली अविनाशी काशी में खेली जाती है। हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका पर चिता भस्म की होली होती है। रंगभरी एकादशी के दिन हरिश्चंद्र घाट के श्मशान पर चिता की राख से होली खेलकर काशी में चिता-भस्म की होली की आरंभ हो जाती है, इसी दिन से बनारस में रंग-गुलाल खेलने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है जो लगातार छह दिनों तक चलता है, इस साल रंगभरी एकादशी 20 मार्च दिन बुधवार को है। आइए जानते है ज्योतिषाचार्य डॉ श्रीपति त्रिपाठी से काशी में भस्म की अनोखी होली खेलने की धार्मिक मान्यता और विधान क्या है…
पौराणिक मान्यता
काशी में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने और उत्सव मनाने के लिए भूत-प्रेत, पिशाच, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, सन्यासी, अघोरी, कपालिक, शैव-शाक्त सब आते हैं। महादेव शिव अपने ससुराल पक्ष के अनुरोध पर अपने गणों को जब माता पार्वती का गौना लेने जाते हैं तो बाहर ही रोक देते हैं। क्योंकि, जो हाल महाशिवरात्रि पर शिव के शादी में हुआ था, वहीं तानाशाही दोबारा पैदा न हो जाए, इसलिए अगले दिन मिलने का वादा करके सबको महाश्मशान बुला लेते है, जिनको गौना में बुलाने पर विद्रोह तय था।
जलती चिताओं की राख से होने खेलने का विधान
रंगभरी एकादशी के दिन संत से लेकर सन्यासी तक चिता भस्म को विभूति मानकर माथे पर रमाए भांग-बूटी छाने होली खेलते हैं। काशी की प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराएं निराली हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ईश्वर शिव के स्वरूप बाबा मशान नाथ की पूजा कर महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर उनके गण जलती चिताओं के बीच गुलाल की स्थान चिता-भस्म की राख से होली खेलते हैं। हर साल काशी मोक्षदायिनी सेवा समिति द्वारा बाबा कीनाराम स्थल रवींद्रपुरी से बाबा मसान नाथ की परंपरागत ऐतिहासिक शोभायात्रा निकाली जाती है। मणिकर्णिका पर जहां अनवरत चिताएं जलती रहती हैं वहां पारम्परिक चिता भस्म की होली खेलने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से साधक और शिव भक्त आते हैं।
काशी में महादेव स्वयं देते हैं तारक मंत्र
धार्मिक मान्यता है कि, आज भी महाश्मशान मणिकर्णिका पर ईश्वर शिव के स्वरुप बाबा मशाननाथ की पूजा कर श्मशान घाट पर चिता भस्म से उनके गण होली खेलते हैं। शैव-शाक्त, अघोरी से लेकर अनेक महादेव के भक्त-गण इस अवसर का साक्षी बनते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि काशी मोक्ष की नगरी है और दूसरी मान्यता यह भी है कि यहां ईश्वर शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं। यहां पर मृत्यु भी उत्सव है और होली पर चिता की भस्म को उनके गण अबीर और गुलाल की भांति एक दूसरे पर फेंककर सुख-समृद्धि-वैभव संग शिव की कृपा पाने का उपक्रम भी करते हैं।
बनारस की होली में घुला है अड़भंगीपन
बनारस की होली का मिजाज ही अड़भंगी है। दुनिया का इकलौता शहर जहां अबीर, गुलाल के अतिरिक्त धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली जाती है। श्मशान घाट से लेकर गलियों तक होली के हुड़दंग का हर रंग अद्भुत होता है। महादेव की नगरी काशी की होली भी अड़भंगी शिव की तरह ही निराली है। बता दें कि होली बनारस और बिहार के गया में बुढ़वा मंगल तक चलता है। होली के बाद आने वाले मंगलवार को काशीवासी बुढ़वा मंगल या वृद्ध अंगारक पर्व भी कहते हैं। काशी में होली जहां युवाओं के जोश का त्योहार है तो बुढ़वा मंगल में बुजुर्गों का उत्साह भी दिखाई पड़ता है।