उत्तर प्रदेश

यूपी का ये ऐतिहासिक शहर कभी जाना जाता था सूर्य नगरी के नाम से…

इत्र नगरी के नाम से मशहूर कन्नौज कभी एक ऐसा समय था कि लोग इसे धार्मिक और पौराणिक नगरी के नाम से जानते थे. जिसका आज भी स्वरूप देखने को मिलता है. भगवान राम के भी चरण इत्र नगरी में पड़े थे. तो वही महान ऋषि विश्वामित्र की तपोस्थली भी यह रही है, ऐसे में यहां पर एक सूर्यकुंड भी है. मान्यता है यहां पर स्नान करने से उस वक्त समस्त कुष्ट रोगों से निजात मिलता था. यहां पर भगवान सूर्य की पूजा करने से वरदान भी मिलता था.

कन्नौज रेलवे स्टेशन से करीब 6 से 7 किलोमीटर की दूरी में मौसमपुर मौरारा नाम का एक मोहल्ला है. यहीं पर सूर्यकुंड बना हुआ है. इसी सूर्यकुंड से एक वक्त पूरे कन्नौज शहर की प्यास बुझती थी यहां पर कुष्ट रोगी स्थान पर लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती थी. पुराणों के अनुसार इसी सूर्यकुंड से भगवान विष्णु ने नारद को उपदेश दिया था. यहां सूर्य देवता का पूजन करने से पुत्र की प्राप्ति होती थी और ऐश्वर्या के साथ सुंदर स्वास्थ्य भी मिलता था. तथा विद्यार्थी विद्या प्राप्त करते थे. सूर्यकुंड से निकली चित्रा नदी, काली नदी के पास से गंगा में मिलती थी.

इस रोग से मिलती थी निजात
मान्यता है कि कन्नौज में एक वक्त में 12 सूर्य मंदिर होते थे. लेकिन आज एक भी नहीं है. एक समय ऐसा भी था कि सूर्यकुंड में स्नान करने मात्र से ही कुष्ट रोगों से मुक्ति मिल जाती थी. वहीं एक मान्यता यह भी है कि यहां सूर्यकुंड में पूजा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती थी.लेकिन ना आज मंदिर बचा ना कोई वहां पूजा करने वाला बचा है.

भगवान विष्णु ने नारद को दिया उपदेश
कन्नौज की जानकारी रखने और सोशल वर्कर प्राची गुप्ता बताती हैं कि वेदों के अनुसार कुंड के अंदर सोने की सीढ़ियां भी थी. इस पर कभी भगवान विष्णु ने खड़े होकर नारद को उपदेश दिया था. यही से बाई ओर ऊंचे टीले पर विशाल सूर्य मंदिर था वह अब नहीं है. कुंड में नहाने से त्वचा के सभी रोग दूर हो जाते थे. प्रमुख रूप से कुष्ट रोगी कुंड में स्नान करने आते थे. अब ऐसा नहीं है कुंड अपना अस्तित्व खो चुकी है. कुंड गंदे तालाब में तब्दील हो चुका है. 25 एकड़ में फैला था यह सूर्यकुंड.

आज भी नहीं सूखता है सूर्यकुंड
करीब 50 एकड़ में बने कुंड का पानी बिलकुल साफ हुआ करता था. यहां पर पहले विवाहित जोड़े सूर्यकुंड से आशीर्वाद लेते थे.शहर में 40 से 45 साल पहले तक विवाह के बाद नव विवाहित जोड़ा परिवार के साथ सूर्यकुंड पहुंचकर भगवान सूर्य देव का आशीर्वाद लेता था. इसके बाद ही घर में प्रवेश करता था. इसी कुंड में मंडप का जल प्रभावित किया जाता था. लेकिन अनदेखी के चलते अब यह पौराणिक धरोहर बिल्कुल समाप्त की कगार पर है. लेकिन इस सूर्यकुंड की आज भी मान्यता है यह कभी सूखता नहीं.

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