इस फिल्म में कुछ खास जलवा नहीं बिखेर पायीं एक्ट्रेस अमीषा पटेल
त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्य देवो न जानाति कुतो मानुष:’ फिल्म की ये टैगलाइन ‘तौबा तेरा जलवा’ ही इस फिल्म के मेकर्स का मूड बता देती है। इक्कीसवीं सदी में भी यदि कोई चीज़ इतनी रुढ़िवादी लगती है तो उस पर आधारित फिल्म कैसी होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। इस बात का अंदाजा लगाना संभव नहीं है कि ‘गदर 2’ की जबरदस्त कामयाबी के बाद अदाकारा अमीषा पटेल ‘तौबा तेरा जलवा’ जैसी फिल्म भी कर सकती हैं। दर्शक शायद यह सोचकर सिनेमाघर में घुसेंगे कि यह अमीषा पटेल की नयी फिल्म है, लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी गलती होगी। और, फिल्म देखने के बाद आप पछताएंगे।फिल्म ‘तौबा तेरा जलवा’ की कहानी पश्चिमी यूपी के शक्तिशाली रियल एस्टेट व्यवसायी रोमी त्यागी के इर्द-गिर्द घूमती है। रोमी त्यागी की ख्याति ऐसी है कि पुलिस विभाग के साथ-साथ राजनीति में भी उनका दबदबा माना जाता है। वहीं, सियासी दल चाहते हैं कि रोमी त्यागी उनकी पार्टी से चुनाव लड़ें। रोमी त्यागी की पत्नी रिंकू कुमार अपने पति के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। उनकी शादीशुदा जीवन में तब तूफान आ जाता है जब प्रोफेसर सैयद और लैला खान रोमी त्यागी के घर में दाखिल होते हैं। कहने को तो प्रोफेसर सैयद और लैला खान दंपती हैं, लेकिन फिल्म में दोनों अजनबी जैसे लग रहे हैं। यहीं पर दर्शकों को समझ आता है कि प्रोफेसर सैयद और लैला खान रोमी त्यागी के विरुद्ध एक बड़ी षड्यंत्र रच रहे हैं। और, होता भी कुछ ऐसा ही है।फिल्म के लेखक-निर्देशक ने कहानी को संस्कृत के श्लोक ‘त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम देवो न जन्म कुतो मानुषा’ पर आधारित जरूर किया है, लेकिन कहानी में इतनी घटनाओं का कॉकटेल है कि कहानी प्रारम्भ से ही मूल कथानक से भटक जाती है कहानी खत्म होना। ज़िंदगियाँ। प्रोफेसर सैयद बार फिल्म में इस संस्कृत श्लोक को दोहराते रहते हैं, इसलिए पहले ही समझ आ जाता है कि फिल्म ‘तौबा तेरा जलवा’ की कहानी भविष्य में क्या मोड़ लेने वाली है। यूपी की राजनीति से लेकर रियल एस्टेट में चल रही गलाकाट प्रतिस्पर्धा तक फिल्म की कहानी समलैंगिक रिश्तों पर समाप्त होती है। फिल्म के अंतिम पांच मिनट को छोड़ दें तो पूरी फिल्म प्रभावहीन नजर आती है।आकाशादित्य द्वारा लिखित फिल्म ‘तौबा तेरा जलवा’ की कहानी और पटकथा तो कमजोर है ही, उनका निर्देशन भी फिल्म को कोई ठीक दिशा नहीं दे पा रहा है। पोशाक की निरंतरता में भी भारी भिन्नताएँ हैं। फिल्म का हीरो जब कारावास जाता है तो वह अपने हीरो जैसी ही ड्रेस पहनता है और हर सीन में उसकी ड्रेस बदल जाती है और कारावास किसी भी एंगल से कारावास जैसी नहीं लगती। कारावास में रोमी त्यागी जेलर के साथ इस तरह व्यवहार करता था मानो वह किसी हल्की सिपाही पर अपना असर दिखा रहा हो। यह भी साफ नहीं है कि पुलिस इंस्पेक्टर रोमी त्यागी को न्यायालय में पेशी के दौरान भागने में क्यों सहायता करता है। भागते समय महज 10 कदम की दूरी पर पुलिस उसका पीछा करती है और उसे पकड़ नहीं पाती। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं, जो दर्शकों की बुद्धि की परीक्षा लेते रहते हैं।फिल्म ‘तौबा तेरा जलवा’ को देखकर ऐसा लगता है कि अमीषा पटेल ने इस फिल्म की शूटिंग तब की होगी जब फिल्म ‘गदर 2’ की रिलीज की बात नहीं चल रही थी। यदि ‘गदर 2’ के बाद उन्हें यह फिल्म ऑफर होती तो शायद वह यह फिल्म नहीं करतीं। एक कलाकार की प्रतिभा की वास्तव में सराहना तब होती है जब वह एक अच्छे निर्देशक के साथ काम करता है। फिल्म में उन्होंने लैला खान का भूमिका निभाया था। लेकिन वह अपने भूमिका के साथ पूरा इन्साफ नहीं कर पाईं। रोमी त्यागी की किरदार जतिन खुराना ने निभाई है ने वैसे ही एक्टिंग किया है जैसे वह हर फिल्म में करते आये हैं। जी हां, जेलर के रोल में अनिल रस्तोगी ने अच्छी छाप छोड़ी है, भले ही उनका रोल छोटा है, लेकिन जब वो स्क्रीन पर नजर आते हैं तो सीन पूरी तरह उन्हीं का लगता है। पुलिस इंस्पेक्टर की किरदार में नीरज सूद ने भी बेहतरीन प्रयास की है। औसत से नीचे की फिल्म, इसकी छायांकन, रचना, संगीत और पृष्ठभूमि स्कोर भी औसत से नीचे है।