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Kisan Andolan: जानिए एमएसपी का पूरा गुणा-गणित…

Kisan Andolan :  किसान एक बार फिर से सड़क पर हैं चार राउंड की वार्ता फेल हो चुकी है गवर्नमेंट और किसान नेताओं के बीच वार्ता का कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है किसान एमएसपी का कानून की गारंटी से कम पर मानने को तैयार नहीं है, लेकिन किसानों की इस डिमांड को पूरा करने के लिए गवर्नमेंट अपनी मजबूरियां गिना रही है किसानों ने पूरे दल-बल के साथ फिर से दिल्ली कूच कर लिया है, तो वहीं दिल्ली बॉर्डर पर पुलिस की किलाबंदी और मजबूत हो गई है गवर्नमेंट ने किसानों को पांच वर्ष तक दाल, मक्का, कपास को एमएसपी पर खरीद का प्रस्ताव भी दिया, लेकिन किसानों ने एमएसपी पर कानून की जिद पकड़ ली है  लेकिन उनकी मांग को मानना गवर्नमेंट के लिए सरल नहीं है यदि गवर्नमेंट ने एमएसपी की मांगों को मान लिया तो आप भी महंगाई के लिए तैयार रहिए वहीं इसका असर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर भी होगा

किसान क्यों कर रहे हैं MSP की जिद  

प्रदर्शनकारी किसान एमएसपी से नीचे कुछ भी मानने को तैयार नहीं है किसान कानून बनवाकर एमएसपी पर फसलों की खरीद की बाध्यता चाहते हैं एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मिनिमम दर होता है, जिसपर गवर्नमेंट किसानों से अनाज खरीदती है हर वर्ष दो बार रबी और खरीफ के मौसम में बुवाई से पहले इसकी घोषणा करती है इसका मकसद किसानों को उन फसलों की पैदावार के लिए प्रोत्साहित करना है, जो एमएसपी के दायरे में है  एमएसपी की जिद पर अडे किसानों का बोलना है कि इस कानून से किसानों की आमदनी बढ़ेगी

MSP पुराना आइडिया

कृषि अर्थव्यवस्था के जानकारों की बोलना है कि एमएसपी 1960 के दशक का आइडिया है, जो अब के दौर के लिए परफेक्ट नहीं बठता उस समय राष्ट्र अनाज की कमी से जूझ रहा था उस वक़्त किसानों को अधिक फसल पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के कदम के तौर पर पर गवर्नमेंट ने एमएसपी की प्रबंध प्रारम्भ की थी, लेकिन अब अब राष्ट्र आवश्यकता से अधिक अनाज उगाता है राष्ट्र में ‘फूड सरप्लस’ का दौर है ऐसे में एमएसपी की आवश्यकता समाप्त हो गई है जानकारों की माने तो एमएसपी की प्रबंध हमेशा के लिए नहीं चल सकती है अब आवश्यकता से अधिक राष्ट्र में अनाज का भंडार है अब इसे रखने के लिए स्थान की कमी हो रही है, जिसके चलते बड़ी मात्रा में अनाज खराब हो जाता है

एमएसपी की मांग न मानने की गवर्नमेंट की मजबूरी

देश में जितना अनाज उग रहा है, गवर्नमेंट उसका सिर्फ़ 13-14 प्रतिशत एमएसपी के तौर पर खरीदती है, बाकी सारा अनाज खुले बाजार में बिकता है अनाज जो भी अनाज खरीदती है, वो भी गोदामों में भरा हुआ है, जिसे गवर्नमेंट बांट नहीं पाती है इसलिए सरकाकर ने निःशुल्क अनाज की योजना भी प्रारम्भ की  सीएसीपी की रिपोर्ट के अनुसार एफसीआई के गोदामों में गेहूं-चावल मिलाकर करीब 41  मिलियन टन अनाज भंडारन की प्रबंध है, लेकिन वहीं 74.4 मिलियन टन से अधिक अनाज स्टोर है शांता कुमार की रिपोर्ट की माने तो राष्ट्र के केवल 6 प्रतिशत किसानों को एमएसपी का फायदा मिलता है

एमएसपी की कानूनी गारंटी पर गवर्नमेंट की अतिरिक्त खर्च  

वहीं एफसीआई को एमएसपी के ऊपर मंडी से गेहूं खरीदने के लिए 14 प्रतिशत का मंडी टैक्स, आढ़त टैक्स, रूरल डेवलपमेंट सेस, पैकेजिंग, लेबर, स्टोरेजके अतिरिक्त उन अनाजों को बांटने के लिए 12 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है इसके अतिरिक्त 8 प्रतिशत होल्डिंग कॉस्ट यानी रखने का खर्च आता कुल मिलाकर एफसीआई एमएसपी के ऊपर गेहूं खरीदने पर 34 प्रतिशत अतिरिक्त खर्च करती है  यानी एमएसपी के चक्कर में एग्रीकल्चर इकोनॉमी पर अलग से दवाब बढ़ता है  जिन फसलों को एमएसपी में शामिल किया गया है, वो राष्ट्र के 5.6 राज्यों में उघता है वर्ष 2014 में  शांता कुमार की रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी का फायदा राष्ट्र के केवल 6 प्रतिशत किसानों को मिलता है  ऐसे में बाकी किसानों का क्या ?  इतना ही नहीं सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है कि क्या राष्ट्र अभी एमएसपी इस अतिरिक्त बोझ को सहने के लिए तैयार है

क्या बोझ उठाने की स्थिति में है सरकार

टाइम्स ऑफ इण्डिया के अनुसार हिंदुस्तान का सार्वजनिक ऋण जो वर्ष 2011-12 में 45.17 लाख करोड़ था वो वर्ष 2024-25 तक बढ़कर 183.67 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है जो राष्ट्र की जीडीपी का 80 प्रतिशत के करीब होगा भारत के डेट-टू-जीडीपी रेशियो को लेकर आईएमएफ ने भी चेतावनी दी हैअभी कुल ऋण राष्ट्र की जीडीपी के 81 प्रतिशत के बराबर है ऐसे में क्या गवर्नमेंट एमएसपी की कानूनी गारंटी देकर सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने की स्थिति में है गवर्नमेंट के लिए ये चिंता है या यूं कहें कि उसकी विवशता है

महंगाई के लिए आप भी रहिए तैयार  

अगर गवर्नमेंट किसानों की एमएसपी की मांगों को मानती है तो अर्थव्यवस्था और महंगाई पर भी असर पड़ सकता है किसानों को उनकी फसलों की एमएसपी खरीद की कानूनी गारंटी देना गवर्नमेंट के लिए सरल नहीं है कानूनी गारंटी देने के बाद गवर्नमेंट को सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदना ही होगा, चाहे उस अनाज की मांग हो या न हो एमएसपी की लीगल करने पर अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा क्रिसिल के अनुमान के अनुसार यदि गवर्नमेंट 23 फसलों में से 16 को भी एमएसपी पर खरीदती है तो सरकारी खजाने पर 10 से 13 लाख करोड़ का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा  गवर्नमेंट ने वर्ष 2022-23 में एमएसपी पर फसलों की खरीद के लिए 2.28 लाख करोड़ रुपये खर्च किए, जो कुल कृषि बजट का 6.25 प्रतिशत और एमएसपी फसलों की खरीद का केवल 25 प्रतिशत है
अगर ये कानूनी रूप लेता है तो आंकड़ा कहीं और पहुंच जाएगा यदि गवर्नमेंट किसानों की मांग को मान भी ले तो प्रश्न ये रहै कि पैसा कहां से आएगा?  जाहिर है कि या तो गवर्नमेंट बुनिया ढांचे और रक्षा खर्च में कटौती करने या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाकर धनराशि जुटाएगी लेकिन क्या आप इसके लिए तैयार है दूसरा पक्ष यह भी है कि गवर्नमेंट यदि किसानों से एमएसपी पर फसल खरीदेगी तो उसे उसी रेट या उससे ऊंचे मूल्य पर बेचेगी, यानी उन अनाजों या उनसे बनी चीजों की मूल्य बढ़ जाएगी

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