शी जिनपिंग दिल्ली में हो रहे जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने की जताई उम्मीद
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (US President Joe Biden) ने बृहस्पतिवार को आशा जताई कि चीन के उनके समकक्ष शी जिनपिंग त्रChinese President Xi Jinping) हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में हो रहे जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। अगले हफ्ते नयी दिल्ली में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) में बाइडन समेत विश्व के करीब दो दर्जन से ज्यादा नेता भाग लेने वाले हैं जिसकी मेजबानी पीएम मोदी (Narendra Modi) करेंगे।
हाल में मीडिया में आई खबरों के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे। बाइडन ने बृहस्पतिवार को सम्मेलन में राष्ट्रपति शी के हिस्सा लेने को लेकर पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्न पर बोला कि मुझे आशा है कि वह जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे।
इस बीच एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) में ‘साउथ एशिया इनिशिएटिव्स’ की निदेशक फरवा आमेर ने बोला कि राष्ट्रपति शी के हिंदुस्तान में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन में भाग न लेने को इस बात के सबूत के रूप में देखा जा सकता है कि चीन इस समय हिंदुस्तान को केंद्र यानी नेतृत्व का जगह सौंपने के लिए इच्छुक नहीं है।
G-20 सम्मेलन के दौरान बंदर भगाने का अनोखा तरीका, NDMC एरिया में इन जगहों पर लगाए लंगूरों के कटआउट
आमेर ने बोला कि अब तक का सबसे जरूरी घटनाक्रम… जो कुछ लोग कह सकते हैं कि अपेक्षित था… वह राष्ट्रपति शी का हिंदुस्तान द्वारा आयोजित आनें वाले जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ना लेने का निर्णय है। इस कदम के बहुत से अर्थ हैं।
उन्होंने बोला कि सबसे पहले यह संभावना व्यक्त किया जा सकता है कि हिंदुस्तान को नेतृत्व की कमान सौंपने के लिए चीन इच्छुक नहीं है, विशेषतौर पर इस क्षेत्र में और व्यापक पड़ोस में। यह निर्णय प्रमुख किरदार और असर बनाए रखने के चीन के इरादे को रेखांकित करता है जो क्षेत्र में नाजुक शक्ति संतुलन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
आमेर ने कहा कि दूसरी बात यह है कि राष्ट्रपति शी की अनुपस्थिति एक अनुस्मारक के रूप में कार्य कर रही है कि सीमा पर तनाव कम करने के लिए लगातार और जटिल राजनयिक प्रयासों की जरूरत होगी। दोनों राष्ट्रों के बीच वार्ता की प्रक्रिया लंबी चलेगी जो हिमालय क्षेत्र के व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य और कहीं न कहीं अमेरिका के साथ चीन की सामरिक प्रतिस्पर्धा से जुड़ी होगी।
आमेर ने बोला कि आगे देखते हुए, यह साफ है कि चीन-भारत संबंध जटिल क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। सीमा संबंधी मामले ऐतिहासिक विवादों, राष्ट्रीय गौरव और रणनीतिक हितों के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। वैसे दोनों राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय मंच पर असर के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसलिए उनकी वार्ता न सिर्फ़ क्षेत्रीय गतिशीलता से बल्कि चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा से भी प्रभावित होगी।
उन्होंने कहा कि साल 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से चीन-भारत संबंधों में बढ़ते तनाव और अनसुलझे सीमा मुद्दों को देखा गया है। कई दौर की राजनयिक चर्चाओं और कोर कमांडरों की हालिया बैठक के बावजूद, सीमा विवादों का साफ और सरल निवारण सामने नहीं आ रहा है।
उन्होंने बोला कि हाल में संपन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित बैठक के संकेत थे। लेकिन वास्तव में वार्ता एक संक्षिप्त आदान-प्रदान तक ही सीमित रही, जो संबंधों में गहरी जटिलताओं को दर्शाती है।
आमेर ने बोला कि इसके बाद चीन द्वारा एक नया नक्शा जारी किया गया, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश और विवादित अक्साई चिन पठार पर उसने अपनी संप्रभुता का दावा किया, जिससे तनाव और बढ़ गया।
विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा चीन के दावे को ‘बेतुका’ बताए जाने सहित हिंदुस्तान के कड़े विरोध ने स्थिति की गंभीरता को रेखांकित किया। अपनी ओर से, चीन ने एक जानी-पहचानी रणनीति अपनाते हुए सभी पक्षों से सामान्य बने रहने और मामले की अधिक व्याख्या करने से बचने का आग्रह किया।