सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में SBI को जमकर लताड़ा…
SBI Electoral bonds: स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया यानी SBI.. जो राष्ट्र का सबसे बड़ा बैंक है। लेकिन भारतीय स्टेट बैंक का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में एक आवाज गूंजती है – आज नहीं हो पाएगा, कल आना। आज कैशियर छुट्टी पर है कल आना। मैनेजर छुट्टी पर हैं, अगले सप्ताह आना। अकसर मजाक में बोला भी जाता है कि भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारियों को काम करने के लिए नहीं बल्कि काम नहीं करने के लिए सैलरी मिलती है। लेकिन इस बार भारतीय स्टेट बैंक का पाला उच्चतम न्यायालय से पड़ गया। भारतीय स्टेट बैंक के ऑफिसरों ने सोचा था कि वो उच्चतम न्यायालय को कह देंगे कि 30 जून को आना और उच्चतम न्यायालय मान जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उच्चतम न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की डिटेल्स देने में देरी कर रहे भारतीय स्टेट बैंक को जमकर लताड़ लगा दी। चलिये, अब आपको बताते हैं कि ये पूरा मुद्दा आखिर है क्या?
सुप्रीम न्यायालय में एसबीआई की एक नहीं चली
15 फरवरी को उच्चतम न्यायालय की कानूनी पीठ ने Electoral Bonds को रद्द कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि भारतीय स्टेट बैंक 6 मार्च तक Electoral Bonds का ब्यौरा सार्वजनिक करे। लेकिन 4 मार्च को भारतीय स्टेट बैंक ने उच्चतम न्यायालय से 30 जून तक का समय देने की मांग कर दी। सोमवार को उच्चतम न्यायालय भारतीय स्टेट बैंक की इसी याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जिसमें भारतीय स्टेट बैंक की तरफ से राष्ट्र के नंबर वन वकील हरीश साल्वे पेश हुए थे। लेकिन हरीश साल्वे अपने Client..SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल देने के साथ-साथ और अधिक मोहलत हासिल करने में नाकामयाब रहे।
एसबीआई के पास चंद घंटों का वक्त
सुप्रीम न्यायालय की 5 जजों की संविधान पीठ ने निर्णय सुनाते हुए बोला कि SBI..12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। चुनाव आयोग, सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर अपलोड करे। यानी जो SBI.. Electoral Bonds की जानकारी देने के लिए चार महीने का समय मांग रहा था। उच्चतम न्यायालय ने उसे ऐसा करने के लिए केवल चंद घंटों का समय दिया है।
चौबे जी निकले थे छब्बे जी बनने
चौबे जी निकले थे छब्बे जी बनने, दुबे जी बनकर लौटे। ये कहावत भारतीय स्टेट बैंक पर बिलकुल फिट बैठती है। क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून तक का समय मांगने उच्चतम न्यायालय पहुंचे भारतीय स्टेट बैंक को अब कल तक सारी जानकारी देनी है। लेकिन प्रश्न ये है कि जो काम भारतीय स्टेट बैंक चार महीने में करने की सोच रहा था, क्या अब वो काम एक दिन में पूरा हो जाएगा। ये स्वयं भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने उच्चतम न्यायालय को बोला है।
SBI चार महीने क्यों मांग रहा था?
तो अब प्रश्न ये है कि फिर SBI..इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए चार महीने क्यों मांग रहा था ? क्या भारतीय स्टेट बैंक जान-बूझकर जानकारी देने में देरी करना चाहता था ? आज जिस तरह की दलीलें भारतीय स्टेट बैंक की तरफ से पैरवी कर रहे जाने-माने वकील हरीश साल्वे ने दी हैं और जिस तरह से उच्चतम न्यायालय की कानूनी पीठ की प्रतिनिधित्व कर रहे चीफ जस्टिस ने उन दलीलों को काटा है, उससे तो यही लगता है ।
सुप्रीम न्यायालय में भारतीय स्टेट बैंक की दलील
अब हम आपको भारतीय स्टेट बैंक की दलीलें और उन दलीलों पर उच्चतम न्यायालय के जजों की टिप्पणियों के बारे में बताते हैं। भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि हमें बोला गया था कि चुनावी बॉन्ड की प्रक्रिया को गुप्त रखना है। बॉन्ड डोनर की डिटेल और जिसने उस बॉन्ड को भुनाया, उसके डेटा का मिलान करने में 30 जून तक का समय लगेगा।
सुप्रीम न्यायालय ने क्या कहा?
इस दलील पर चीफ जस्टिस ने बोला कि हमारे आदेश में हमने सूचनाओं के मिलान की बात नहीं कही है। हमने केवल सूचनाओं को जाहिर करने की बात कही है। भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने बोला कि जब बॉन्ड खरीदे जाते हैं तो हम जानकारी बांट देते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने बोला कि लेकिन आखिर में तो सारी जानकारी मुंबई की मुख्य शाखा में भेजी जाती हैं। भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने बोला कि सिर्फ़ बॉन्ड नंबर ही साफ रहता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ऐसी चर्चाएं ना उठें कि इन-इन लोगों ने बॉन्ड खरीदे हैं। इस पर जस्टिस खन्ना ने बोला कि आप कहते हैं कि सारी जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में होती है। आपको केवल लिफाफा खोलना है और जानकारी दे देनी है।
।।आपको जानकारी देनी चाहिए
तब भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे ने माना कि मेरे पास पूरी जानकारी है कि बॉन्ड किसने खरीदे हैं। एक और जानकारी है कि किस सियासी दल ने बॉन्ड कैश किया। ये कोई परेशानी नहीं है। इसपर चीफ जस्टिस ने पूछा कि हमने 15 फरवरी को निर्णय दिया था। आज 11 मार्च हो गई है। पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए हैं। कुछ भी नहीं कहा गया है। आपको जानकारी देनी चाहिए।
26 दिन बीत गए कुछ तो हुआ होगा।।
इसके बाद हरीश साल्वे ने बोला कि हम एफिडेविट दे सकते हैं, लेकिन हम आपको नंबर्स की जानकारी देने की जल्दबाजी में गलती नहीं कर सकते। इस पर जस्टिस खन्ना ने बोला कि आप कह रहे हैं कि डोनर और किस पार्टी को डोनेशन दिया गया है, ये जानकारी आप दे सकते हैं। आपकी परेशानी केवल दोनों जानकारियों का मिलान करना है। 26 दिन बीत गए। कुछ तो हुआ होगा।
आप राष्ट्र के नंबर एक बैंक हैं।।
फिर हरीश साल्वे ने बोला कि हम कोई गलती करके कोई बवाल नहीं मचाना चाहते हैं। इस पर जस्टिस खन्ना ने बोला कि यहां किसी गलती का प्रश्न ही नहीं है। आपके पास KYC है। आप राष्ट्र के नंबर एक बैंक हैं। हम मानते हैं कि आप ये संभाल लेंगे। इसके बाद संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक से पूछा कि आपको 3 सप्ताह किस लिए चाहिए? सियासी दलों ने पहले ही डोनेशन के बारे में जानकारी दे दी है। बॉन्ड खरीदने वालों की भी जानकारी उपस्थित है।
करीब 40 मिनट चली बहस
करीब 40 मिनट चली इस बहस के दौरान हरीश साल्वे जैसे कद्दावर वकील जजों के प्रश्न उत्तर के दौरान Backfoot पर नजर आ रहे थे। अपनी दलीलों से जजों को प्रभावित नहीं कर पा रहे थे। वकील हरीश साल्वे की सारी दलीलों को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक को 24 घंटे के अंदर Electoral Bonds की डिटेल्स देने का आदेश दे दिया है।
SBI कैसे 24 घंटे में डिटेल्स दे देगा?
लेकिन भारतीय स्टेट बैंक आखिर कौन सी जानकारी जुटाने के लिए चार महीने मांग रहा था। और अब वो कैसे 24 घंटे में डिटेल्स दे देगा। दरअसल अब भारतीय स्टेट बैंक को वो डिटेल्स देनी ही नहीं है जिसे जुटाने के लिए वो चार महीने मांग रहा था। और जो डिटेल्स अब उसे देनी है, उसे देना चंद घंटों का ही काम है। इस बात को समझने के लिए भारतीय स्टेट बैंक की दलील और उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर गौर करना महत्वपूर्ण है ।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी सूचनाओं के दो सेट
सुप्रीम न्यायालय में हरीश साल्वे ने बोला कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी सूचनाओं के दो सेट हैं। एक सेट, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड्स के खरीदारों की सूचना है। दूसरा सेट, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड्स को भुनाने वाले सियासी दलों की सूचना है। हरीश साल्वे ने सुनवाई के दौरान बोला कि दोनों सेट के मिलान के बाद ही साफ रूप से पता चल पाएगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। और इस मिलान के लिए ही भारतीय स्टेट बैंक को चार महीने का समय चाहिए था।
वो सूचना तो उच्चतम न्यायालय ने मांगी ही नहीं
लेकिन उच्चतम न्यायालय ने बोला कि जिस सूचना के लिए भारतीय स्टेट बैंक को चार महीने चाहिए थे, वो सूचना तो उच्चतम न्यायालय ने मांगी ही नहीं थी। तो अब प्रश्न है कि उच्चतम न्यायालय ने क्या सूचना मांगी थी। उच्चतम न्यायालय ने जानकारी मांगी थी कि साल 2019 से अबतक कितनी धनराशि के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए? किस खरीदार ने कब और कितने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे ? किस सियासी दल ने कब और कितने इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए?
SBI ने जानबूझकर चार महीने का समय मांगा?
यानी उच्चतम न्यायालय ने ये तो पूछा ही नहीं था कि किस आदमी या कंपनी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस सियासी दल को कितना चंदा दिया? सरल भाषा में कहें तो भारतीय स्टेट बैंक को ये नहीं बताना होगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले ने किस पार्टी के लिए बॉन्ड खरीदे और उसका पैसा किस पार्टी को गया। जबकि भारतीय स्टेट बैंक को ऐसा ही लगा। और यही सोचकर भारतीय स्टेट बैंक ने चार महीने का समय मांगा। लेकिन अब प्रश्न ये है कि क्या भारतीय स्टेट बैंक को उच्चतम न्यायालय का आदेश समझ नहीं आया या भारतीय स्टेट बैंक ने जानबूझकर चार महीने का समय मांगा?