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कहानी चुनाव की: 1991 के बाद केवल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 200 सीटों का छू पाई आंकड़ा

राष्ट्र की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी आज उस दौर से गुजर रही है, जिस दौर से शायद ही हिंदुस्तान में कभी कोई पार्टी शीर्ष पर जाकर गुजरी हो. हालात ये हैं कि 1991 के बाद सिर्फ़ 2009 के लोकसभा चुनाव में ही यह पार्टी 200 सीटों का आंकड़ा छू पाई. इस बार भी उसे इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए किसी करिश्मा की  ही आशा करनी होगी.

निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता के शिखर पर सवार कांग्रेस पार्टी को 364 सीटें मिलीं थीं. पार्टी को कुल 44.99 फीसदी वोट मिले थे. तीसरी लोकसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में कांग्रेस पार्टी का वोट फीसदी भी घटा और सीटें भी. वोट 44.71 फीसदी रह गया, जबकि सीटें 361 पर आ गईं. 1967 में पार्टी की लोकप्रियता में और गिरावट आई. वोट घटकर 40.78 फीसदी और सीटें 283 रह गईं. हालांकि, 1971 में फिर से वापसी की. उसका वोट बढ़कर 43.68 फीसदी और सीटें 352 हो गईं. इसमें सबसे अधिक सहयोग आंध्र प्रदेश की 28, बिहार की 39, महाराष्ट्र की 42 और यूपी की 73 सीटों का था.

आपातकाल के बाद गिरे औंधे मुंह

  1. 1977 पार्टी के लिए बहुत बुरा दौर था, जब उसे पहली बार केंद्र की सत्ता से महरूम होना पड़ा.
  2. देश में पीएम इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया हुआ था. लोकसभा का कार्यकाल नवंबर में समाप्त होने वाला था. लेकिन, अचानक 18 जनवरी को चुनाव की घोषणा कर दी गई.
  3. आपातकाल से नाराज जनता एकजुट हुई और कांग्रेस पार्टी को सिर्फ़ 154 सीटों पर समेट दिया. वोट फीसदी भी 34 प्रतिशत पर आ गया.
  4. 26 सालों में कांग्रेस पार्टी के लिए यह सबसे बुरा चुनाव था. उधर, जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं और उसने गवर्नमेंट बना ली.

1980 में चमत्कारिक वापसी               
जनता पार्टी की गवर्नमेंट पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 1980 में मध्यावधि चुनाव कराए गए. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 42.69 फीसदी वोट के साथ 353 सीटें मिलीं. 1984 में पार्टी इस आंकड़े को भी पार कर गई. दरअसल, पीएम इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षा गार्डों ने मर्डर कर दी. इससे राष्ट्र में कांग्रेस पार्टी के प्रति जबरदस्त सहानुभूति की लहर उठी.

1984 का रिकॉर्ड आज तक न टूटा
सहानुभूति की लहर में कांग्रेस पार्टी का वोट बढ़कर  48 फीसदी को भी पार कर गया. सीटें भी रिकॉर्ड 414 हो गईं. यह वह रिकॉर्ड है जो न तो कांग्रेस पार्टी कभी दोहरा पाई और न ही पिछले 10 सालों में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची बीजेपी इसके करीब पहुंची. बीजेपी को 2014 में 282 सीटें और पिछले चुनाव में 303 सीटें मिलीं. इस बार बीजेपी ने 400 के पार का नारा दिया है.

1989 से अकेले बहुमत नहीं
लोकसभा में बहुमत के लिए  272 सीटों की आवश्यकता होती है. आंकड़े बताते हैं कि 1984 के बाद कांग्रेस पार्टी को कभी भी अकेले बहुमत नहीं मिला. 1989 में उसे 39.53 फीसदी वोट और 197 सीटें मिलीं. 1991 में उदारीकरण के दौर में पार्टी 36.40 प्रतिशत वोट और 244 सीटें हासिल कर पाई. उस समय पहली बार बीजेपी को 120 सीटें मिली थीं और उसका वोट 20 फीसदी से अधिक था.

हार की हैट्रिक
कांग्रेस की स्थिति लगातार खराब होती गई, जब तक कि 2004 का चुनाव नहीं हुआ. 1996 में कांग्रेस पार्टी को 140 और बीजेपी को 161 सीटें मिलीं. 1998 में पार्टी ने 141 तो बीजेपी ने 184 सीटें जीतीं. 1999 में बीजेपी ने 182 सीटें जीत एनडीए गवर्नमेंट बनाई. कांग्रेस पार्टी इस बार भी 114 सीटों पर सिमट गई. उसका वोट भी 28.30 प्रतिशत रह गया.

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