भारतीय सेना के कमांडर जगजीत सिंह अरोड़ा के जन्मदिन पर जानें इनके जीवन संघर्ष की कहानी
सेना नायकत्त्व
1938 ई। में उन्हें सेना में कमीशन मिला और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय वे पूर्वी मोर्चे पर थे। डिफेंस कॉलेज के प्रशिक्षण के बाद वे मेजर जनरल के रूप में तोपखाना डिवीजन के कमाण्डर बने। 1964 में जनरल ऑफ़ीसर कमांडिंग के रूप में उनको पूर्वी कमान की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई। उस समय के पूर्वी पाक में वहाँ की सेना के अत्याचारों से त्रसित लगभग एक करोड़ बंगाल निवासियों को हिंदुस्तान में शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा, तो हिंदुस्तान वहाँ की ‘मुक्ति सेना’ की सहायता के लिए आगे बढ़ा। इस पर पाक ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह का साहस और रण कौशल सामने आया। पाक की लगभग एक लाख सेना को चारों ओर से घेरकर और उस पर सैनिक और मनोवैज्ञानिक दबाव डालकर उन्होंने उसे सेरेण्डर के लिए बाध्य कर दिया। पाक के सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल नियाज़ी को सरेंडर पत्र पर हस्ताक्षर करके जगजीत सिंह के सामने झुकना पड़ा और नया राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ अस्तित्त्व में आया। जगजीत अरोड़ा के सेना नायकत्त्व में यह हिंदुस्तान की एक बड़ी कामयाबी थी। 80 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी सैनिक बन्दी बनाकर हिंदुस्तान लाए गए थे।
मृत्यु
जगजीत सिंह अरोड़ा की मौत 3 मई, 2005 को नयी दिल्ली में हुई थी।
पुरस्कार
जगजीत सिंह अरोड़ा को प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में हिंदुस्तान गवर्नमेंट द्वारा सन् 1972 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।