वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा की प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा
लखनऊ | आनें वाले लोकसभा चुनाव से पहले सपा को एक और बड़ा झटका लगा है। वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया है। इसकी जानकारी उन्होंने स्वयं सोशल मीडिया एक्स के जरिए दी है।
समाजवादी पार्टी की सदस्यता और MLC पद से त्याग-पत्र देने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, अखिलेश यादव समाजवादी विचारधारा के उल्टा जा रहे हैं…मैं 22 फरवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं से वार्ता के बाद पार्टी बनाने के अपने निर्णय का उद्घोष भी करूंगा।
मौर्य ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को त्याग-पत्र देते हुए लिखा,”आपके नेतृत्व में सौहार्दपूर्ण वातावरण में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। लेकिन 12 फरवरी 2024 को हुई वार्ता एवं 13 फरवरी 2024 को प्रेषित पत्र पर किसी भी प्रकार की वार्ता की पहल न करने के फलस्वरूप मैं सपा की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे रहा हूं।”
स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे लिखा, ”मैं सपा के प्रत्याशी के रूप में उत्तरप्रदेश विधान परिषद का सदस्य हूं। वैसे मैंने सपा की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है, ऐसे में नैतिकता के आधार पर उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे रहा हूं। कृपया स्वीकार करने की कृपा करें।”
इसके साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर समाचार आई की उन्होंने सपा से अलग होकर अपनी नयी पार्टी का गठन कर लिया है। इस पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी होगा। इसके साथ ही समाचार यह भी है कि वह पार्टी का झंडा लॉन्च कर चुके हैं। नीले, लाल और हरे रंग की पट्टी वाले इस झंडे में बीच में आरएसएसपी लिखा हुआ है।
बता दें कि अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहने वाले सपा के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने इससे पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से त्याग-पत्र दे दिया था। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसकी जानकारी भी अपने एक्स एकाउंट पर दी थी। उन्होंने त्यागपत्र को पोस्ट करते हुए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और सपा को टैग किया था।
स्वामी प्रसाद ने लिखा था कि मैं नहीं समझ पाया कि मैं एक राष्ट्रीय महासचिव हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है। दूसरी आश्चर्य यह है कि मेरे इस कोशिश से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का रुझान सपा की तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का कोशिश और वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूं, ऐसे भेदभावपूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए, मैं सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें। पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए तत्पर रहूंगा।