एक समय था जब बाबरी मस्जिद गिरने के बाद भी सैफई का वो ‘पहलवान’ मुसलमानों का रक्षक बनकर उभरा था। हां वो मुलायम सिंह यादव थे। आजादी के बाद से कांग्रेस पार्टी यह क्रेडिट ले रही थी लेकिन 1992 की उस घटना ने उत्तर प्रदेश ही नहीं, राष्ट्र की राजनीति में काफी कुछ बदलकर रख दिया था। आगे चलकर उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ बोला जाने लगा। आज के दौर में लगता है कि वो छवि समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य बनाना चाहते हैं। हां, जिस तरह से वह हिंदू धर्म पर कुछ भी बोल रहे हैं और देवी-देवताओं का मजाक उड़ा रहे हैं उससे यही लगता है कि शायद तुष्टीकरण का यह नया लेवल हो। ऐसे में इस प्रश्न पर भी बात होनी चाहिए कि 30-35 वर्ष पहले की बात अलग थी पर क्या आज भी इस तरह का तुष्टीकरण काम आएगा? 2014 में केंद्र में मोदी गवर्नमेंट बनने के बाद चुनाव जातिगत समीकरणों पर पूरी तरह आधारित नहीं रहा। ऐसे में कहीं जाने-अनजाने स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी का हानि तो नहीं कर रहे हैं?
90 के दशक में जातीय राजनीति फल-फूल रही थी। समाजवादी पार्टी ओबीसी विशेषकर यादवों की पार्टी बनकर उभरी, अनुसूचित जाति एवं जनजाति का वोट बीएसपी को जाने लगा। तब बीजेपी को ब्राह्मण-बनिया की पार्टी बोला जाता था। कांग्रेस पार्टी के साथ अपर कास्ट, मुस्लिम, आदिवासी वोट जोड़े जाते थे। लेकिन यूपीए गवर्नमेंट के समय उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग प्रारम्भ हुई। बीएसपी ने ब्राह्मण वोटों को साथ जोड़ा। नारे लगे- ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी दिल्ली जाएगा जबकि पहले गालियां दी जाती थीं। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने अपने जातीय खांचे से बाहर निकलकर अपर कास्ट और मुसलमानों को जोड़ा। आज के समय की राजनीति पूरी तरह बदल चुकी है। इसका क्रेडिट बीजेपी ले सकती है।
अब बीजेपी सभी वर्गों को अगुवाई देकर पूरी तरह ओबीसी और दलित वोटों को साध रही है। बीएसपी की हालत ऐसी हो गई कि एक-दो सीट जीतना कठिन हो रहा। समाजवादी पार्टी चाहकर भी बीजेपी को उत्तर प्रदेश में चुनौती नहीं दे पा रही। उसने कांग्रेस पार्टी का वोटबैंक तो छीना लेकिन बीजेपी को कमजोर नहीं कर सकी क्योंकि भगवा दल सर्वदलीय राजनीति कर रही है। ऐसे माहौल में स्वामी हैं कि समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं। इसकी एक बानगी पिछले दिनों तक देखने को मिली जब समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण प्रतिनिधियों के लिए आयोजित सम्मेलन में कई शिकायतें पहुंचीं। अखिलेश से बोला गया कि हिंदू धर्म, देवी-देवताओं और ब्राह्णणों के विरुद्ध इस तरह की बातें नहीं की जानी चाहिए। अब उनसे स्वामी के विरुद्ध ऐक्शन की मांग हो रही है।
स्वामी कह क्या रहे
आए दिन उनके बयान मीडिया की सुर्खियां बन रहे हैं। कभी वह लक्ष्मी मां के चार हाथ पर प्रश्न खड़े करते हैं तो कभी हिंदू धर्म के विरुद्ध ही बोलने लग जाते हैं। दो दिन पहले उन्होंने कह दिया कि हिंदू एक विश्वासघात है। लोग प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या स्वामी किसी दूसरे धर्म के विरुद्ध इस तरह से बोलने की हौसला कर सकते हैं? इसी समय ‘मुल्ला मुलायम’ वाली छवि भी उभरती है।
मुलायम ने कैसे किया प्रयोग?
90 के दशक में जब मंडल vs कमंडल की राजनीति चरम पर थी तो बीजेपी के योगदान से मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन बैठे। जनता दल गवर्नमेंट के पीएम वीपी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर ओबीसी को 27 फीसदी नौकरियों में आरक्षण का व्यवस्था कर दिया। लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ पर निकल पड़े। लालू यादव ने बिहार में रास्ता रोका लेकिन अयोध्या में कारसेवकों की तादाद बढ़ती जा रही थी। मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में बेकाबू कारसेवकों पर फायरिंग का आदेश दे दिया। ढांचा तो नहीं बचा लेकिन मुलायम की राजनीति चल पड़ी।
वह सेक्युलरिज्म के चैंपियन या कहें कि देवदुत बनकर उभरे। मस्जिद के ढहने के बाद भी मुलायम का मुसलमान वोटबैंक तैयार हो गया। 1992 के बाद समाजवादी पार्टी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती गई तो उसमें मुसलमान वोटरों की अहम किरदार रही। अब सिर्फ़ एक दो जाति या समुदाय के वोट से समाजवादी पार्टी को लाभ होने वाला नहीं है। हिंदू धर्म या देवी-देवताओं, रामचरितमानस के विरुद्ध बोलने से उनसे ब्राह्मण ही नहीं दूसरी जातियां भी नाराज हो सकती हैं। यह बात समाजवादी पार्टी को जितनी शीघ्र समझ में आ जाए उतना अच्छा है। केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने बोला है कि ये लोग धर्म का मतलब समझते ही नहीं हैं। इनका विचार केवल तुष्टीकरण के आधार पर है और वह तुष्टीकरण सत्ता और वोट के लिए है।