कभी नहीं थे बच्चों की फीस भरने के पैसे, आज दूसरों को दे रहीं रोजगार
जीवन में कई मुसीबतें आती हैं कोई इन मुसीबतों से हार जाता है तो कोई इन मुसीबतों का डटकर मुकाबला करता है। मुसीबतों का डटकर मुकाबला करती हुई अमेठी की रीता यादव ने न केवल स्वयं को रोजगार की मुहिम से जोड़ा, बल्कि अन्य स्त्रियों को भी उन्होंने रोजगार दिया। आज कम पैसों में प्रारम्भ किए गए रोजगार ने रीता यादव की पहचान न केवल जिले में बनाई है। बल्कि प्रदेश के भिन्न-भिन्न जिलों में रीता यादव के बनाए कपड़े भेज जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं अमेठी जिले के गौरीगंज के पचेहरी गांव की रहने वाली रीता यादव की। उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई की है। पढ़ाई करने के बाद जब वे घर में अकेली रहती थी तो उन्हें अन्य स्त्रियों की तरह रोजगार की मुहिम से जुड़ना था और इसके लिए उन्होंने कई अथक कोशिश भी किए। लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। बार-बार के कोशिश के बाद भी जब रीता यादव को कामयाबी नहीं मिली तो उन्होंने अपनी एक सहेली के साथ मिलकर समूह जोड़कर कपड़े बनाने का काम प्रारम्भ कर दिया।
महिलाएं बनी रहीं आत्मनिर्भर
समूह में जुड़ने के बाद रीता यादव ने कम समय में अधिक लोगों तक अपनी पहचान बना ली है। धीरे-धीरे उन्होंने स्वयं के समूह की आरंभ की और समूह के जरिए उन्होंने स्त्रियों को घर बैठे रोजगार देने के लिए कपड़े बनाने के व्यवसाय की आरंभ की। रीता और उनके समुह द्वारा जो कपड़े बनाए जाते हैं, उनमें सूट-सलवार, साड़ी, ब्लाउज के साथ अन्य कपड़े रीता यादव के उजाला समूह में तैयार किए जाते हैं। इस समूह से उन्हें काफी लाभ होता है, उनके समूह में बड़ी संख्या में महिलाएं भी जुड़ी हैं, जो कपड़े तैयार कर स्वयं अच्छा खासा फायदा कमा रही हैं।
आर्थिक तंगी से परेशान थी रीता
रीता यादव ने खास वार्ता में कहा कि जब उनके पास रोजगार नहीं था तो उन्हें काफी समस्याएं थी। बच्चों की पढ़ाई में बाधाएं थी, घरवालों से पैसे मांगने पड़ते थे, घर से निकलना भी नहीं हो पाता था। लेकिन जब से वह इस काम में जुड़ी हैं तब से उन्हें किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है। आज वह गांव-गांव जाकर स्त्रियों को सतर्क करती हैं। जो महिलाएं बेरोजगार हैं, उन्हें अपने साथ समूह में जोड़ती हैं। इस रोजगार से उन्हें काफी लाभ है और इसमें उनके परिवार ने उनका पूरा योगदान किया है। रीता यादव का बोलना है कि हर स्त्री रोजगार से जुड़े और हर स्त्री स्वलंबी हो।