Sankashti Chaturthi 2024: विकट संकष्टी चतुर्थी की कथा जानें
• विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन सुबह शीघ्र जागकर दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करें.
• फिर एक पटिए पर लाल कपड़ा बिछाकर गणपति की स्थापना के बाद इस तरह पूजन करें-
• सबसे पहले घी का दीपक जलाएं. इसके बाद पूजा का संकल्प लें.
• फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वान करें.
• इसके बाद गणेश को स्नान कराएं.
• सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) और पुन: सही जल से स्नान कराएं.
• अब गणेश जी को वस्त्र चढ़ाएं. यदि वस्त्र नहीं हैं तो आप उन्हें एक नाड़ा भी अर्पित कर सकते हैं.
• इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर, चंदन, फूल और फूलों की माला अर्पित करें.
• अब बप्पा को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं.
• अब एक दूसरा दीपक जलाकर गणपति की प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें.
• हाथ पोंछने के लिए नए कपड़े का प्रयोग करें.
• नैवेद्य चढ़ाएं. नैवेद्य में मोदक, मिठाई, गुड़ और फल शामिल करें.
• इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिण प्रदान करें.
• सकंष्टी/ विकट चतुर्थी की कथा श्रवण करें अथवा पढ़ें.
• अब अपने परिवार के साथ गणपति की आरती करें.
• गणेश जी की आरती कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक या तीन या इससे अधिक बत्तियां बनाकर की जाती है.
• इसके बाद हाथों में फूल लेकर गणपति के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करें.
• अब गणपति की परिक्रमा करें. ध्यान रहे कि गणपति की परिक्रमा एक बार ही की जाती है.
• इसके बाद गणपति से किसी भी तरह की भूल-चूक के लिए माफी मांगें.
• पूजा के अंत में साष्टांग प्रणाम करें.
• रात को चंद्रदेव की पूजा और दर्शन करने के बाद व्रत खोलें.
• इस चतुर्थी पर चंद्रोदय रात्रि 10.23 मिनट पर होगा.
• मंत्र- ‘श्री गणेशाय नम:’,
• ‘ॐ गं गणपतये नम:’,
• -वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नम कुरू मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा.
• आदि का 108 बार या अधिक से अधिक जाप करें.
• आज गणेश मंत्र, चालीसा और स्तोत्र आदि का वाचन करना शुभ होता है.
संकष्टी चतुर्थी के पूजन मुहूर्त और चंद्रोदय का समय 2024: Vikata Sankashti Ganesh Chaturthi Muhurat 2024
विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत शनिवार, 27 अप्रैल, 2024 को
वैशाख चतुर्थी तिथि का प्रारंभ- 27 अप्रैल 2024, शनिवार को 08.17 ए एम से,
चतुर्थी तिथि का समापन- 28 अप्रैल 2024, रविवार को 08.21 ए एम पर.
संकष्टी चतुर्थी चन्द्रोदय का समय- 10.23 पी एम.
शुभ समय
ब्रह्म मुहूर्त- 04.17 ए एम से 05.00 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04.39 ए एम से 05.44 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11.52 ए एम से 12.45 पी एम
विजय मुहूर्त- 02.31 पी एम से 03.23 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 06.53 पी एम से 07.15 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 06.54 पी एम से 07.59 पी एम
अमृत काल-07.22 पी एम से 09.01 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11.57 पी एम से 28 अप्रैल को 12.40 ए एम
27 अप्रैल, शनिवार : दिन का चौघड़िया
शुभ- 07.22 ए एम से 09.01 ए एम
चर- 12.19 पी एम से 01.58 पी एम
लाभ- 01.58 पी एम से 03.36 पी एम
अमृत- 03.36 पी एम से 05.15 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
लाभ- 06.54 पी एम से 08.15 पी एम
शुभ- 09.36 पी एम से 10.57 पी एम
अमृत- 10.57 पी एम से 28 अप्रैल को 12.18 ए एम,
चर- 12.18 ए एम से 28 अप्रैल को 01.39 ए एम,
लाभ- 04.22 ए एम से 28 अप्रैल को 05.43 ए एम तक.
कथा Chaturthi Katha : एक समय की बात है कि विष्णु ईश्वर का शादी लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया. शादी की तैयारी होने लगी. सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो.
अब ईश्वर विष्णु की बारात जाने का समय आ गया. सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ शादी कार्यक्रम में आए. उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं. तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा. तभी सबने विचार किया कि विष्णु ईश्वर से ही इसका कारण पूछा जाए.
विष्णु ईश्वर से पूछने पर उन्होंने बोला कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है. यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई जरूरत भी नहीं थीं. दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए. यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं. दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता.
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना. आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे. यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु ईश्वर ने भी अपनी सहमति दे दी.
होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया. बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा. गणेशजी कहने लगे कि विष्णु ईश्वर ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारदजी ने बोला कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके गाड़ी धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा.
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना शीघ्र से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी. जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए. लाख प्रयास करें, परंतु पहिए नहीं निकले. सभी ने अपने-अपने तरीका किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए.
तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया. यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है. शंकर ईश्वर ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए. गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले. अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया. खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा. देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया.
तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है. हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं. आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग ईश्वर श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा.
ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु ईश्वर का लक्ष्मीजी के साथ शादी संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए. हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो. बोलो गजानन ईश्वर की जय.
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