SC ने चुनावी बांड योजना पर सुनाया ये अहम फैसला
Electoral Bonds Case Verdict Supreme Court: केंद्र गवर्नमेंट के चुनावी बांड योजना को रद्द किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को बड़ा निर्णय चुनाया। शीर्ष न्यायालय ने बोला कि गुमनाम चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने निर्णय पढ़ते हुए बोला कि हम सर्वसम्मत फैसला पर पहुंचे हैं। दो राय है। एक मेरी और दूसरी न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की। दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। तर्क में थोड़ा अंतर है।
चीफ जस्टिस ने बोला कि याचिकाएं क्या संशोधन अनुच्छेद 19(1)(ए) के अनुसार सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, के बारे में है। पहले मामले पर न्यायालय ने माना है कि नागरिकों को गवर्नमेंट को उत्तरदायी ठहराने का अधिकार है। सूचना के अधिकार के विस्तार का जरूरी पहलू यह है कि यह सिर्फ़ राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए जरूरी जानकारी भी शामिल है।
सीजेआई ने बोला कि सियासी दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं। चुनावी विकल्पों के लिए सियासी दलों की फंडिंग की जानकारी जरूरी है। सियासी योगदानकर्ताओं को पहुंच मिलती है…इस पहुंच से नीति निर्माण होता है… चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय सुनाया। इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
चुनावी बांड योजना की घोषणा कब की गई थी?
चुनावी बांड योजना (Electoral Bond Scheme) की घोषणा 2018 में की गई थी। इस योजना को कॉमन कॉज, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) समेत कई पार्टियों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। पिछले वर्ष 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर सुनवाई की थी।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने क्या तर्क दिया?
कॉमन कॉज और एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष न्यायालय के सामने तर्क दिया कि नागरिकों को वोट मांगने वाली पार्टियों और उनके उम्मीदवारों के बारे में जानकारी पाने का पूरा अधिकार है। उन्होंने बोला कि लोगों के लिए यह पता लगाना कि प्रत्येक कंपनी ने कितना दान दिया है, संभव नहीं होगा। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बोला कि इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए डोनेशन को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ने की जरूरत हो। एसबीआई ने स्वयं बोला है कि बांड राशि को किसी भी समय और किसी अन्य उद्देश्य के लिए भुनाया जा सकता है।
चुनावी बांड क्या होता है?
चुनावी बांड योजना के अनुसार कोई भी एसबीआई (SBI) से चुनावी बांड खरीदकर सियासी दलों को डोनेशन दे सकता है। दान देने वाले की पहचान सीक्रेट रखी जाती है। योजना के अनुसार किसी भी बांड से मिली आय, जिसे जारी होने के 15 दिनों के भीतर भुनाया नहीं जाता है, पीएम राहत कोष में जमा की जाती है।