माफिया विनोद की आखिरी लोकेशन नेपाल में,50 हजार से बढ़ाकर एक लाख का इनाम
यूपी के टॉप- 61 माफियाओं की लिस्ट में शामिल गोरखपुर का फरार माफिया विनोद उपाध्याय अब नहीं बच पाएगा। उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने अब बड़ा प्लान तैयार किया है। माफिया पर 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख का पुरस्कार कर दिया गया। साथ ही अब उसे दबोचने के लिए लगी पुलिस, अपराध ब्रांच और STF के अतिरिक्त अब इंटरपोल की भी सहायता ली जाएगी।
माफिया विनोद की अंतिम लोकेशन नेपाल में मिली है। ऐसे में गोरखपुर जोन के ADG अखिल कुमार के निर्देश पर उसकी लोकेशन जुटाने के लिए पुलिस ने नेपाल बार्डर पर अपने मुखबिर भी सक्रिय कर दिए गए हैं। साथ ही बॉर्डर इलाकों पर नेपाल और इण्डिया पुलिस के अतिरिक्त SSB के जवानों की मीटिंग भी की जा रही है। दोनों राष्ट्र अपने यहां के इनामी लुटेरों की लिस्ट एक दूसरे को सौंप रहे हैं। ताकि दोनों राष्ट्रों के फरार लुटेरों को पकड़वाने में एक दूसरे की सहायता हो सके। माफिया विनोद को पकड़ने के लिए अब नेपाल पुलिस की सहायता लेगी।
यूपी के टॉप-61 माफियाओं की लिस्ट में है विनोद
माफिया विनोद उपाध्याय का नाम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के टॉप-10 और प्रदेश के टॉप-61 माफिया की लिस्ट में शामिल है। यहां शाहपुर के रेल विहार, गोरखनाथ के धर्मशाला बाजार में भी उसका मकान है। जबकि, उसपर 38 मुकदमे दर्ज हैं।
जबकि, गुलरिहा क्षेत्र के मोगहला में भी उसने सरकारी जमीनों को कब्जा कर अपना मकान और फार्म हाउस बनवा रखा था। लेकिन, गोरखपुर विकास प्राधिकरण ने बिना मानचित्र के बने माफिया विनोद उपाध्याय के फार्म हाउस और उसके भाई संजय के घर पर बुलडोजर चला दिया। बावजूद इसके पुलिस अब तक उसे पकड़ने में असफल है।
DGP के निर्देश बिछने लगा जाल
वहीं, अभी हाल ही में प्रदेश के DGP विजय कुमार ने प्रदेश के टॉप- 61 माफिया की लिस्ट में शामिल लुटेरों पर की गई पुलिस कार्रवाई की समीक्षा की। जिसमें प्रदेश के 9 लुटेरों पर पुलिस ने कारगर कार्रवाई न होने पर DGP ने नाराजगी जताई है। माफिया जिस जिले के रहने वाले हैं, वहां के पुलिस कमिश्नर/पुलिस कप्तान को DGP ने पत्र लिख कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
माफिया पर कार्रवाई न होने वाली सूची में गोरखपुर के विनोद उपाध्याय का नाम भी शामिल था, लेकिन दो महीने के अंदर उसके फार्म हाउस पर GDA का बुलडोजर चलने सहित गुलरिहा और शाहपुर पुलिस स्टेशन में उसके विरुद्ध कई मुकदमे दर्ज होने से गोरखपुर पुलिस DGP की नाराजगी का शिकार नहीं हो पाई। हालांकि, DGP ने माफिया विनोद की तुरन्त गिरफ्तारी के निर्देश दिए हैं। इसके तुरन्त बाद पुलिस ने पर घोषित 50 हजार का पुरस्कार बढ़ाकर एक लाख रुपये का पुरस्कार घोषित कर दिया।
बीते 17 जून को पुलिस ने माफिया का गैरकानूनी मकान बुलडोजर से ढहा दिया था।
4 महीने से फरार चल रहा माफिया
दरअसल, 24 मई को कैंट क्षेत्र के दाउदपुर में रहने वाले कैंसर पीड़ित पूर्व सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रवीण श्रीवास्तव ने गुलरिहा पुलिस स्टेशन में माफिया विनोद उपाध्याय उसके भाई संजय, नौकर छोटू और दो अज्ञात के विरुद्ध रंगदारी मांगने, तोड़फोड़ करने का केस दर्ज कराया था। इस मुद्दे में पुलिस ने नौकर छोटू को अरैस्ट कर कारावास भेजवा दिया था। इसके बाद से ही उसकी तलाश में पुलिस, अपराध ब्रांच लगी है।
कोर्ट ने जारी किया था NBW
साल 2010 में गोरखनाथ के जटेपुर दक्षिणी निवासी माफिया विनोद उपाध्याय, उसके भाई संजय उपाध्याय और सहयोगी प्रभाकर द्विवेदी पर शाहपुर थाना पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई की थी। विशेष न्यायाधीश गैंगस्टर शशिभूषण कुमार शांडिल के कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई चल रही है। सुनवाई पर हाजिर न होने की वजह से माफिया और उसके भाई के विरुद्ध कोर्ट से गैर जमानती वारंट जारी हुआ था।
माफिया विनोद उपाध्याय साथ फरार चल रहे उसके गुर्गे उमेश कुमार प्रजापति को गुलरिहा पुलिस ने अरैस्ट कर लिया है।
भाई कर चुका है सरेंडर, गुर्गे जा चुके हैं जेल
वहीं, विनोद 4 महीने से पुलिस और अपराध ब्रांच के अतिरिक्त STF टीम को भी छका रहा है। हालांकि, इस बीच पुलिस का लगातार बढ़ता प्रेशर देख माफिया का भाई संजय उपाध्याय न्यायालय में सरेंडर कर दिया। जबकि, पुलिस ने उसके कई गुर्गो को अरैस्ट भी किया। कई बार विनोद ने भी पुलिस को चकमा देकर न्यायालय में सरेंडर करने की प्रयास भी की। लेकिन, वह इससे सफल नहीं हो सका। विनोद पर पुलिस की कार्रवाई देख उससे पीड़ित हुए लोग भी खुलकर सामने आने लगे। इस दौरान विनोद के विरुद्ध कई मुकदमें दर्ज हुए।
गोरखपुर जोन में दूसरा बड़ा इनामी है विनोद
माफिया विनोद अब गोरखपुर जोन के 11 जिलों में दूसरा सबसे बड़ा इनामी क्रिमिनल है। उसपर एक लाख रुपए का पुरस्कार है। जबकि, पहले नंबर पर राघवेंद्र का नाम है। चार लोगों की मर्डर करने वाला झंगहा के सुगहा गांव के राघवेंद्र यादव पर 2.50 लाख रुपये का पुरस्कार घोषित है। राघवेंद्र वर्ष 2016 से फरार है। लेकिन, उसे भी अब तक पुलिस अरैस्ट नहीं कर सकी।
एक भी माफिया का अरैस्ट नहीं कर सकी पुलिस
गोरखपुर पुलिस अब तक एक भी माफिया को अरैस्ट नहीं कर सकी है। हालांकि, स्वयं से कारावास जा चुके माफियाओं पर बुलडोजर चलवाने के बाद पुलिस का दावा है कि अंडरग्राउंड अपराध में शामिल माफिया विनोद उपाध्याय की तलाश में तो लगी है। इससे पहले माफिया सुधीर सिंह, माफिया राकेश यादव और माफिया अजीत शाही को भी पुलिस अरैस्ट नहीं कर सकी। बल्कि यह सभी ने स्वयं न्यायालय सरेंडर कर कारावास चले गए।
काली कोट पहनकर अजीत ने दिया चकमा
रेलवे कोऑपरेटिव बैंक पहुंचकर वहां के कर्मचारियों को अजीत शाही ने जान से मारने की धमकी 12 मई को दी। इसके बाद शाहपुर पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कर पुलिस माफिया की तलाश में छापेमारी कर रही थी तभी 18 मई को काली कोटकर पहनकर पुलिस को चकमा देते हुए अजीत शाही ने न्यायालय में सरेंडर कर दिया।
केस:- 2)
लग्जरी गाड़ियों में सरेंडर करने पहुंचा सुधीर
अप्रैल महीने में न्यायालय ने एक मुकदमे में सुधीर सिंह का वारंट जारी किया था। जिसके बाद पुलिस गोरखपुर और लखनऊ में सुधीर को पकड़ने के लिए छापेमारी कर रही थी। इसी बीच चकमा देकर एक पुराने मुद्दे में सुधीर सिंह ने महाराजगंज न्यायालय में सरेंडर कर दिया। कहा जा रहा है कि माफिया कई लग्जरी गाड़ियों और भीड़ के साथ सरेंडर करने पहुंचा था। इसके बाद भी पुलिस को भनक नहीं लगी।
केस:- 3)
जमानत वापस करा राकेश ने किया सरेंडर
माफिया राकेश यादव को भी पुलिस तलाश रही थी। लेकिन, राकेश तक पुलिस नहीं पहुंच पाई। इससे पहले ही राकेश यादव ने एक पुराने मुकदमे में जमानत खिंचवा शनिवार को न्यायालय में हाजिर होकर कारावास चला गया। पुलिस को इसकी जरा भी भनक नहीं लगी।
- आइए, अब माफिया विनोद उपाध्याय और उसके भाई की अपराध कुंडली बताते हैं…
यूपी का वो माफिया जिसे नेपाल के लुटेरे ने कारावास में थप्पड़ मारा तो उसे घर पहुंचने से पहले गोली मार दी, भाई भी है दबंग
दिसंबर 2004 का वह समय था। नेपाल के भैरहवा के शातिर क्रिमिनल जीतनारायण ण को बस्ती कारावास भेज दिया गया। 7 अगस्त 2005 को जमानत मिल गई। जीतनारायण अपने बहनोई गोरेलाल के साथ संतकबीरनगर के बखीरा जाने के लिए जीप पर बैठा। जैसे ही वह उतरा कार से आए लुटेरों ने घेर लिया और ताबड़तोड़ फायरिंग प्रारम्भ कर दी। 70 सेकण्ड के अंदर जीतनारायण और गोरेलाल जमीन पर पड़े थे। मर चुके थे।
ये फायरिंग करने वाला वही छात्रनेता था, जिसे 8 महीने पहले जीतनारायण मिश्र ने एक थप्पड़ मार दिया था। नाम है विनोद उपाध्याय। विनोद के अपराधों की लिस्ट और सियासी पहुंच लंबी है। गैंगस्टर से पहले वह छात्रनेता था। जननेता बनना चाहता था लेकिन बन गया गोरखपुर का सबसे बड़ा माफिया। आज बात होगी विनोद उपाध्याय की…
विनोद जिसे चाहता वह अध्यक्ष बनता
1970 के दशक में गोरखपुर की राजनीति गोरखपुर यूनिवर्सिटी से चलने लगी थी। हरिशंकर तिवारी, बलवंत सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे विद्यार्थी नेता राजनीति की मुख्यधारा में आ गए। इसके बाद यह ट्रेंड ही बन गया। लड़के यूनिवर्सिटी में पढ़ने जाते। कुछ अपना उद्देश्य हासिल करते और कुछ बाहुबली, नेता या माफिया बनकर निकलते। विनोद उपाध्याय दूसरी कैटेगरी में आते हैं।
1970 के दशक में जेपी के कारण गोरखपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति प्रारम्भ हो गई। हरिशंक र तिवारी और वीरेंद्र शाही जैसे बाहुबली नेता निकलकर सामने आए।
विनोद ने चुनाव लड़ने के बजाय लड़वाने पर भरोसा किया। 2002 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर अपने एक साथी को लड़वाया। वह चुनाव जीत गया। यहां से विनोद की पहुंच राजनीति में बड़े-बड़े लोगों से हो गई। 2004 में फिर से एक प्रत्याशी उतारा, लेकिन लिंगदोह समिति के तय नियमों की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ सका। लोग बताते हैं कि प्रत्याशी की उम्र अधिक थी।
नए लड़कों के समर्थन से बना ली गैंग
यूनिवर्सिटी से करीब 10 वर्ष जुड़े रहने के कारण विनोद ने विद्यार्थियों की एक बड़ी गैंग बना ली। यह वह समय था, जब गोरखपुर में जातीय आधार पर गैंग हुआ करती थी। हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के रॉबिनहुड थे और विनोद उनका खास चेला। हरिशंकर तिवारी के चेलो में श्रीप्रकाश शुक्ला भी था। 1997 में ठाकुरों के नेता और महाराजगंज जिले के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को श्रीप्रकाश ने लखनऊ में गोलियों से भून दिया था।
यह वह समय था, जब विनोद का नाम क्राइम जगत में नहीं दर्ज था। लेकिन यह सब देखकर क्राइम करने की हौसला आ गई। श्रीप्रकाश शुक्ला के मुठभेड़ के बाद विनोद उपाध्याय, सत्यव्रत राय का खास हो गया। ये सत्यव्रत राय कभी श्रीप्रकाश को राय देने वाले कहा जाता था। दोनो साथ हुए तो क्राइम में नाम आने लगा, 1999 में एक के बाद एक दो केस गोरखनाथ पुलिस स्टेशन में दर्ज हो गया। पहला धमकी से और दूसरा दलित के साथ हाथापाई का केस दर्ज हुआ। कुछ वर्षों बाद पैसे के लेनदेन को लेकर सत्यव्रत से झगड़ा हो गया। यहां से दोनों शत्रु हो गए। बाहुबली हरिशंकर तिवारी का हाथ विनोद के सिर पर था, इसलिए वह क्राइम के बाद भी बच जाता था।
हिन्दू युवा वाहिनी के नेता को सरेआम पीटा
रेलवे के ठेकों के अतिरिक्त विनोद एफसीआई का भी ठेका लेता था। एकबार ठेके को लेकर ही हिन्दू युवा वाहिनी के सुनील सिंह से टकराव हो गया। विनोद और उनके लोग दिन में दो बजे सुनील सिंह को उठा ले आए। उन्हें गोरखपुर शहर के अंदर विजय चौराहे से गणेश होटल तक पीटते हुए ले गए। सुनील छोड़ देने की प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन पीटने वालों को तरस नहीं आया। बाद में मुद्दा दर्ज हुआ पर कार्रवाई नहीं हुई।
बसपा के जरिए राजनीति में शुरुआत
विनोद उपाध्याय ने अपनी राजनीति की आरंभ बीएसपी से की। बीएसपी महासचिव सतीश मिश्रा से नजदीकी के कारण पार्टी ने विनोद को गोरखपुर का प्रभारी बना दिया। 2007 में गोरखपुर सदर सीट से प्रत्याशी बनाया। मायावती स्वयं विनोद के समर्थन में रैली करने गोरखपुर गई, लेकिन जब नतीजे आए तो विनोद चौथे जगह पर रहा। बीजेपी के डाक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल लगातार दूसरी बार सदर सीट से विधायक बन गए।
पीडब्ल्यूडी कांड
2007 तक विनोद पर 9 मुकदमें हो चुके थे। कई बार कारावास जा चुका था। 2007 में सिविल लाइंस क्षेत्र में विनोद उपाध्याय गैंग पर लाल बहादुर गैंग ने अंधाधुन्ध फायरिंग कर दी। विनोद गैंग के लोगों को पिस्टल निकालने तक का समय न मिला। गोलियां गाड़ियों के चीरती हुई शरीर में घुसने लगी। गोलियों की तड़तड़ाहट थमती उसके पहले ही विनोद गैंग के रिपुंजय राय और देवरिया के सत्येंद्र की सांस थम गई थी। इस मुद्दे में मुकदमा लिखा गया अजीत शाही, संजय यादव, संजीव सिंह, इंद्रकेश पांडेय समेत 6 लोगों के खिलाफ। लाल बहादुर को आरोपी नहीं बनाया गया।
एक के बाद एक अपराध
विनोद के विरुद्ध 2007 में लखनऊ के हजरतगंज पुलिस स्टेशन में मर्डर का केस दर्ज हुआ। 2008 में मर्डर के कोशिश का केस दर्ज हुआ। एक तरफ पुलिस जांच कर रही थी और दूसरी तरफ विनोद क्राइम करते जा रहा था। इस दौरान विनोद की नजर विवादित जमीनों पर टिक गई। कई जमीनें अपने और अपने लोगों के नाम करवा ली। दूसरे गैंग में क्या चल रहा इसे पता करने के लिए हर गैंग में विनोद ने चालाकी के साथ अपने लोगों की एंट्री करवा दी।
दो हत्याओं का बदला
लाल बहादुर यादव राजनीति में आ गया। पिपरौली के ब्लॉक प्रमुख बन गया। मई 2014 को गोरखपुर यूनिवर्सिटी आया तो गेट के सामने गोली मारकर मर्डर कर दी गई। मृत्यु का बदला मृत्यु के रूप में पूरा हो गया। गोरखपुर कैंट पुलिस ने विनोद उपाध्याय समेत कुल 14 लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया। तीन फरार हैं, बाकी इस समय कारावास में हैं।
जेल गया पर रौब कम न हुआ
विनोद पर 2014 में मर्डर का प्रयास, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट के अनुसार मुकदमा दर्ज हुआ। 2020 आते-आते विनोद पर गंभीर धाराओं में दर्ज मुकदमों की संख्या 25 पहुंच गई, जो अब बढ़कर 32 हो गई है। जमानत पर छूटा तो फरार हो गया।। पुलिस ने 25 हजार का पुरस्कार घोषित कर दिया। 17 जुलाई 2020 को पुलिस ने विनोद को गोमतीनगर के विपुल खंड से अरैस्ट कर लिया। यहां से विनोद और उसके लोगों की जमीनों से कब्जा छुड़वाने में लग गई।
17 जुलाई 2020 को गोरखपुर पुलिस ने विनोद को लखनऊ में अरैस्ट कर लिया। लेकिन, कारावास जाने के बाद भी माफिया का रौब कम नहीं हुआ।
छोटा भाई भी दबंग
विनोद के पांच भाईयों में तीन दबंग हैं। विनोद के सबसे छोटे भाई संजय उपाध्याय ने एकबार असुरन चौकी पर एक पुलिसवाले को थप्पड़ मार दिया। इस थप्पड़ के बाद पुलिस की नजर में चढ़ गए। सियासी पार्टियों ने भी इसके बाद किनारा करना प्रारम्भ कर दिया।
पुलिस अभी तक विनोद उपाध्याय की करीब 4 करोड़ रुपए की संपत्ति बरामद कर चुकी है। विनोद के गैंग के लाल बाबू यादव की दो कार सहित 13 लाख की संपत्ति, सूरज पासवान का एक ट्रैक्टर, पक्का मकान, अर्जुन पासवान की चार, चार पहिया गाड़ी, जमीन के साथ 96 लाख रुपए की संपत्ति बरामद कर ली है। अभी विनोद नाम का सूरज अस्त होने की दिशा में अग्रसर है।