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Sheetala Ashtami : इस दिन रखा जाएगा शीतला अष्टमी का व्रत

Sheetala Ashtami 2024: चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी मनाई जाती है. शीतला अष्टमी को बसौड़ा नाम से भी जाना जाता है. इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. शास्त्रों में शीतला माता को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी कहा गया है. कुछ स्थान शीतला माता की पूजा चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी और कुछ स्थान अष्टमी पर होती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव हैं. इन दोनों तिथियों में मां शीतला की पूजा की जा सकती है. फैसला सिंधु के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है. इसलिए सप्तमी को पूजा और व्रत गुरुवार को किया जाना चाहिए. शीतलाष्टमी शुक्रवार को मनाई जाएगी.

इस दिन जो महिला, माता का श्रद्धापूर्वक पूजन करती है, उनका परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं. मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है. गर्मी में होने वाले चेचक जैसे संक्रामक रोगों से मां रक्षा करती हैं. माता शीतला को शीतलता प्रदान करने वाली माता बोला गया है. इसलिए उनको समर्पित भोजन पूरी तरह शीतल रहे. माता के भक्त भी प्रसाद स्वरूप ठंडा भोजन ही अष्टमी के दिन ग्रहण करते हैं. इस दिन घरों में चूल्हा जलाना वर्जित होता है.

शीतला अष्टमी व्रत का महत्व-
माना जाता है कि इस व्रत को करने से आदमी को कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है. शीतला अष्टमी के दिन शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती हैं. अष्टमी ऋतु बदलाव का संकेत देती है. यही वजह है कि इस परिवर्तन से बचने के लिए साफ-सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है.माना जाता है कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाता है.

शीतला अष्टमी की पूजा विधि
-सबसे पहले शीतला अष्टमी के दिन सुबह शीघ्र उठकर नहा लें.
-पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें.
-दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें.
-दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रख दें.
-अब शीतला माता की पूजा करें.
-माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद स्वयं और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं.
-मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें.
-माता को मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें.
-आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें.
-अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें. बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें.
-इसके बाद होलिका दहन वाली स्थान पर भी जाकर पूजा करें. वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं.
-घर आने के बाद पानी रखने की स्थान पर पूजा करें.
-अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें.

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