स्वास्थ्य

मोटापे से महिला के रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर पड़ता है बुरा असर

भारतीय स्त्रियों में मर्दों के मुकाबले मोटापा दोगुना है. 20 वर्ष से ऊपर की साढ़े चार करोड़ महिलाएं ओवरवेट की परेशानी से जूझ रही हैं. प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि पिछले 30 वर्षों में भारतीय स्त्रियों में मोटापा लगातार बढ़ा है.

1990 में जहां भारतीय स्त्रियों में मोटापा 1.2% बढ़ा वहीं 2022 में यह बढ़कर 9.8% हो गया. 1990 में 24 लाख महिलाएं मोटापा का शिकार थीं, 2022 में यह संख्या बढ़कर साढ़े चार करोड़ से अधिक हो गई.

जबकि 30 सालों में स्त्रियों की तुलना में मर्दों में मोटापा आधा रहा. 1990 में 20 वर्ष से ऊपर के 11 लाख पुरुष मोटापे की परेशानी से जूझ रहे थे, अब इनकी संख्या बढ़कर 2 करोड़ 60 लाख हो गई है. 30 साल पहले भारतीय मर्दों में मोटापे की रेट 0.5% थी जो अब बढ़कर 5.4% हो गई है.

मोटापे से महिलाओं में मर्दों के हार्मोन्स अधिक बनते हैं

महिलाओं में बढ़ता मोटापा उनकी स्वास्थ्य को खराब कर देता है. मोटापे से स्त्री के रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है जिससे बांझपन बढ़ता है.

जेएनयू के सेंटर फोर सोशल मेडिसिन एंड कम्यूनिटी हेल्थ की पीएचडी स्कॉलर एस कुंडू बताती हैं कि हिंदुस्तान में 8% शादीशुदा महिलाएं इनफर्टिलिटी से जूझ रही हैं.

40-50% मामलों में स्त्रियों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम में गड़बड़ी पाई जाती है.

पुरुषों में जहां 50 की उम्र के बाद प्रजनन कम होने लगती है वहीं स्त्रियों की प्रजनन पर 32 की उम्र के बाद निगेटिव असर होने लगता है.

FOGSI (द फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया) की पहली स्त्री प्रेसिडेंट और पुणे में इनफर्टिलिटी स्पेशियलिस्ट डाक्टर सुनीता तंदुलवाडकर कहती हैं कि मोटापे की वजह से स्त्रियों में हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं.

उनमें मेल हार्मोन यानी टेस्टेस्टेरॉन अधिक बनने लगते हैं. उनमें इंसुलिन रेसिस्टेंस बढ़ता है.

एग्स की क्वालिटी खराब होने से मिसकैरिज

डॉ सुनीता कहती हैं कि हार्मोन्स में धांधली से स्त्री में एग्स बनने कम हो जाते हैं. कई बार एग्स रुक-रुक कर बनते हैं या फिर पूरी तरह बनने ही बंद हो जाते हैं.

एग्स की क्वालिटी भी अच्छी नहीं रहती इसलिए मिसकैरिज की संभावना भी बढ़ जाती है. मोटापे से पीड़ित जिन स्त्रियों का मिसकैरिज होता है उसका मुख्य कारण एग्स की क्वालिटी का कमजोर होना है.

पीरियड्स रुक जाते हैं, पीसीओडी से ओवुलेशन पर असर

रतलाम की गायनेकोलॉजिस्ट डाक्टर लीला जोशी कहती हैं कि जब एग्स नहीं बनते या कम बनते हैं तो ऐसी स्त्रियों के पीरियड्स भी अनियमित हो जाते हैं. मोटापे से पीड़ित कई लड़कियां इस कम्पलेन के साथ आती हैं कि उन्हें माहवारी समय में नहीं हो रही है.

शादीशुदा महिलाएं भी पीरियड्स न आने या अनियमित होने की बात करती हैं लेकिन वो इनफर्टिलिटी की परेशानी से जूझ रही होती हैं.

हार्मोन में असंतलुन, एग्स नहीं बनने, पीरियड्स रुकने जैसी परेशानियों के कारण महिलाएं तनाव में रहती हैं.

मेंटल टेंशन और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर से स्त्रियों की स्वास्थ्य बिगड़ती जाती है. डाक्टर जोशी कहती हैं कि आज पीसीओडी हर तीसरी या चौथी किशोरियों को हो रहा है. उनमें पीरियड्स कम या बंद हो जाते हैं और वे मोटापे से पीड़ित हो जाती हैं.

डॉ सुनीता कहती हैं-एक बात पूरी तरह साफ है कि जिन महिलाओें में एग्स बनते हैं उनमें पीरियड्स रेगुलर होते हैं. यदि किसी की माहवारी अनियमित है या पीरियड्स रुक गए हैं तो इसका मतलब है कि एग्स नहीं बन रहे.

10% भी मोटापा कम हो जाए तो नेचुरल कंसीव करने के आसार अधिक

मोटापा की वजह से ब्रेन में जो हार्मोन निकलते हैं उन पर भी असर पड़ता है. भारी वजन की कोई स्त्री यदि प्रेग्नेंट हो भी जाती है तो भी अबॉर्शन और मिसकैरिज का डर अधिक होता है.

उनका बेबी अंडर वेट हो सकता है, प्रीमैच्योर डिलीवरी हो सकती है, प्रेग्नेंसी में ब्लड प्रेशर बढ़ना, डायबिटीज जैसी परेशानियां भी आ सकती हैं.

डॉ सुनीता कहती हैं कि उनकी क्लीनिक में जब मोटापे से पीड़ित कोई स्त्री प्रजनन के लिए आती है तो वह उसे सबसे पहले वजन कम करने की राय देती हैं.

अगर स्त्री ने 10% भी वजन कम करने में सफल होती तो उसके सामान्य तौर पर प्रेग्नेंट होने के चांसेज बढ़ जाते हैं.

वजन कम करने के लिए स्त्री को अपनी लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना होता है. उन्हें फास्ट फूड से दूर रहने, लो कैलोरी डाइट लेने और रेगुलर एक्सरसाइज करने की राय दी जाती है.

वजन कम होने से हार्मोन सामान्य हो जाते हैं. एग्स न बनने की परेशानी अपने आप ठीक हो जाती है. उन्हें IVF ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं पड़ती.

बच्चा भी बड़ा होकर मोटापा का शिकार हो सकता है

अहमदाबाद के गायनेकोलॉजिस्ट डाक्टर एमसी पटेल कहते हैं कि मोटापे से पीड़ित स्त्री का बच्चे बड़े होने पर मोटापे की चपेट में आ सकता है.

मेटरनल ओबेसिटी से मां को दिल की बीमारियां और हाइपरटेंशन होने का रिस्क रहता है वहीं 20-22 वर्ष की उम्र होते-होते बच्चे में भी हार्ट प्रॉब्लम, डायबिटीज, हाइपरटेंशन होने का खतरा बढ़ जाता है.

मर्द में महिलाओं वाला हार्मोन बढ़ा तो नपुंसक होने का खतरा

यदि किसी पुरुष का वजन बहुत बढ़ जाता है तब उनमें पाया जाने वाला हार्मोन ‘टेस्टोस्टेरॉन’ फीमेल हार्मोन ‘एस्ट्रोजन’ में बदल जाता है. पुरुष में एस्ट्रोजन हार्मोन बढ़ने पर स्पर्म पर निगेटिव असर पड़ता है. स्पर्म क्वालिटी भी घट जाएगी और उसका मूवमेंट भी कमजोर हो जाएगा.

कई कपल के कंसीव नहीं करने का कारण मेल इनफर्टिलिटी भी है जिसका कारण मोटापा है. डाक्टर पटेल कहते हैं कि स्पर्म क्वालिटी खराब होने से मिसकैरिज भी हो सकता है.

मोटापा के कारण स्क्रोटम का तापमान बढ़ जाता है. स्क्रोटम का काम स्पर्म को ऊंचे टेंपरेचर पर रखना है. इस टेंपरेचर की वजह से स्पर्म डैमेज हो जाते हैं.

5-19 वर्ष के बच्चे भी मोटापा से पीड़ित हो रहे

लैंसेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्र में 5-19 वर्ष के सवा करोड़ बच्चे ओवरवेट हैं. इनमें लड़के 73 लाख और 52 लाख लड़कियां मोटापे की शिकार हैं. 1990 की तुलना में 2022 में लड़कियों में 3% तो लड़कों में 3.7% मोटापे की रेट बढ़ी है.

 

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