उत्तर प्रदेश

26 साल के लड़के ने अपने माता-पिता की कर दी हत्या,घर में बैठकर किया पुलिस का इंतजार

उत्तर प्रदेश के झांसी में 26 वर्ष के लड़के ने अपने माता-पिता की मर्डर कर दी मर्डर के बाद नहाया फिर कपड़े बदले घर में बैठकर पुलिस का प्रतीक्षा किया पुलिस के आते ही जोर-जोर से हंसने लगा बोला- मम्मी-पापा को मैंने ही मारा है

 

अंकित रेलवे हॉस्पिटल में कंपाउंडर की नौकरी करता था, लॉकडाउन लगा तो जॉब छोड़ दी इसके बाद उसे PUB-G की लत लग गई माता-पिता और बहनों के समझाने पर हाथापाई करता फिर एक दिन इतना गुस्सा हो गया कि अपने ही मां-बाप को मार डाला

गेम खेलते-खेलते किसी का खून कर देने वाला ये कोई पहला मुद्दा नहीं था इससे पहले भी PUB-G की लत कई परिवारों को बर्बाद कर चुकी है आइए पहले इन भयावह कहानियों से गुजरते हैं फिर डॉक्टरों से इस जानलेवा लत के बारे में समझेंगे

  • पहले वह मुद्दे जिनमें खिलाड़ी गेम खेलते-खेलते हत्यारा बन गए…

केस 1: तवे से मां-बाप का सिर फोड़ दिया
अंकित बेरोजगार था, घर पर खाली रहते-रहते गेम खेलने की आदत पड़ गई माता-पिता गेम खेलने के लिए इंकार करते तो उनके साथ बहस करता धीरे-धीरे उसके बर्ताव के कारण घरवाले अंकित से डरने लगे मां विमला इतना डर गईं कि लक्ष्मी प्रसाद ( अंकित के पिता) के ऑफिस जाने के बाद पड़ोसियों के घर पर रहतीं अंकित 6 महीने तक घर से बाहर नहीं निकला 5 जुलाई को अंकित पर इतना खून सवार हुआ कि उसने अपने ही मां-बाप को पीट-पीटकर मार डाला

बुजुर्ग दंपत्ति की पीएम रिपोर्ट में पता चला कि अंकित ने पिता के सिर पर तवे से 8 वार और मां के सिर पर 5 वार किए जिससे ब्रेनहेमरेज हो गया पिता की मौके पर ही मृत्यु हो गई जबकि मां जमीन पर पड़े-पड़े तड़पती रही

माता-पिता की मर्डर करने वाले अंकित की तस्वीर

मोबाइल अलमारी में रखने से तिलमिलाया अंकित
अंकित पबजी गेम खेलने के चक्कर में केवल खाना खाने आता फिर गेम खेलने लगता इंकार करने पर हाथापाई करता पिता ने लत छुड़ाने के लिए मोबाइल लैपटॉप लेकर अलमारी में रख दिया जिससे वो बौखला गया और घटना को अंजाम दिया

पुलिस हिरासत में भी मांगा मोबाइल
अंकित ने कारावास जाने के बाद एक बार भी माता-पिता के बारे में नहीं पूछा पुलिस हिरासत में केवल मोबाइल मांगता रहा पुलिस ने जब पूछा कि मोबाइल कहां रखा है, तो कहा अलमारी लॉकर में हालांकि पुलिस अलमारी के लॉकर की चाबी न होने की वजह से मोबाइल बरामद नहीं कर पाई

केस 2: पबजी खेलने से इंकार करने पर मां को मारा
लखनऊ के पीजीआई क्षेत्र में जून 2022 को नाबालिग लड़के ने अपनी मां को गोली मार दी पिता सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर हैं, उनकी पोस्टिंग पश्चिम बंगाल के आसनसोल में थी नाबालिग को गेम खेलने की लत थी मां गेम के लिए इंकार करती थी गुस्से में पिता की लाइसेंसी बंदूक से गोली मार दी और तीन दिन मृतशरीर के साथ रहा बहन को डराकर चुप करा दिया दोस्तों को घर बुलाकर पार्टी की, सभी के साथ पबजी गेम खेला

केस 3: नाबालिक लड़की ने मां और भाई को मारी गोली
मुख्यमंत्री आवास से कुछ मीटर दूरी पर वर्ष 2020 में एक 16 वर्ष की नाबालिग लड़की ने अपनी मां और भाई को गोली मार दी पिता दिल्ली रेलवे बोर्ड में प्रवक्ता थे नाबालिग ने अपने मां और भाई को गोली मारने के बाद शीशे पर जैम से ”डिस्कवालीफाइड ह्यूमन” लिखा इसके बाद उस पर गोली मार दी नाबालिग 9वीं क्लास की छात्रा थी और नेशनल लेवल की शूटर थी उसने कई मेडल भी जीते थे

केस 4: पिटाई से ठीक करने का कोशिश किया
लखनऊ के गोमती नगर में रहने वाले पुलिस अधिकारी हैं उनका 16 वर्ष का लड़का प्राइवेट विद्यालय में 9वीं का विद्यार्थी है कोविड के चलते औनलाइन क्लास चलने लगी सारी क्लास मोबाइल से करनी होती थी कोविड समाप्त होने के बाद भी मोबाइल पर पबजी गेम खेलने लगा पहले तो घरवालों ने इंटरटेनमेंट समझकर कुछ नहीं बोला लेकिन धीरे-धीरे उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा घर से बाहर भी निकले तो गेम ही खेलता

उसकी मां जब मोबाइल छीनती तो उनके साथ हाथापाई करता घर के सामान फेंकने लगता इसकी कम्पलेन पिता से की तो वो बच्चे की पिटाई करने लगे लेकिन उससे भी कुछ नहीं हुआ तो डॉक्टरों के पास लेकर आए बच्चे की काउंसिलिंग के बाद उसका उपचार प्रारम्भ किया गया

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फेसबुक पर 5 हजार दोस्त लेकिन असल में 5 नहीं
बलरामपुर हॉस्पिटल के चिकित्सक देवाशीष शुक्ला, एमडी (मनोरोग) बताते हैं कि हर दूसरे दिन पबजी जैसे गेम की लत में फंसे बच्चे आ ही जाते हैं कोविड के बाद से ये घटना काफी तेज बढ़ी है उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 से वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ने मोबाइल गेम की लत को गेमिंग डिसऑर्डर का नाम दिया है

मोबाइल से कोई भी वर्ग अछूता नहीं है धीरे-धीरे हमारी पूरी दुनिया मोबाइल में सिमटती जा रही है पहले लोग पेपर पढ़ते थे, अपने साथियों से मिलने के लिए समय निकालते थे लेकिन अभी के हालात ये हैं कि फेसबुक पर हमारे 5 हजार दोस्त हैं, रियलिटी में 5 दोस्त नहीं हैं इस तरह से लोगों के साइकोलॉजिकल और इमोशनल रिलेशन को बैलेंस करने में बहुत परेशानी आती है

गेम की तरह जीवन को भी सरल समझते हैं
गेम को बच्चे रियल लाइफ में कल्पना करते हैं ऐसे में जो पैरेंट्स अपने बच्चे को प्रारम्भ से नहीं समझाए होते हैं, उन्हें लगता है कि जैस हमारे गेम में चीजें ठीक हो जाती हैं वैसे ही असल जीवन में भी ठीक हो जाएगी इन गेम का बच्चों के बाल मन पर दुष्प्रभाव हो रहा है माता-पिता को बच्चों का टाइम स्लॉट बना देना चाहिए उसके हिसाब से ही मोबाइल दें घर से निकलते समय इंटरनेट की गति धीमें करके जाएं जिससे वो बफरिंग होता रहेगा तो बच्चे का ध्यान नहीं रहेगा

    

स्मार्ट बनाने के लिए न दें, स्मार्ट फोन
डॉक्टर देवाशीष शुक्ला कहते हैं, माता-पिता बच्चे को पैदा होते ही मोबाइल दिखाकर खाना खिलाते हैं वीडियो दिखाते हैं, वीडियो में दिख रहा लाल-पीला रंग बच्चों को आकर्षित करता है अपने बच्चे को स्मार्ट दिखाने के लिए सबके सामने मोबाइल देते हैं, और उससे चलवाते हैं जो सबसे घातक है

जरूरत के समय ही मां-बाप के करीब आते हैं बच्चे
आज कल माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल थमाकर अपनी मूल जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं उसी तरह बच्चे भी अब आवश्यकता के मुताबिक ही मां-बाप से प्यार करते हैं जब उन्हें कोई काम होता है, आगे पीछे रहकर दुलार करने लगते हैं इसको एक शब्द से परिभाषित किया जाता है, ‘मटेरिअलिस्टिक’ माता-पिता भी समझ जाते हैं, कि कोई काम होगा इसके बाद वो भी काम पूछकर उसे पूरा कर देते हैं

सोशल मीडिया के कंटेंट बहुत हावी
डॉक्टर अनिल कुमार बताते हैं, ऐसी घटनाएं कोविड के बाद से अधिक बढ़ी है औनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चे मोबाइल ले लेते हैं इसके बाद कुछ देर क्लास करने के बाद उसमें गेम और रील देखने लगते हैं रील देखने के परेशानी केवल बच्चों में ही नहीं अडल्ट में भी होती है

रील का कंटेंट इतना हावी होता है, कि कोई भी उसमें फिसल जाता है लेकिन अडल्ट समय की बर्बादी समझकर गिल्ट में आ जाते हैं, और मोबाइल रख देते हैं लेकिन बच्चों में किसी चीज की गिल्ट नहीं होती है ये सबसे मुख्य वजह है

एक वर्ष के बच्चे को मोबाइल दिखाना सबसे अधिक खतरनाक
माता-पिता अपने काम को हल्का करने के लिए बच्चों को मोबाइल पर वीडियो दिखाकर खाना खिलाते हैं ये सबसे अधिक गलत है एक वर्ष के नीचे की उम्र के बच्चों को मोबाइल दिखाना ही नहीं चाहिए जबकि 1 से 3 वर्ष की बच्चे यदि दिखा भी रहे हैं, तो आधे घंटे से अधिक नहीं खाने खाते समय मोबाइल देखना सबसे अधिक खराब होता है शरीर को मिलने  न्यूट्रीशन नहीं मिलता है

माता-पिता को करना होगा त्याग
आज कल माता-पिता दिनभर स्वयं भी दिन भर मोबाइल से जुड़े रहते हैं उनको स्वयं में बदलाव लाना होगा बच्चा जो देखता है, वो ही सीखता है मोबाइल का काम बस इतना रखें कि बस बात करके रख दें जैसे माता-पिता यदि पूजा पाठ करते हैं, तो वो भी उसी चीज को सीखेगा लेकिन आज कल पेरेंट्स स्वयं ही सोशल मीडिया पर इतनी रील देखते हैं, या फिर बनाते हैं कि बच्चा वही करता है

सोशल मीडिया की लत पर बनी डॉक्यूमेंट्री
डॉक्यूमेंट्री बताती भी है कि दुनिया में केवल दो धंधों में उसके प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने वाले को ‘यूजर’ कहकर बुलाते हैं एक सोशल मीडिया में और दूसरा ड्रग्स के धंधे में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाली मशीनें चाहें तो किसी भी राष्ट्र के नागरिकों को अपना मानसिक गुलाम बना सकती हैं ऐसा सोचा नहीं गया था, लेकिन ऐसा हो गया है

‘द सोशल डिलेमा’ में ये देखकर आप चौंक सकते हैं कि कैसे आपकी स्क्रीन की दूसरी तरफ से संचालित हो रही मशीनें आप पर हर पल नजरें रखे हुए हैं आप कहां हैं, किसके साथ हैं, आपके आसपास कौन है, इस सब पर नजर रखते हुए आपकी भावनाओं को और आपकी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित किया जा चुका है बच्चों का बर्ताव इन सोशल मीडिया साइट्स के चलते कैसे बदल रहा है, कैसे वे झूठे प्रचार अभियान का हिस्सा बनकर अपना जीवन खतरे में डाल रहे हैं, इन सबका खुलासा इस फिल्म में होता है

 

 

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