दौसा की सियासत: सचिन पायलट के भरोसे कांग्रेस, जानें क्या होगा खेल
पूर्वी राजस्थान की राजनीति का यदि कोई केंद्र है तो वह है दौसा। और इस बार भी यह सीट पूर्वी राजस्थान की सबसे हॉट सीट कही जा रही है। यहां दो सियासी क्षत्रपों, कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता डाक्टर किरोड़ीलाल मीणा और कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता सचिन पायलट की साख दांव पर लगी है। कांग्रेस पार्टी के मुरारीलाल मीणा पार्टी में सचिन पायलट खेमे के सिपहसालार माने जाते हैं। वहीं, भाजपा के उम्मीदवार कन्हैयालाल मीणा बस्सी से चार बार विधानसभा में पहुंच चुके हैं और वे मंत्री भी रहे हैं। मुरारीलाल मीणा भी दौसा से तीन बार जबकि एक बार बांदीकुई से विधायक रहे हैं।
खास बात यह है कि दोनों ही लोकसभा का चुनाव पहली बार लड़ रहे हैं। इससे पहले 2019 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुरारीलाल मीणा की पत्नी सविता मीणा ने चुनाव लड़ा था और भाजपा की जसकौर मीणा से हार गई थीं। इस बार भाजपा ने जसकौर के बजाय कन्हैयालाल मीणा पर दांव खेला है।
सबसे अधिक यदि किसी का इस सीट पर वर्चस्व देखने के मिला है तो वह पायलट परिवार का रहा है। परिसीमन और रिजर्व सीट होने से पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व पीएम राजीव गांधी के खास सहयोगी राजेश पायलट यहां से पांच बार चुनाव लड़े और जीते भी। वर्ष 2000 में सड़क हादसा में उनके मृत्यु के बाद उपचुनाव में उनकी पत्नी रमा पायलट चुनकर आईं। वर्ष 2004 में सचिन पायलट भी दौसा सीट से सांसद रह चुके हैं। 2009 के चुनाव में यह सीट एसटी के लिए रिजर्व हो गई। वहीं, 2009 में सीट रिजर्व होने के बाद किरोड़ी लाल मीणा निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। दोनों ही नेताओं का इस क्षेत्र में तगड़ा वर्चस्व है। इस क्षेत्र में पायलट परिवार का एक अपना वोटर वर्ग भी है तो डाक्टर किरोड़ी लाल का करिश्मा भी यहां काम करता है।
फिलहाल दोनों ही प्रत्याशी धुआंधार प्रचार में लगे हैं। इनका साथ देने के लिए सचिन पायलट और किरोड़ी मीणा दोनों ही दिन-रात एक किए हुए हैं। भिड़न्त कांटे की है। नतीजों की परफेक्ट भविष्यवाणी करना बेमानी है।
लोकसभा में दौसा
दौसा लोकसभा सीट अब तक 19 आम चुनाव देख चुकी है, जिनमें से 12 बार यह सीट कांग्रेस पार्टी के खाते में आई है जबकि चार बार भाजपा के, दो बार स्वतंत्र पार्टी के और एक बार निर्दलीय सांसद लोकसभा में पहुंच चुके हैं। पिछली दो बार से यहां बीजेपी के ही सांसद लोकसभा में पहुंचे हैं। 2014 में हरिश्चंद्र मीणा तो 2019 में मौजूदा सांसद जसकौर मीणा ने जीत दर्ज की थी। इस लोकसभा में तीन जिलों की 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर भाजपा जबकि तीन पर कांग्रेस पार्टी काबिज है।
भाई यहां भाई को हरा चुका
10 वर्ष पहले 2014 के आम चुनाव में बीजेपी के हरिश्चंद्र मीणा अपने भाई और कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता नमोनारायण मीणा के विरुद्ध चुनाव लड़े। वहीं, तीसरे उम्मीदवार डाक्टर किरोड़ी लाल मीणा थे। इस चुनाव में नमोनारायण मीणा तीसरे नंबर पर रहे थे और भाजपा के हरिश्चंद्र मीणा ने किरोड़ी लाल को 45 हजार से अधिक मतों से हराया था।
यहां जनता खेल जाती है पार्टियों के ‘जज्बात’ से
अक्सर नेताओं और राजनीतिक पार्टियों पर जनता के जज्बात से खेलने की तोहमत लगती है। लेकिन, दौसा लोकसभा सीट भी कम ‘अनप्रेडिक्टेबल’ नहीं है। यहां किसी भी चुनाव में फौरी तौर पर यह नहीं बोला जा सकता कि ‘हवा’ किसके पक्ष में है। यहां 2009 में जनता निर्दलीय डाक्टर किरोड़ी लाल मीणा को जिताकर संसद भेज चुकी है। जबकि दोनों बड़ी पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों की जमानत तक बरामद हो गई थी। वहीं, कश्मीर से दौसा आकर चुनाव लड़े कमर रब्बानी चेची दूसरे जगह पर रहे थे। इन्हें उस समय लगभग पौने तीन लाख वोट मिले जो अप्रत्याशित (अनप्रेडिक्टेबल) ही है। यह चुनाव परिसीमन के बाद पहला चुनाव था जिसमें यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए रिजर्व हो गई थी। वैसे जम्मू और कश्मीर के ‘गुज्जर’ एसटी कैटेगरी में आते हैं, चेची को यहां से चुनाव लड़वाया गया। यह जातिगत ध्रुवीकरण का चरम था।
दोनों बड़ी पार्टियों ने झोंकी ताकत
हॉट सीट होने के चलते दोनों ही पार्टियां इस लोकसभा क्षेत्र में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती हैं। प्रदेश स्तर के नेताओं के अतिरिक्त यहां भाजपा की ओर से पीएम नरेन्द्र मोदी रोड-शो कर चुके हैं। वहीं, कांग्रेस पार्टी नेता प्रियंका गांधी ने भी इस क्षेत्र के बांदीकुई में जनसभा की हैं। यानी दोनों ही पार्टियों के लिए यह सीट बराबर अहम है। और यहां का ऊंट किस करवट बैठेगा, आश्वस्त दोनों हैं… या दोनों में कोई नहीं।