सुरेंद्र कोली को 10 से अधिक मामलों में फांसी की सुनाई सजा
Nithari Kand: करीब 18 वर्ष पहले दुनिया को दहला देने वाले नोएडा के बहुचर्चित निठारी काण्ड के गुनहगार सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पढ़ेर की सजा के विरुद्ध अर्जियों पर आज निर्णय आ सकता है। बात दें कि सुरेंद्र कोली ने 12 मामलों में मिली फांसी की सजा और मनिंदर सिंह पंढेर ने दो मामलों में मिली सजा के विरुद्ध अर्जी दाखिल कर रखी है। इन अर्जियों पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक साथ सुनवाई हो रही है। सुनवाई के बाद 15 सितंबर को न्यायालय ने अपना निर्णय रिवर्ज रख लिया था।
निठारी काण्ड के आरोपी सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर को ट्रायल न्यायालय से गुनेहगार ठहराया जा चुका है। सुरेंद्र कोली को 10 से अधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई है। वहीं मनिंदर सिंह पंढेर को तीन मामलों में सजा-ए-मौत सुनाई गई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस एस एच ए रिजवी की डिवीजन बेंच से आज निर्णय आ सकता है। कहा जा रहा है कि दिन में 11 बजे तक निर्णय आ सकता है। इस निर्णय से साफ हो जाएगा कि सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर की सजा बरकरार रहेगी या फिर उन्हें राहत मिलेगी।
क्या है निठारी कांड
साल-2005 से 2006 के बीच हुए इस काण्ड ने पूरे विश्व के लोगों को हिलाकर कर दिया था। दिसंबर 2006 में नोएडा के निठारी में मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पास नाले में कंकाल मिले थे। इसके बाद पुलिस ने जांच की तो कई बच्चों के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या की भयावह कहानियां सामने आईं।
सीबीआई ने इस मुद्दे में कुल 16 मुकदमा दर्ज किए थे। सभी मामलों में मोनिंदर के नौकर कोली पर हत्या, किडनैपिंग और बलात्कार के अतिरिक्त सबूत मिटाने का भी इल्जाम लगा जबकि मोनिंदर सिंह पंढेर पर एक मुद्दे में अनैतिक स्मग्लिंग का इल्जाम लगाया गया था।
134 दिन हुई सुनवाई
सुरेंद्र कोली ने इस मुद्दे में 12 याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं। इनमें पहली याचिका साल-2010 में दाखिल की गई थी। उच्च न्यायालय ममें 134 कार्यदिवसों में उसकी अपील पर सुनवाई हुई थी। इन याचिकाओं के अतिरिक्त भी उच्च न्यायालय द्वारा कोली की कुछ अर्जियों को निस्तारित किया जा चुका है। एक मुद्दे में फांसी की सजा बरकरार है। एक अन्य मुद्दे में देरी के आधार पर फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा चुका है।
कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में आरोपियों ने तर्क दिया है कि इन घटनाओं का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है। केवल वैज्ञानिक और परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर ही उन्हें गुनेहगार ठहराया गया है। फांसी की सजा सुनाई गई है। ये आधार देते हुए आरोपियों ने सजा-ए-मौत को निरस्त करने की अपील की है।