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इस बार गुंजन सिंह निर्दलीय मैदान में, एक्सपर्ट बोले…

लोकसभा चुनाव के लिए बिसात बिछ चुकी है. राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नामों का घोषणा कर रही है. इसमें भोजपुरी के कद्दावर कलाकारों का नाम भी शामिल है. मनोज तिवारी, रवि किशन, दिनेश लाल यादव पहले से ही राजनीति में अपनी पहचान बना चुके है. वहीं, कुछ भोजपुरी स्टार राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं. इस बार इस लिस्ट में कुछ नए चेहरों का नाम भी जुड़ा है.

भोजपुरी कलाकार गुंजन सिंह नवादा से ताल ठोंक रहे हैं. किसी पार्टी से तरजीह नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय ही नवादा सीट से नामांकन कर लिया है. वहीं, पावर स्टार पवन सिंह को भाजपा ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल से टिकट दिया था, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था. उनका अगला रुख क्या होगा, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई है.

भोजपुरी सितारों का सियासी इतिहास बड़ा ही दिलचस्प रहा है. चुनावी मैदान में उतरने वाले किसी भी भोजपुरी कलाकार को पहली बार में जीत हासिल नहीं हुई. सभी को पहली बार लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.

चुनावी मैदान में उतरा भोजपुरी का एक और चेहरा

2024 के लोकसभा चुनाव में एक और भोजपुरी चेहरा मैदान में उतर गया है. चुनाव के इस महासमर में अब भोजपुरी के सिंगर गुंजन सिंह ने ताल ठोंक दी है. उन्होंने नवादा लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन किया है.

उनके नामांकन के दौरान यूट्यूबर मनीष कश्यप भी साथ रहे थे. अपने आप को नवादा का बेटा कहकर संबोधित करने वाले गुंजन सिंह बीते कुछ वर्षों से राजनीति में एक्टिव थे, ऐसे में उनके चुनाव लड़ने की पूरी आसार थी.

गुंजन कर सकते हैं महागठबंधन-एनडीए की वोटों में सेंधमारी

किसी मुख्य सियासी पार्टी से टिकट नहीं मिलने के बाद गुंजन सिंह ने निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का घोषणा किया. उन्होंने नवादा की जनता को विकास का भरोसा दिलाया है. यहां से राजद के श्रवण कुशवाहा और भाजपा के विवेक ठाकुर समेत 17 प्रत्याशी मैदान में हैं.

गुंजन के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. गुंजन सिंह भोजपुरी के फेमस कलाकार हैं. दर्शकों में उनकी काफी डिमांड है. ऐसे में वह महागठबंधन के साथ ही एनडीए की वोटों में भी सेंधमारी कर सकते हैं.

नवादा से भोजपुरी स्टार गुंजन सिंह ने निर्दलीय नामांकन किया.

2017 में पवन सिंह ने थामा था भाजपा का दामन

‘लॉलीपॉप लागेलू’ गाने से अलग पहचान बनाने वाले भोजपुरी अभिनेता और सिंगर पवन सिंह ने 2017 में भाजपा का दामन थामा था. उसके बाद से यह कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी की ओर से विधायक या सांसद के लिए उम्मीदवार बनेंगे. हालांकि, पवन सिंह ने हमेशा से ही इन बातों को खारिज किया था.

आसनसोल से भाजपा ने घोषित किया था प्रत्याशी

इन सबके बीच, लोकसभा चुनाव को लेकर 2 मार्च 2024 को बीजेपी की ओर से जारी लिस्ट में पवन सिंह का नाम भी शामिल था. उन्हें भाजपा ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया था. पवन सिंह ने इसके लिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को दिल से धन्यवाद दिया था.

हालांकि, दूसरे ही दिन पवन सिंह ने चुनाव नहीं लड़ने की बात कहकर सभी को चौंका दिया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए उन्होंने बोला कि वह किसी वजह से आसनसोल से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.

2017 में पवन सिंह ने थामा था भाजपा का दामन.

आरा से चाहते थे टिकट

इसके बाद यह अटकलें तेज हो गई थी कि पवन सिंह आरा से टिकट चाहते थे. जनवरी महीने में इशारा भी किया था कि यदि आरा से टिकट मिलेगा तो वे चुनाव लड़ेंगे. थोड़े दिन बाद ही पवन सिंह ने X पर चुनाव लड़ने का घोषणा किया. उन्होंने लिखा था, ‘अपने समाज, जनता जनार्दन और मां से किया हुआ वादा पूरा करने के लिए चुनाव जरूर लड़ेंगे.

आरजेडी से लड़ने की थी चर्चा

दूसरी ओर सियासी गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर थी कि पवन सिंह को राजद से टिकट मिल सकता है. वहीं, पवन सिंह ने इस पर सफाई देते हुए बोला कि आरजेडी से चुनाव लड़ने का प्रश्न ही नहीं है. उनके बारे में भ्रामक खबरें चलाई जा रही है. इधर, आरा सीट के लिए भाजपा ने अपने प्रत्याशी का घोषणा भी कर दिया है. यहां से केंद्रीय मंत्री आरके सिंह चुनाव लड़ेंगे. महागठबंधन से यह सीट CPI(ML) के खाते में गई है.

भोजपुरी में फूहड़पन के कारण कलाकारों की छवि पर पड़ता है असर

एक ओर दिल्ली तो दूसरी ओर यूपी में ये भोजपुरी कलाकार राजनीति की पिच पर चौके-छक्के लगा रहे हैं. लेकिन बिहार के चुनावी मैदान में उनकी मौजूदगी कुछ खास नहीं है. इस पर पॉलिटिकल एक्सपर्ट रवि उपाध्याय कहते हैं कि बिहार के किसी लोकसभा चुनाव क्षेत्र से पहली बार भोजपुरी कलाकारों का नाम आ रहा है, जिसमें गुंजन सिंह भी शामिल है. अब देखने वाली बात यह होगी की जनता उन पर कितना विश्वास करती है.

भोजपुरी के फूहड़पन के कारण कलाकारों की छवि पर पड़ता है असर- रवि उपाध्याय

यह जनता को तय करना होगा कि वह भोजपुरी कलाकारों पर अपना दांव लगाए या फिर अपना वोट जाया ना होने दे. जनता की न्यायालय में जनता जनार्दन के मत से जीतना बहुत बड़ी बात होती है. अपने ही राज्य में टिकट ना मिलने की बात पर उन्होंने बोला कि भोजपुरी के प्रति बार-बार जो फूहड़पन की बात आती है, वह कहीं ना कहीं इन कलाकारों की छवि में आड़े आता है. फूहड़पन के कारण ही निश्चित रूप से यहां की जनता उन पर उतना भरोसा नहीं कर पाती है.

 

भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी ने अपने सियासी करियर की आरंभ 2009 में सपा के साथ की थी. उन्होंने 15वीं लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की टिकट पर गोरखपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ ने पटकनी दे दी. इसके बाद 2011 में मनोज तिवारी अन्ना हजारे के करप्शन विरोधी आंदोलन से जुड़े.

शाह-मोदी ने किया भरोसा

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मनोज तिवारी 3 अक्टूबर 2013 को बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने तत्कालीन दिल्ली चुनाव प्रभारी नितिन गडकरी की मौजूदगी में भाजपा जॉइन की थी. शाह-मोदी की जोड़ी ने मनोज तिवारी की काबिलियत पर भरोसा जताया.

2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें दिल्ली उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट से मैदान में उतारा गया. भरोसे पर खरा उतरते हुए मनोज तिवारी ने जीत दर्ज की. उन्होंने AAP के प्रत्याशी आनंद कुमार को 1,44,084 मतों के अंतर से हराया था. 2016 में उन्हें दिल्ली का बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया.

पिछले चुनाव में तीन बार की सीएम को हराया

दिल्ली की राजनीति में खास पहचान बना चुके मनोज तिवारी को 2019 के संसदीय चुनाव में एक बार फिर दिल्ली के उत्तर पूर्वी सीट से उम्मीदवार बनाया गया. इस बार उनका सामना कांग्रेस पार्टी की कद्दावर नेता और तीन बार सीएम रह चुकी शीला दीक्षित से था. मोदी लहर के बीच यह सीट भाजपा के खाते में आई.

मनोज तिवारी ने शीला दीक्षित को 3,66,102 लाख मतों के अंतर से हराया था. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी को फिर से दिल्ली के उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट से टिकट मिला है. इस बार भी वे जीत की हैट्रिक लगाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

रवि किशन ने जौनपुर सीट से लड़ा था पहला चुनाव, मिली हार

भोजपुरी सहित हिंदी, तेलुगू, कन्नड़, तमिल सिनेमा में काम कर चुके अदाकार रवि किशन ने सियासी करियर की आरंभ 2014 में की थी. उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जौनपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.

इस सीट से उन्हें सिर्फ़ चार प्रतिशत वोट मिले थे. वह छठे जगह पर रहे. चुनाव हारने के बाद रवि किशन ने 2017 में कांग्रेस पार्टी का हाथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थामा.

योगी आदित्यनाथ की सीट पर लड़े रवि किशन

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की सीट रही गोरखपुर से रवि किशन को अपना प्रत्याशी बनाया. इस चुनाव में उनका सामना सपा के उम्मीदवार रामभुआल निषाद से था.

किशन ने रामभुआल निषाद को 3,01,664 वोटों से हराया. रवि किशन को 7,17,122 वोट मिले, जबकि रामभुआल को 4,15,458 वोट मिले थे. रवि किशन पर भरोसा जताते हुए वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर गोरखपुर क्षेत्र के लिए उम्मीदवार बनाया है.

दिनेश लाल यादव को सीएम अखिलेश यादव ने यूपी गवर्नमेंट का सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ से सम्मानित किया था.

सपा से मिला सम्मान, बीजेपी से की सियासी करियर की शुरुआत

भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के नाम से मशहूर हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपी गवर्नमेंट का सर्वोच्च सम्मान ‘यश भारती’ से उनको सम्मानित किया था. दिनेश को सम्मान भले ही समाजवादी पार्टी गवर्नमेंट से मिला हो, लेकिन उन्होंने अपने सियासी यात्रा की आरंभ 2019 में बीजेपी के साथ की.

किस्मत में लिखी थी आजमगढ़ सीट

आजमगढ़ सीट हमेशा से यूपी की चर्चित सीट रही है. बीते कुछ चुनावों की बात करें तो इस सीट पर 3 बार सपा, 3 बार बीएसपी और 2 बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश आजमगढ़ सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे, लेकिन इस चुनाव में उनकी बुरी हार हुई.

सपा के अखिलेश यादव ने निरहुआ को करीब 2 लाख 60 हजार वोट के बड़े अंतर से हराया था. लेकिन आजमगढ़ की यह सीट कहीं ना कहीं दिनेश के किस्मत में लिखी थी.

अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आजमगढ़ संसदीय सीट से त्याग-पत्र दे दिया था. इस कारण 2022 में आजमगढ़ में उपचुनाव हुए. जिसमें बीजेपी के निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को 8,679 वोटों से हराया.

2024 के आजमगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी ने सांसद दिनेश लाल यादव को प्रत्याशी घोषित कर अपने पत्ते खोल दिए हैं. इस बार भी उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव से है.

भोजपुरी इंडस्ट्री के अमिताभ को शत्रुघ्न सिन्हा से मिली थी हार

भोजपुरी इंडस्ट्री के अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले कुणाल सिंह भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं. उनके पिता दिवंगत बुद्धदेव सिंह बख्तियारपुर और दानापुर से विधायक रह चुके हैं. वर्ष 2012 में भोजपुरी के प्रचार-प्रसार और फिल्मों में सहयोग के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कुणाल को देश कवि दिनकर अवॉर्ड से सम्मानित किया था.

कुणाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर पटना साहिब सीट से चुनाव लड़ा और हार गए.

फिर उन्होंने अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए राजनीति में भी कदम रखा. कुणाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर पटना साहिब सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें जीत हासिल नहीं हुई.

भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा ने उन्हें 2,65,805 मतों से हराया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में वह फिर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है. हालांकि, उन्हें किसी पार्टी से टिकट मिलेगा या निर्दलीय लड़ेंगे, अभी तक इस बारे में घोषणा नहीं हुई है.

 

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