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खूंटी के चुनाव मैदान का चक्रव्यूह भेदने के लिए अर्जुन मुंडा ने लगा दिया पूरा जोर

मुंडा जनजाति का गढ़ माने जानेवाले खूंटी लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है उन्हें कोई और नहीं, बल्कि खूंटी से उन्हीं की पार्टी के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा के बड़े भाई और खूंटी के कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार कालीचरण मुंडा पिछली बार की तरह इस बार भी कांटे की भिड़न्त दे रहे हैं ऐसे में खूंटी के चुनाव मैदान का चक्रव्यूह भेदने के लिए अर्जुन मुंडा ने पूरा बल लगा दिया है

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अर्जुन मुंडा कड़े मुकाबले में कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार कालीचरण मुंडा को महज 1445 वोट से हरा पाए थे उस समय अर्जुन मुंडा को 3 लाख, 82 हजार, 638 वोट मिले थे जबकि कालीचरण मुंडा को 3 लाख, 81 हजार, 193 वोट हासिल हुए थे इस सीट पर अब तक हुए 15 संसदीय चुनाव में से 3 बार कांग्रेस पार्टी जीती है पर जैसे ही कड़िया मुंडा (करिया मुंडा) खूंटी से चुनाव लड़ने उतरे, उन्होंने खूंटी को भाजपा का अभेद्य किला बना दिया कड़िया मुंडा इस सीट पर रिकॉर्ड 8 बार चुनाव जीते और लोकसभा के उपाध्यक्ष की कुर्सी पर भी पहुंचे हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता रहा पर 2019 में जब कड़िया मुंडा की बजाय भाजपा ने अर्जुन मुंडा को उम्मीदवार बनाया, तो अपने ही गढ़ में जीतने के लिए भाजपा को पसीना बहाना पड़ गया उस समय जिस तरह से यहां बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के बीच नजदीकी मुकाबला हुआ, वह भाजपा के लिए सबक से कम नहीं था

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के कब्जे वाली खूंटी विधानसभा सीट से भी अर्जुन मुंडा कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार से वोट के बड़े अंतर से पीछे रहे थे इस बार कांग्रेस पार्टी उस छोटे से अंतर को पाट कर पिछली हार को जीत में बदलने की कोशिशों में जुटी हुई है उधर भाजपा उम्मीदवार अर्जुन मुंडा भी कांग्रेस पार्टी का चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए ऐड़ी-चोटी का बल लगा रहे हैं

खूंटी लोकसभा सीट में कितने दावेदार?
2019 में खूंटी लोकसभा में 11 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमायी थी पर इस बार दावेदारों की फेहरिश्त लंबी होती जा रही है भाजपा से अर्जुन मुंडा और कांग्रेस पार्टी से कालीचरण मुंडा के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा- जेएमम के पूर्व विधायक बसंत लोंगा ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने का घोषणा कर दिया है जबकि एनोस एक्का की झारखंड पार्टी ने अर्पणा हंस को उम्मीदवार बनाया है झारखंड उलगुलान संघ ने सुबोध पूर्ति, अबुआ झारखंड पार्टी से जयंत जयपाल सिंह, हिंदुस्तान आदिवासी पार्टी से बबीता कच्छप और पीपुल्स पार्टी से थॉमस डांग समेत कई दावेदार सामने आ चुके हैं

 

क्या है खूंटी लोकसभा सीट का गणित?
खूंटी लोकसभा में 6 विधानसभा सीट आती हैं इसमें से खरसावां और तमाड़ पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है तोरपा और खूंटी सीट भाजपा के पास है, जबकि सिमडेगा और कोलेबिरा में कांग्रेस पार्टी का राज है

जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 65 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी है इसमें मुंडा और उरांव जनजातियों की सबसे अधिक जनसंख्या है साढ़े 6 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति समुदाय की है खूंटी लोकसभा के 93 फीसदी से अधिक मतदाता ग्रामीण हैं, जबकि केवल 7 प्रतिशत ही शहरी मतदाता है

छोटे दलों की बड़ी भूमिका
खूंटी संसदीय सीट के चुनाव रिज़ल्ट को अक्सर छोटे दल प्रभावित करते रहे हैं 2019 में भाजपा उम्मीदवार अर्जुन मुंडा को 45.9 प्रतिशत और कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार कालीचरण मुंडा को 45.8 प्रतिशत वोट मिले थे महज 0.1 वोट फीसदी के अंतर से यहां भाजपा को जीत मिली थी जबकि इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार मीनाक्षी मुंडा को 10,976, झारखंड पार्टी के अजय टोपनो को 8,770 और बसपा की इंदुमति मुंडा को 7,634 वोट मिले थे नोटा को 21,236 लोगों ने पसंद किया था वोटों के बिखराव और नोटा के वोट ने कांग्रेस पार्टी के मंसूबे पर पानी फेर दिया था

2014 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार कड़िया मुंडा को 37.7 फीसदी, झारखंड पार्टी के उम्मीदवार एनोस एक्का को 24.8 प्रतिशत और तीसरे जगह पर रही कांग्रेस पार्टी को 20.6 प्रतिशत वोट मिले थे

अर्जुन मुंडा का सियासी सफर
अर्जुन मुंडा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा से अपना सियासी यात्रा प्रारम्भ किया था 1995 में वो खरसावां विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे 2000 में झारखंड राज्य बनने पर वो जेएमएम छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी झारखंड गवर्नमेंट में मंत्री बने इसी बीच वर्ष 2003 में 36 वर्ष की उम्र में वो झारखंड के सीएम बने 2005 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन ने 81 में से 36 सीट जीतीं पर उस समय शिबू सोरेन के नेतृत्व में यूपीए की गवर्नमेंट बनी थी लेकिन ये गवर्नमेंट 10 दिन में ही गिर गई इसके बाद अर्जुन मुंडा दूसरी बार झारखंड के सीएम बने पर इस बार भी वो कार्यकाल पूरा नहीं कर सके निर्दलीय मधु कोड़ा ने केवल 18 महीने बाद उनसे सीएम की कुर्सी छीन ली 2009 के लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा जमशेदपुर से भाजपा के सांसद बने पर अगस्त 2010 में तीसरी बार झारखंड का सीएम बनने के लिए उन्होंने संसद की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक सीएम के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल सबसे लंबा रहा लेकिन हालात ऐसे बने की झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा नवंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए साफ बहुमत के साथ सत्ता में लौटी लेकिन तब अर्जुन मुंडा खरसावां विधानसभा से 12 हजार वोट से चुनाव हार गए इसके 5 वर्ष बाद 2019 में उन्होंने खूंटी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत गए

कृषि मंत्री के रूप में अर्जुन मुंडा
2019 में केंद्र में जब मोदी गवर्नमेंट बनी तो अर्जुन मुंडा को जनजातीय मामलों का मंत्री बनाया गया पिछले वर्ष के अंत में उन्हें कृषि मंत्रालय की बागडोर भी दे दी गई इसी वर्ष फरवरी में जब पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान आंदोलन प्रारम्भ हुआ तो कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने कई किसान संगठनों से वार्ता की और उन्हें मनाने की पूरी प्रयास की इससे उनकी राष्ट्रीय स्तर पर छवि बनी भाजपा का बड़ा आदिवासी चेहरा माने जाने वाले अर्जुन मुंडा के सामने अब खूंटी लोकसभा चुनाव में स्वयं को साबित करने की बड़ी चुनौती है

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