उत्तर प्रदेश

एसआई ने ज्ञानवापी परिसर में 4 अगस्त से 2 नवंबर तक किए गए सर्वे रिपोर्ट अदालत में…

Varanasi News: वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वे रिपोर्ट वादी स्त्रियों और उनके वकील को देने की मांग के प्रार्थना पत्र पर गुरुवार को आदेश आने की आसार है वहीं मस्जिद पक्ष की ओर से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने की मांग के प्रार्थना पत्र पर भी सुनवाई जिला न्यायधीश डाक्टर अजय कृष्ण विश्वेश की न्यायालय में होगी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 18 दिसंबर को रिपोर्ट दाखिल की थी एएसआई ने ज्ञानवापी परिसर में चार अगस्त से दो नवंबर तक किए गए सर्वे की रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की है प्रकरण में वादी महिलाएं सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास की ओर से न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर सर्वे रिपोर्ट उनके वकील को ई मेल के जरिए देने की मांग की गई है हिंदू पक्ष ने जहां सर्वे रिपोर्ट की प्रति तुरन्त दिए जाने का निवेदन किया है, वहीं मुसलमान पक्ष ने विरोध जताई है मुसलमान पक्ष का बोलना है कि रिपोर्ट की प्रति यह शपथ पत्र लेकर दी जाए कि वह लीक नहीं की जाएगी रिपोर्ट की मीडिया कवरेज पर भी रोक लगाने की मांग रखी गई है

जिला न्यायालय के आदेश पर 24 जुलाई को सर्वे हुआ शुरू

वाराणसी में जिला न्यायधीश की न्यायालय के आदेश से ज्ञानवापी में एएसआई ने बीते 24 जुलाई को सर्वे प्रारम्भ किया था सर्वे, रिपोर्ट तैयार करने और उसे न्यायालय में दाखिल करने में 153 दिन लग गए एएसआई की ओर से सर्वे रिपोर्ट के साथ ही जिलाधिकारी को सुपुर्द किए गए साक्ष्य की सूची भी न्यायालय में दाखिल की गई है साथ ही एक प्रार्थना पत्र भी न्यायालय में दिया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि एएसआई ने सर्वे का काम कैसे किया है प्रकरण में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से प्रार्थना पत्र देकर सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने की मांग की गई है दोनों प्रार्थना पत्रों के निस्तारण के लिए जिला न्यायधीश ने 21 दिसंबर की तिथि तय की है

हिंदू पक्ष ने बैठक में की मांग

इस बीच राजमाता अहिल्या बाई सेवा संस्थान की बैठक ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मुकदमे के पैरोकार सोहन लाल आर्य की अध्यक्षता में हुई इसमें ज्ञानवापी परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सर्वे की रिपोर्ट की काफी और फोटोग्राफ वादी स्त्रियों और उनके वकीलों को देने की मांग की गई बैठक में वक्ताओं ने बोला कि ज्ञानवापी हो या मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर सभी जगहों पर साक्ष्य उपस्थित हैं उच्चतम न्यायालय से प्रार्थना करते हुए बोला कि ज्ञानवापी के वजुखाना में मिले शिवलिंग के भी वैज्ञानिक सर्वे की याचिका का शीघ्र निस्तारण हो

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन दलीलों वाली याचिकाओं को किया खारिज

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद टकराव के संबंध में वाराणसी सिविल न्यायालय में दाखिल एक प्रतिनिधि मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच को इलाहाबाद उच्च न्यायालय खारिज कर चुका है उच्च न्यायालय ने इसे लेकर बोला कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 किसी धार्मिक संरचना के कैरेक्टर की घोषणा के लिए न्यायालय जाने वाले पक्षों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाता है इस टिप्पणी के साथ, न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल न्यायाधीश पीठ ने वाराणसी में सिविल न्यायधीश को हिंदू पक्ष द्वारा उस भूमि पर अपने अधिकार का दावा करते हुए दाखिल प्रतिनिधि मुकदमे की सुनवाई प्रारम्भ करने की अनुमति दी, जहां ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है पूजा स्थल अधिनियम अधिसूचित होने के बाद अक्टूबर 1991 में ट्रायल न्यायालय में केस दाखिल किया गया था उच्च न्यायालय का निर्णय 15 वर्ष बाद सुनाया गया जब अंजुमन इंतजामिया मस्जिद–ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने ट्रायल न्यायालय में सुनवाई पर रोक लगा दी थी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, लखनऊ ने अधीनस्थ न्यायालय के दो आदेशों को चुनौती दी थी

दोनों पक्षों ने दी अपनी दलील

मस्जिद प्रबंधन समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ के अनुसार, अधिनियम में साफ रूप से बोला गया है कि 15 अगस्त, 1947 को उपस्थित पूजा स्थल अस्तित्व में रहेगा और इसके रिलीजियस कैरेक्टर में बदलाव पर पूर्ण प्रतिबंध है हालांकि, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने बोला कि वैसे अधिनियम के अनुसार रिलीजियस कैरेक्टर को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए विवादित जगह की पहचान जरूरी है, क्योंकि यह 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था और दोनों पक्षों के नेतृत्व में दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य द्वारा निर्धारित किया जा सकता है यह देखते हुए कि वर्तमान मुद्दे में, दोनों पक्षों द्वारा इस पर प्रति-दावा करने के मद्देनजर धार्मिक संरचना की पहचान अस्पष्ट बनी हुई है, न्यायाधीश ने बोला कि जब तक न्यायालय निर्णय नहीं सुना देती, विवादित पूजा स्थल को मंदिर या मस्जिद नहीं बोला जा सकता

मामले को लेकर उच्च न्यायालय ने क्या कहा

पीठ ने यह भी बोला कि 1991 के अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 3 में कुछ ऐसे मामलों का जिक्र है जिनमें पक्ष अपनी कम्पलेन के निवारण के लिए न्यायालय का रुख कर सकते हैं उप-धाराओं में से एक-उप-धारा 3 (डी)-अधिनियम के अनुसार अपवादों में से एक है जो न्यायालय को ऐसे मुद्दे की सुनवाई करने की अनुमति देती है जहां अधिनियम के प्रारम्भ होने से बहुत पहले धार्मिक रूपांतरण हुआ हो यदि किसी पक्ष ने अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले ऐसे रूपांतरण को न्यायालय में चुनौती नहीं दी है, तो वे भविष्य में भी ऐसा कर सकते हैंअदालत ने बोला कि 1991 का अधिनियम इसके लागू होने के बाद पूजा स्थल पर अपना अधिकार मांगने या किसी पूजा स्थल के रिलीजियस कैरेक्टर को परिभाषित करने के लिए अदालतों में जाने वाले पक्षों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है

काशी-ज्ञानवापी टकराव में सुनवाई होना जरूरी

न्यायाधीश ने महसूस किया कि काशी-ज्ञानवापी टकराव में सुनवाई होना जरूरी है क्योंकि किसी जगह का दोहरा धार्मिक पहचान नहीं हो सकता न्यायालय ने बोला कि या तो वह जगह मंदिर है या मस्जिद इसलिए धार्मिक पहचान का निर्धारण करते समय संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लिया जाना जरूरी है पीठ ने ट्रायल न्यायालय को मुद्दे के जरूरी महत्व को देखते हुए जल्द से जल्द छह महीने के भीतर मुद्दे का निर्णय करने का निर्देश दिया

ट्रायल न्यायालय को किसी भी पक्ष को नहीं देना चाहिए अनावश्यक स्थगन

अदालत ने आदेश दिया कि मुकदमे में उठाया गया टकराव अत्यंत राष्ट्रीय महत्व का है यह दो भिन्न-भिन्न पार्टियों के बीच का मुद्दा नहीं है इसका असर राष्ट्र के दो प्रमुख समुदायों पर पड़ता है 1998 से चल रहे अंतरिम आदेश के कारण केस आगे नहीं बढ़ सका राष्ट्रीय भलाई में, यह जरूरी है कि केस तेजी से आगे बढ़े और बिना किसी टाल-मटोल की रणनीति का सहारा लिए दोनों प्रतिस्पर्धी पक्षों के योगदान से अत्यधिक तत्परता से फैसला लिया जाए इसमें आगे बोला गया कि ट्रायल न्यायालय को किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन नहीं देना चाहिए न्यायालय ने बोला कि यदि स्थगन मांगा गया तो इसकी भारी मूल्य चुकानी पड़ेगी

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