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समलैंगिक विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और पुनर्विचार याचिका दाखिल, जानें क्या की गई मांग

Same Sex Marriage Verdict Regarding Review Petition: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे में 17 अक्टूबर को दिए गए उच्चतम न्यायालय के निर्णय विरुद्ध गत एक नवंबर को पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी इस पर अब एक और पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है याचिककर्ता अमेरिका में एक कानूनी फर्म में काम करने वाले वकील उदित सूद है, जिनकी तरफ से याचिका को वकील मुकुल रोहतगी ने मुख्य जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के सामने रखा इस याचिका में मांग की गई है कि 28 नवंबर को पहले दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई खुली न्यायालय में की जाए वहीं इसके उत्तर में मुख्य जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बोला कि देखेंगे निवेदन की जांच करेंगे और निर्णय लेंगे

सुप्रीम न्यायालय का कानूनी मान्यता देने से इनकार

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मुकुल रोहतगी ने बोला कि पीठ के सभी न्यायाधीश इस बात से सहमत हैं कि भेदभाव हो रहा है, जिसका निवारण निकलना चाहिए पुर्नविचार याचिका पर सुनवाई 28 नवंबर को होनी है, जिसकी सुनवाई खुली न्यायालय में करने की मांग की गई है बता दें कि मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ , न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था यह निर्णय 2018 के ऐतिहासिक निर्णय के 5 वर्ष बाद आया 2018 में उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक यौन संबंधों पर प्रतिबंध को हटा दिया था 17 अक्टूबर के निर्णय में सुप्रीम कोर्टने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था

पुनर्विचार याचिका में दी गई हैं यह सभी दलीलें

सुप्रीम न्यायालय ने अपने निर्णय में बोला कि वे स्पेशल मैरिज एक्ट को समाप्त नहीं कर सकते सेम संभोग मैरिज को कानूनी मान्यता देने का काम संसद का है न्यायालय कानून नहीं बना सकती केंद्र और राज्य सरकारें तय करें कि समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देनी है या नहीं वहीं इस निर्णय के विरुद्ध एक नवंबर को दाखिल पुनर्विचार याचिका में बोला गया कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्व-विरोधाभासी और साफ रूप से अन्यायपूर्ण है उच्चतम न्यायालय के निर्णय में समलैंगिक समुदायों के साथ होने वाले भेदभाव को स्वीकार किया गया है, लेकिन उस भेदभाव का खात्मा करने के लिए कुछ नहीं किया गया उच्चतम न्यायालय के निर्णय में इस बात को भी नजरअंदाज किया गया कि शादी एक सामाजिक नियम है इसलिए उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध और समलैंगिकों के अधिकार के लिए लड़ाई जारी रहेगी

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