रेलगाड़ी का ड्राइवर बहुत धुंध में भी सिग्नल कैसे देख लेता है,पढ़े यहा
How do trains run in dense fog: सोशल साइट कोरा (Quora) पर अक्सर लोग कुछ ऐसे प्रश्न पूछते हैं, जिनका उत्तर बहुत कम लोगों को ही पता होता है। हालांकि, उन सभी प्रश्नों के उत्तर इस प्लेटफॉर्म पर जुड़े यूजर्स ही देते हैं। यहां ऐसा ही एक प्रश्न पूछा गया है कि ‘रेलगाड़ी का ड्राइवर बहुत धुंध में भी सिग्नल कैसे देख लेता है?’। इस प्रश्न का उत्तर अजय कुमार निगम, रणधीर और अनिमेष कुमार सिन्हा जैसे कई कोरा यूजर्स ने दिया है। उन्हें पढ़कर पता चलता है कि ट्रेन के ड्राइवर यानी लोको पायलट के पास धुंध या प्रतिकूल मौसम में सिग्नल देखने के लिए निम्न विकल्प होते हैं।
ट्रेन की गति कम करना
अजय कुमार निगम, जिन्होंने कोरा पर स्वयं को भारतीय रेलवे की मुंबई डिवीजन में लोको पायलट के रूप में कहा है। वह लिखते हैं, ‘रेल गाड़ी का ड्राइवर भी एक आम आदमी है, उसके पास घने कोहरे में सिग्नल देखने के लिए कोई खास शारीरिक क्षमता नहीं होती है। ऐसे में सिग्नलों को ठीक से देखने के लिए ड्राइवर के पास ट्रेन की रफ्तार धीमी करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाता, क्योंकि हादसा से देर भली।’ रणधीर नाम के यूजर ने भी अजय की बात का सर्मथन किया है। उन्होंने लिखा, ‘यही वजह है कि धुंध के मौसम में रेलगाड़ियां काफी लेट चलती हैं।’
रेलवे लाइन पर फॉग सिग्नल लगाना
अजय निगम बताते हैं कि, ‘फॉग सिग्नल एक प्रकार का पटाखा सिग्नल है। इसमें डेटोनेटर डिस्क बॉक्स को रेलवे ट्रैक पर लगा दिया जाता है। जब इसके ऊपर से ट्रेन गुजरती है, तो वे फट जाते हैं, और बल की आवाज होती है, जिसे सुनकर ड्राइवर ट्रेन की गति को सिग्नल से पहले कंट्रोल करते हैं, और मुनासिब संकेत मिलने पर रोकते भी हैं। फोग सिग्नल पोस्ट पर तैनात कर्मचारी वहां 10 मीटर की दूरी पर दो फॉग सिग्नल लाइन पर रखते हैं, जिससे आने वाली ट्रेन के ड्राइवर को आगे के सिग्नल के प्रति सावधान किया जा सके।’
नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके
अजय के मुताबिक, आजकल घने कोहरे से निपटने के लिए नयी टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने लिखा, ‘उत्तर रेलवे, जहां ट्रेनें घने कोहरे के चलते सबसे अधिक लेट होती हैं, में इंजनों में टीपीडब्लूएस (ट्रेन प्रोटेक्शन वॉर्निंग सिस्टम) लगाए गए हैं। वहीं, कोंकण रेलवे में तो एसीडी (एंटी कोलिजन डिवाइस) बहुत समय से इस्तेमाल हो रहा है’
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