सांसारिक सुख ही नहीं है सब कुछ, मृगतृष्णा से बाहर निकलें और उतरें स्वयं की गहराई में…
विकास के दो मार्ग हैं – बाह्य और आन्तरिक. आज आउटडोर विकास के नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं. मनुष्य की वैज्ञानिक सोच ने विकास की गति को अविश्वसनीय गति प्रदान की है. वह विकास की हर दौड़ में आगे बढ़ रहा है.
आज बाहरी विकास इतना हो गया है कि दुनिया के किसी भी कोने में हो रही घटना के बारे में हमें तुरंत पता चल जाता है, लेकिन अंदर हो रही घटना के बारे में हमें कुछ भी पता नहीं चलता क्योंकि कोई भी उस पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है बाहर प्रकाश फैल रहा है और भीतर गहन अंधकार ने अपना साम्राज्य फैला लिया है.
अंधकार को हटाए बिना प्रकाश कैसे हो सकता है? प्रकाश के बिना सुख, शांति और संतोष कहाँ? मनुष्य की जो ऊर्जा अँधेरे को दूर करने में लगनी चाहिए थी, वह निरर्थक कार्यों में लग रही है. जो ऊर्जा चेतना के बदलाव में लगनी चाहिए थी वह बाहरी क्रियाओं में खर्च हो रही है क्योंकि आज मनुष्य सिर्फ़ शरीर के दायरे में ही रह रहा है. उन्होंने संसार के सुख के लिए ही सब कुछ स्वीकार किया है. उसकी सारी दृष्टि बाहर की ओर निर्देशित होती है.
वह इस बाहरी दौड़ को ही पूर्णता की कसौटी मान रहा है. वह इस सत्य को भूल रहा है कि बाह्य पदार्थों में जो सुख उसे मिल रहा है उसे सुख या मृग तृष्णा ही बोला जा सकता है. मनुष्य को सुख की भावना से ऊपर उठकर आनंद और संतुष्टि की भावना में प्रवेश करना होगा. सुख आत्मा का स्वभाव है और सुख-दुःख शरीर का स्वभाव है.
इसलिए आदमी को पर्सनल आनंद में प्रवेश की आशा करनी चाहिए. ख़ुशी सिर्फ़ अपने भीतर गोता लगाने से ही प्राप्त की जा सकती है. जिस आदमी ने स्वयं को पा लिया उसने सब कुछ पा लिया. सबसे अच्छी बात यह है कि सांसारिक सुखों की मृगतृष्णा से बाहर निकलें और स्वयं की गहराई में उतरें. वैसे देखा जाए तो दूसरों के बारे में जानने से बेहतर है कि आप अपने बारे में जानें.