अंतर्राष्ट्रीय

एक साथ जुटेंगे भारत और नेपाल के संस्कृत विद्वान

 नेपाल और हिंदुस्तान के संस्कृत भाषा के विद्वान अब अंतर्राष्ट्रीय मंच से प्राचीन भाषा का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाने जा रहे हैं. दोनों राष्ट्रों के संस्कृत विद्वान एक साथ मिलकर संस्कृत भाषा के महात्मय और ज्ञान से दुनिया को अवगत कराएंगे. दोनों देशों के संस्कृत विद्वानों को एक साझा मंच प्रदान करने और उनके बीच ज्ञान, अनुभव और अध्ययन निष्कर्षों को साझा करने की सुविधा प्रदान करने के लिए तीन-दिवसीय ‘‘नेपाल-भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन’’ बुधवार को यहां प्रारम्भ हो चुका है.

आयोजकों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य संस्कृत में अंतरराष्ट्रीय रुचि पर चर्चा करना और दोनों राष्ट्रों के सांस्कृतिक और शिक्षा क्षेत्रों पर संस्कृत भाषा के प्रभावों का पता लगाना है. ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री शक्ति बस्नेत ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए बोला वैसे संस्कृत भाषा ज्ञान और विज्ञान के मुद्दे में समृद्ध है, इसलिए इसके लाभों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझा करने के लिए नेपाल और हिंदुस्तान के बीच योगदान को तेज करने की जरूरत है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि नेपाल और हिंदुस्तान की साझा संपत्ति के रूप में संस्कृत भाषा को संरक्षित और बढ़ावा देने से दोनों राष्ट्रों के बीच लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने में सहायता मिल सकती है.

भारत और नेपाल को प्राचीन भाषा बनाएगी अंतरराष्ट्रीय शक्ति

दिल्ली स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्व विद्यालय के कुलपति श्रीनिवास बरखेड़ी ने बोला कि विज्ञान और प्राचीन ज्ञान की भाषा होने के नाते संस्कृत न सिर्फ़ दो दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को एक सूत्र में बांध सकती है, बल्कि हिंदुस्तान और नेपाल दोनों को अंतरराष्ट्रीय शक्ति में बदल सकती है. हिंदुस्तान और नेपाल दोनों ही राष्ट्रों में हिंदू समाज और संस्कृति का असर है. हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में इसी प्राचीन भाषा का इस्तेमाल किया गया है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस भाषा को बढ़ावा देने के मकसद से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है. ताकि संस्कृत भाषा के ज्ञान का उजियारा दुनिया के बाकी राष्ट्रों तक पहुंच सके.

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