सकट चौथ व्रत कल या परसों, जानें सही डेट व पूजन विधि
29 जनवरी 2024, सोमवार को सकट चौथ का व्रत है। यह व्रत माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इस दिन ईश्वर गणेश और चंद्रमा की पूज- अर्चना की जाती है। माताएं इस व्रत को संतान की प्राप्ति और संतान की उम्र लंबी चाहने के लिए रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन गणेश ईश्वर की पूजा अर्चना करने से जीवन में हर तरह की विघ्न खत्म होती है। जिन संतान की चाह होती है उन्हें संतान प्राप्ति और संतान की सलामती के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन तिलकूट का प्रसाद बनाया जाता है और ईश्वर गणेश को भग लगाया जाता है। इसलिए इसे तिलकूट चतुर्थी भी बोला जाता है।
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय- रात 09 बजकर 10 बजे होगा। इसी समय चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा और व्रत को खोला जाएगा। माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 29 जनवरी को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से प्रारम्भ होगी और 30 जनवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर खत्म होगी। इस व्रत में कथा पढ़ी जाती है। एक कथा ईश्वर शंकर वाली है और एक कथा कुम्हार वाली है। राष्ट्र के भिन्न-भिन्न हिस्सों में चंद्रोदय का टाइम भिन्न-भिन्न होता है।
सकट चौथ पूजन विधि-
– प्रातःकाल स्नान करके गणेश जी की पूजा का संकल्प लें।
– इस दिन फलाहार ही करना चाहिए।
– संध्याकाल में ईश्वर गणेश की कथा पढ़ें
– ईश्वर को तिल के लड्डू और पीले पुष्प अर्पित करें । ईश्वर गणेश को दूर्वा भी अर्पित करनी चाहिए।
– चन्द्रमा को अर्घ्य दें
आरती:
सकट चौथ के दिन करें श्री गणेश की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
सकट चौथ व्रत कथा-
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और कहा कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ”हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।” राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई।
बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ”मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से अलग हो जाएगा।” तभी उसको एक तरीका सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ”भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।”
सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो दंग रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित और सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।