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कांग्रेस अदालत के अलग-अलग फैसलों का अध्ययन कर बाद में देगी विस्तृत प्रतिक्रिया :जयराम रमेश

नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (आईएएनएस) समलैंगिक शादी मुद्दे में उच्चतम न्यायालय के चार निर्णय दिए जाने के बाद वरिष्ठ कांग्रेस पार्टी नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को बोला कि कांग्रेस पार्टी न्यायालय के भिन्न-भिन्न फैसलों का शोध कर रही है, और बाद में विस्तृत प्रतिक्रिया देगी

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, समलैंगिक शादी और इससे संबंधित मुद्दों पर हम आज उच्चतम न्यायालय के भिन्न-भिन्न और बंटे हुए फ़ैसलों का शोध कर रहे हैं इस पर बाद में हम एक विस्तृत प्रतिक्रिया देंगे

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी हमेशा से हमारे सभी नागरिकों की स्वतंत्रता, इच्छा, स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़ी है हम, एक समावेशी पार्टी के रूप में, बिना किसी भेदभाव से भरे प्रक्रियाओं- न्यायिक, सामाजिक और राजनीतिक- में दृढ़ता से विश्वास करते हैं

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक शादी को कोई कानूनी स्वीकृति देने से इनकार कर दिया है

संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे, ने बोला कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह का अयोग्य अधिकार नहीं है चार निर्णय क्रमश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा द्वारा लिखे गए थे

संवैधानिक पीठ के पांच न्यायाधीशों में से 3 न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा द्वारा दिए गए बहुमत के निर्णय ने बोला कि समान-लिंग वाले जोड़ों के बीच नागरिक संबंधों को कानून के अनुसार मान्यता नहीं दी गई है, और वे बच्चों को गोद लेने के अधिकार का दावा भी नहीं कर सकते

दो भिन्न-भिन्न अल्पमत निर्णयों में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल ने निर्णय सुनाया कि समान-लिंग वाले जोड़े अपने संबंधों को नागरिक संघ के रूप में मान्यता देने के हकदार हैं और परिणामी लाभों का दावा कर सकते हैं

दोनों न्यायाधीशों ने माना कि ऐसे जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है और इसे सक्षम करने के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के नियमों को रद्द कर दिया न्यायालय ने केंद्र से बोला कि वह समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों और सामाजिक अधिकारों को तय करने के लिए कदम उठाने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करे

सुप्रीम न्यायालय ने बोला कि अदालतें कानून नहीं बना सकतीं, केवल उसकी व्याख्या कर सकती हैं इसने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि विशेष शादी अधिनियम (एसएमए) में, जहां भी ‘पति’ और ‘पत्नी’ का इस्तेमाल किया जाता है, वहां ‘पति/पत्नी’ का इस्तेमाल करके इसे लिंग तटस्थ बनाया जा सकता है, और ‘पुरुष’ और ‘महिला’ को ‘व्यक्ति’ द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए

 

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