लेटैस्ट न्यूज़

Varuthini Ekadashi 2024: इस खास दिन पर भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की करें विधिवत पूजा

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों की कमी नहीं है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है इस दिन ईश्वर विष्णु की साधना आराधना की जाती है धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एकादशी की तिथि जगत के पालनहार ईश्वर विष्णु की पूजा को समर्पित होती है अभी वैशाख का महीना चल रहा है और इस माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा.

जो कि इस बार 4 मई को पड़ रहा है इस खास दिन पर ईश्वर विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की वकायदा पूजा और व्रत करने से जीवन में खुशियों का आगमन होता है लेकिन इसी के साथ ही यदि वरुथिनी एकादशी के दिन पूजा पाठ के समय विष्णु चालीसा का पाठ किया जाए तो सारे कष्टों का निवारण हो जाता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं विष्णु चालीसा पाठ.

 

..विष्णु चालीसा का पाठ..

”दोहा”

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय .

कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

नमो विष्णु ईश्वर खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी .

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, आसान स्वभाव मोहनी मूरत .

तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे .

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन .

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, गुनाह मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण .

करत अनेक रूप प्रभु धारण, सिर्फ़ आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा .

भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया .

धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

 

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया .

देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया .

शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर व्यवस्था उन्हें ढुढवाया .

मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई .

हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी .

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी .

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे .

गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे .

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन .

जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण .

करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भयंकर

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु सरेंडर .

सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई .

पाप गुनाह संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ .

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

॥ इति श्री विष्णु चालीसा

 

Related Articles

Back to top button