Make My Trip vs Booking.com : दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
Make My Trip Vs Booking.com: पिछले सप्ताह दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद डिजिटल क्षेत्र में ट्रेडमार्क उल्लंघन पर एक नयी बहस प्रारम्भ हो गई। यह बहस इस बात पर केंद्रित है कि क्या यह उपयोगकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा कर सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने क्या निर्णय सुनाया?
दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि औनलाइन विज्ञापन प्लेटफॉर्म Google Ads पर ट्रेडमार्क का इस्तेमाल ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के अनुसार उल्लंघन नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह निर्णय औनलाइन ट्रैवल एजेंसी मेकमाईट्रिप (एमएमटी) के इस दावे पर दिया कि उसके ट्रेडमार्क, ‘मेकमाईट्रिप’ और ‘एमएमटी’ का इस्तेमाल उसके प्रतिद्वंद्वी बुकिंग।कॉम के विज्ञापन और लिंक प्रदर्शित करने के लिए Google विज्ञापनों में कीवर्ड के रूप में किया जा रहा था।
हाई न्यायालय ने अपने निर्णय में बोला कि बुकिंग।कॉम एक लोकप्रिय वेबसाइट है। एमएमटी और बुकिंग।कॉम पर भ्रम की आसार कम है।
हाई न्यायालय के इस आदेश का मतलब यह है कि किसी आदमी या इकाई द्वारा किसी लोकप्रिय ब्रांड से जुड़ने के लिए मूल्य चुकाने की आसार हमेशा बनी रहती है। हालांकि, ऐसी कार्रवाई को ट्रेडमार्क का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
‘जरूरी नहीं कि ट्रेडमार्क का हर इस्तेमाल उल्लंघन हो’
आनंद और आनंद के एसोसिएट पार्टनर सिद्धांत चमोला ने बोला कि कानून ने यह तय करने के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं कि ट्रेडमार्क का उल्लंघन हुआ है या नहीं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि ट्रेडमार्क का हर इस्तेमाल उल्लंघन हो।
चमोला ने बोला कि भारतीय ट्रेडमार्क कानून में, उल्लंघन का निर्धारण यह देखने से होता है कि क्या एक औसत उपभोक्ता दो संस्थाओं के बीच भ्रमित हो सकता। सरल शब्दों में कहें तो यदि ‘मेक माई शो’ नामक एक काल्पनिक वेबसाइट एमएमटी के कीवर्ड का इस्तेमाल करती है तो इससे कंज़्यूमरों के बीच भ्रम पैदा होता और यह उल्लंघन होता।
हाई न्यायालय का आदेश यह दर्शाता है कि तीसरे पक्ष के ट्रेडमार्क का इस्तेमाल AdWords (Google की विज्ञापन प्रणाली) बोली में किया जा सकता है। हालांकि शर्त यह है कि इससे प्रायोजित लिंक और प्रदर्शित विज्ञापनों के बारे में कोई भ्रम न हो और उपयोगकर्ताओं को गुमराह न किया जाए।
अधिवक्ता शशांक अग्रवाल ने बोला कि कोई किसी ऐसे कीवर्ड के लिए Google विज्ञापन का भुगतान कर सकता है, जो किसी अन्य कंपनी का ट्रेडमार्क भी हो सकता है। हालांकि, जब तक संबंधित ट्रेडमार्क के इस्तेमाल में कोई भ्रम या विश्वासघात नहीं है, तब तक कोई उल्लंघन नहीं होगा।
14 दिसंबर को न्यायालय ने सुनाया फैसला
गौरतलब है कि 14 दिसंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने एमएमटी और गूगल से जुड़े मुद्दे पर निर्णय सुनाया था। यह फैसला जून 2022 के आदेश से उत्पन्न अपीलों में पारित किया गया था, जिसमें एक न्यायाधीश ने बुकिंग।कॉम को एमएमटी के ट्रेडमार्क पर Google AdWords बोली लगाने से रोक दिया था। खंडपीठ ने अब उस आदेश को रद्द कर दिया। हाई न्यायालय की पीठ ने अपने निर्णय के लिए धारा 29(2), 29(4), 29(8) और 29(7) सहित ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के प्रावधानों पर विचार किया था।