उत्तर प्रदेश

Know Your Rights: आइए जानें, शादी होने जाने के बाद बेटी के संपत्ति में क्या अधिकार…

Property rights of a woman as daughter pros and cons: पारपंरिक रूप से घर-परिवार के संबंध नातों में विभिन्न रोल निभाने वाली महिला को यह पता ही नहीं होता था कि उसके संविधानसम्मत या कानूनसम्मत कुछ अधिकार भी हैं अधिकारों के मुद्दे में घर के मर्दों द्वारा जो बता दिया जाता, जो दे दिया जाता, वह उसे स्वीकार लेती थी वैसे लंबा समय भी नहीं हुआ है जब स्त्रियों को उनके वाजिब अधिकार दर्ज हुए, उन्हें बेटों के बराबर ही सेवाओं, सुविधाओं और वस्तुओं का हकदार माना गया हिंदुस्तान में बेटी और बेटे दोनों को माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची के तहत, बेटी और बेटा दोनों प्रथम श्रेणी (Class I Heirs) के उत्तराधिकारी हैं और उन्हें समान हिस्सेदारी मिलती है हमने स्त्रियों को उनके वित्तीय अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक सीरीज प्रारम्भ की हुई है इस मामले में हमने कानूनी मामलों के जानकारों से बात की और रिसर्च की

आइए जानें विवाह होने जाने के बाद बेटी के संपत्ति में क्या अधिकार हैं, क्या बेटी को संपत्ति या वसीयत से बेदखल किया जा सकता है, दादा दादी यानी पैतृक संपत्ति पर उसके क्या अधिकार हैं, बेटा या बेटी का हिस्सा कैसे तय होता है, पिता ने वसीयत की ही नहीं तो क्या होगा ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर आइए जानें… (यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कानून की व्याख्या न्यायालय करता है, इसलिए कई बार मुद्दा फंसने पर मुकदमा टू मुकदमा न्यायालय जजमेंट में कानून की व्याख्या भिन्न भिन्न कर सकता है)

शादी के बाद बेटी के संपत्ति में अधिकार पर क्या कहता है कानून…

सुप्रीम न्यायालय में प्रैक्टिसरत वकील और नेशनल कमिशन फॉर वीमन (NCW) की पूर्व सदस्य चिकित्सक चारू वलीखन्ना के मुताबिक, आमतौर पर समाज में मान लिया जाता है कि यदि बेटी की विवाह हो गई और उसे दहेज या स्त्रीधन के तौर पर सामान आदि इत्यादि दिया गया है तो वह अपने मायके (पिता) की संपत्ति में अधिकार नहीं मांग सकती लेकिन कानून यह नहीं मानता है और पिता की संपत्ति में बेटे को जितना अधिकार है, उतना ही अधिकार बेटी को भी है चारू कहती हैं, यदि बेटी की विवाह हो जाती है तो न तो उसके और न ही बेटे के अधिकार विवाह पर समाप्त होते हैं बेटा और बेटी दोनों ही, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी बने रहेंगे

बेटे या बेटी को किया जा सकता है बेदखल…

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार, वसीयत न होने की स्थिति में बेटी को भी बेटे के समान अधिकार है यदि वसीयत है तो वसीयतकर्ता को पूरा अधिकार है कि वह जिसे चाहे संपत्ति की वसीयत कर दे ऐसे में यह भी होता देखा गया है कि माता-पिता संपत्ति पर बेटे को अधिकार दे देते हैं और बेटियों को विरासत से बेदखल कर देते/कर सकते हैं  

पैतृक संपत्ति और सेल्फ- अक्वॉयर्ड संपत्ति में अधिकार है या नहीं?

हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 में आने वाले ‘महिलाओं के संपत्ति के उत्तराधिकार के अधिकार’ में पहले मुकाबले कुछ जरूरी परिवर्तन किए गए अधिनियम के अनुसार धारा 6 के प्रावधानों में संशोधन किया गया जिससे महिलाएं बेटों के समान समान रूप से सहदायिक अधिकारों (co-parcenary) की हकदार थीं वे अपने पिता की पैतृक और स्व-कब्जे (self acquired) वाली संपत्ति के बंटवारे और कब्जे का दावा कर सकती हैं पहले एक स्त्री को संयुक्त परिवार की संपत्ति में रहने का अधिकार था, लेकिन बंटवारा मांगने का अधिकार नहीं था, जिसे सिर्फ़ पुरुष सदस्य ही मांग सकते थे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में संशोधन से पहले, एक बेटी सहदायिक नहीं थी और इसलिए, वह विभाजन का दावा करने की हकदार नहीं थी अब यह बदल गया गया है

बेटी की मृत्यु पिता से पहले होने पर…?

यह भी संभव है कि बीमारी रोग या हादसा के चलते बेटी की मृत्यु हो जाए ऐसे में पिता की संपत्ति में बेटी की संतान को वही अधिकार मिलेगा जो बेटी के जीवित होने पर बेटी को मिलता यह बात जेंडर स्पेसिफिक नहीं है बेटी और बेटा, दोनों की मृत्यु पर यही कानून लागू होता है 

पिता का वसीयत लिखकर गुजरना, और पिता का बिना वसीयत किए गुजर जाना, कानून में ये दो भिन्न भिन्न परिस्थितियां हैं वसीयत कर दी गई है तो इसी हिसाब से अधिकार मिलेगा लेकिन यदि नहीं की थी और मृत्यु हो गई थी, घर के मुखिया यानी पिता या पति का बिना वसीयत किए मृत्यु हो जाता है तो विरासत की संपूर्ण हकदार पत्नी होती है पत्नी जो अब विधवा हो चुकी है अब यह पत्नी पर निर्भर करता है वह इस संपत्ति पर किसे क्या अधिकार देती है

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