राष्ट्रीय

मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम के 12 वर्ष पूर्ण होने पर समारोह में शामिल हुए पूर्व राष्ट्रपति

उदयपुर. बुजुर्ग बोझ नहीं, वे एसेट हैं. वे अनुभव का खजाना हैं. वे हमारी सम्पत्ति हैं. बुजुर्गों का हमारे पास होना एक आश्वासन है. एक परिवार में बुजुर्गों की अहमियत होती है. हर काल और समय में उनकी उपयोगिता सार्थक होती है. बुजुर्गों में अनुभव का धन और आत्मविश्वास का बल होता है.

उक्त उद्गार तारा संस्थान के भीतर संचालित मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम के 12 साल पूर्ण होने के अवसर पर सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने व्यक्त किये. पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने बोला कि हर परिवार की अपनी अलग कहानी होती है. कोई कहानी छोटी होती है, कोई बड़ी होती है. उन्हें सुनने और सुनाने में ही हमारा जीवन गुजर जाता है. इसलिए हमें यह सोचना चाहिये कि हमने आज तक सिर्फ़ लिया ही लिया है. हमने समाज को दिया क्या है. जिस दिन देने का रेट आ जाएगा, विश्वास मानिये जितना आनन्द लेने में आ रहा था, उससे दुगुना आनन्द देने में आएगा.
पूर्व राष्ट्रपति ने बोला कि आज के दौर में परिवार में बढ़ते विघटन एवं भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति की महत्वाकांक्षाओं के चलते घर के युवा अक्सर घर के बुजुर्ग माता-पिता को अकेला छोड़ कर रोजगार और आर्थिक फायदा के लिए चले जाते हैं. भौतिक महत्वाकांक्षाएं उन्हें ऐसा करने पर विवश करती हैं. इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है. उन्हें जीवनयापन के लिए ऐसा करना ही पड़ता है. इसी तरह से बुजुर्गों के घर में अकेले रहने का दूसरा कारण यह भी सामने आता है कि पहले हमारे यहां संयुक्त परिवार की परम्परा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है. इस पर हमें मंथन करने की आवश्यकता है. इसकी आरंभ भी स्वयं से है करनी होगी. सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी समझना होगा.

उन्होंने मेवाड़ की पवित्र पावन धरती की महानता को दर्शाते हुए बोला कि इस धरती पर महाराणा प्रताप, भामाशाह और मीराबाई जैसी महान विभूतियां हुई हैं. उदयपुर के लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए कभी भी पीछे नहीं हटे. इस धरा की कहानियां प्रेरणादायी हैं. उन्होंने बोला कि आज तो हम ऐसा सोच भी नहीं सकते जैसा वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने करके दिखाया था. मेवाड़ की परोपकार, देश धर्म संस्कृति की रक्षा की भावना ने उन्हें हमेशा प्रभावित किया है.

तारा संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष कल्पना गोयल ने स्वागत उद्बोधन देते हुए बोला कि ऐसा पुनीत कार्य करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली. पहले वह बुजुर्गों की ऐसी स्थितियां देख कर भावुक हो जाया करती थीं, लेकिन धीरे-धीरे इनके साथ रह कर इनकी सेवा करने का अवसर मिला तो अब उनमें हौसला ओर हौसला पैदा हो गया है और इन सभी की सेवा करने में उन्हें आनंद आता है.

समारोह में नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक कैलाश मानव ने भी अपने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम का संचालन संस्थापक सचिव दीपेश मित्तल ने किया. कार्यक्रम में तारा संस्थान की ओर से संचालित ‘मस्ती की पाठशाला’के बच्चों ने भावपूर्ण प्रस्तुति देते हुए राम आएंगे भजन पर नाट्य का मंचन किया. इसमें वनवास के दौरान माता शबरी द्वारा बड़े ही स्नेह रेट के साथ राम-लक्ष्मण को झूठे बेर खिलाने के दृश्य ने भी को भावविभोर कर दिया. इसके बाद बुजुर्ग फैशन शो हुआ जिसमें बुजुर्गों ने लता मंगेशकर, आर्य भट्ट, वीर सावरकर, कल्पना चावला, अटल बिहारी वाजपेयी, डाक्टर भीमराव अम्बेडकर, रानी लक्ष्मीबाई, स्वामी विवेकानन्द, सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं मैरीकॉम के चरित्र को जीवन्त किया.

इससे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में एक-एक कर बुजुर्गों से मिले और उनसे वार्ता की. उन्होंने कई बुजुर्गों से उनके हालचाल जाने और लगातार यही पूछते रहे कि आप यहां कैसा अनुभव कर रहे हैं. कोविन्द बुजुर्ग महिला-पुरुषों से इस कदर घुलमिल गये कि उनके साथ हंसी-ठहाकों से पूरा परिसर गूंज उठा.

कोविन्द जब संस्थान के बुजुर्गों के मेडिकल वार्ड में पहुंचे तो वहां पर उनकी सारी मेडिकल सुविधाओं की जानकारी ली एवं बुजुर्गों के स्वास्थ्य के बारे में जाना. इसी वार्ड में बुजुर्ग बृजकिशोर शर्मा से जब कोविन्द मिले और उनका हालचाल जानने के बाद वहां से जाने लगे तब उन्हें पता लगा कि ये गाना बहुत अच्छा गाते हैं. यह सुन कर कोविन्द के कहने पर बृजकिशोर ने ‘जाने वो कैसे लोग थे जिन्हें प्यार ही प्यार मिला‘ गीत गाया. गीत सुनकर कोविन्द मुस्कुराये और बोला कि यह गाना आपके ऊपर लागू नहीं होता है. यह सुनकर उन्होंने एक और गाना ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए गाया.

 

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