उत्तर प्रदेश

तमाम राजनीतिक दांव-पेंच के बीच कौशांबी आज भी जोत रहा है विकास की राह

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन प्रारम्भ हो गए हैं. यूपी में सभी सातों चरणों में वोट डाले जाएंगे. लेकिन अभी तक कई सीट ऐसी हैं जिन पर प्रत्याशियों को लेकर असमंजस बना हुआ है. कौशांबी लोकसभा सीट उन्हीं में से एक है. कौशांबी क्षेत्र में राजा भैया की बढ़ती पैठ को देखते हुए किसी भी दल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. राजा भैया के राजनीति खासकर भाजपा में बढ़ते कद को देखते हुए वर्तमान सांसद विनोद सोनकर को फिर से टिकट दिए जाने पर सवालिया निशान लग गए हैं. अनेक सियासी दांव-पेंच के बीच ईश्वर गौतमबुद्ध की नगरी बोला जाने वाला कौशांबी आज भी विकास की राह जोट रहा है.

कौशाम्बी लोकसभा सीट ऐसी सीट है, जहां राजा भैया का जादू काम करता है. इस बार भी चुनाव में उनका पूरा असर देखने को मिलेगा, क्योंकि भाजपा में उनकी दखल लगातार बढ़ रही है. राज्यसभा के चुनाव में राजा भैया ने खुलकर भाजपा का समर्थन किया था. ऐसे में देखना होगा कि लोकसभा में राजा भैया के असर के आगे कौन टिक पाता है.

उत्तर प्रदेश का कौशांबी जिला प्रचीन वत्सदेश की राजधानी रहा है. 250 ईसा पूर्व कौशांबी के घोषिता राम बिहार में ईश्वर बुद्ध चतुर्मास रहने आए थे. जैन धर्म के छटे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्मस्थली है. यहां की 80 प्रतिशत जनसंख्या खेती-किसानी पर निर्भर है. उद्योग न होने से ज्यादातर मजदूर मुंबई, दिल्ली, पंजाब, गुजरात आदि राज्यों में काम की तलाश में चले जाते हैं.

हर स्थान पिछड़ा है कौशांबी
कौशांबी के पश्चिम में फतेहपुर, उत्तर में प्रतापगढ़, दक्षिण में चित्रकूट के विकास के सापेक्ष कौशांबी बहुत ही पिछड़ा जिला है. पिछले सात सालों से प्रदेश गवर्नमेंट में उपमुख्यमंत्री रहते हुए केशव प्रसाद मौर्य भी जिले में बहुत विकास नहीं कर सके. विकास की दृष्टिकोण से देखा जाए तो ‘एक जनपद एक उत्पाद’ के भीतर केला उत्पादन पर कोई कार्य नहीं हुआ है. पुरातत्व स्थली को बुद्ध सर्किट से जोड़ने का काम बहुत ही धीमी गति से चल रहा है. मेडिकल कॉलेज में नियुक्ति की प्रक्रिया चालू नहीं हो सकी है. जिले में केंद्रीय विद्यालय खोलने का वादा पूरा नहीं हुआ. केंद्र की 10 सालों की गवर्नमेंट और प्रदेश की सात सालों में यहां के लोगों को जनप्रतिनिधियों से निराशा हाथ लगी है.

कौशांबी के जातीय समीकरण
पिछले पांच पंचवर्षीय चुनाव को देखें तो 2014 से भारतीय जनता पार्टी-बीजेपी के विनोद सोनकर चुनाव जीते थे. जबकि इसके पहले सपा से शैलेन्द्र कुमार दो बार सांसद निर्वाचित हुए. 1999 के चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार सुरेश पासी चुनाव जीते थे. जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 46 फीसदी अनुसूचित जाति, 36 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग, करीब 13 प्रतिशत मुसलमान और सात फीसदी सामान्य जाति के लोग यहां निवास करते हैं. जिले की साक्षरता रेट 58 प्रतिशत है.

कौशांबी लोकसभा सीट
प्रतापगढ़ तक फैला कौशांबी निर्वाचन क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया था. कौशांबी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट का गठन प्रतापगढ़ जिले की दो विधानसभाओं और कौशांबी जिले को मिलाकर साल 2008 में किया गया था. अभी यहां से भाजपा के विनोद कुमार सोनकर सांसद हैं. लेकिन सीट पर रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया’ का काफी सियासी दखल है.

यहां पहली बार साल 2009 में लोकसभा चुनाव हुए थे और सपा के शैलेन्द्र कुमार सांसद बने थे. इसके बाद 2014 के चुनाव में भाजपा से विनोद कुमार सोनकर उतरे. मोदी लहर में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार पासी को 42,900 वोटों से पराजित कर विजयी बने. 2019 के चुनाव में भाजपा ने विनोद सोनकर पर फिर भरोसा जताया और उन्हें उम्मीदवार घोषित किया. विनोद सोनकर ने 3.83 लाख वोट पाकर चुनाव जीत लिया है. समाजवादी पार्टी के इंद्रजीत सरोज 3.44 लाख वोट पाकर दूसरे स्‍थान पर रहे.

सांसद ने गिनाईं उपलब्धि
कौशांबी के सांसद विनोद कुमार सोनकर से बात की गई तो वे 10 साल की उपलब्धियां गिनाने लगे. उन्होंने कहा कि जिले में आधुनिक ट्रामा सेंटर का निर्माण कराया गया. कादीपुर में राजकीय मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य प्रगति पर है. सभी सीएचसी, पीएचसी में आक्सीजन प्लांट लगवाए गए हैं. मंझनपुर में 10 करोड़ से रोडवेज बस डिपो का निर्माण कराया गया. एक हजार करोड़ रुपये की लागत से प्रयागराज में एयरपोर्ट से कौशांबी तक चार लाइन की सड़क का निर्माण जारी है. 12 करोड़ रुपये की लागत से कड़ा बदनपुर और असदपुर घाट का निर्माण और सुंदरीकरण कराया गया. इस तरह उन्होंने एक लंबा-चौड़ा चिट्ठा सामने रख दिया.

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