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जानें, सनातन धर्म में पूजा-पाठ से जुड़े इन नियमों के बारे में…

सनातन धर्म में पूजा-पाठ से जुड़े कई नियमों के बारे में कहा गया है पूजा-अर्चना की पद्धति के बारे में भी कहा गया है वहीं बताए गए नियमों और पद्धतियों के मुताबिक ही पूजा-अर्चना करने के लिए बोला जाता है कुछ लोग सुबह स्नान आदि कर पूजा करने से पहले अर्घ्य देते हैं

वैसे तो स्नान के बाद और पूजा से पहले ईश्वर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है लेकिन सूर्य देवता के अतिरिक्त भी अन्य देवी-देवताओं को भी अर्घ्य दिया जाता है जैसे कि तुलसी को अर्घ्य दिया जाता है, शिवलिंग को अर्घ्य दिया जाता है और पीपल के पेड़ को अर्घ्य दे सकते हैं इसके अतिरिक्त चंद्र देव को भी अर्घ्य दिया जाता है

आपको बता दें कि अर्घ्य देने के भी कई नियमों के बारे में कहा गया है अर्घ्य देते समय खड़े रहने का विधान होता है क्योंकि बैठकर या फिर अन्य किसी मुद्रा में अर्घ्य देना अच्छा और शुभ नहीं माना जाता है तो आइए जानते हैं खड़े होकर ही अर्घ्य देना महत्वपूर्ण क्यों होता है

खड़े होकर अर्घ्य देना

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ बैठकर किए जाने का विधान है लेकिन अर्घ्य खड़े होकर दिया जाना चाहिए ऐसा इसलिए बोला जाता है कि क्योंकि खड़े होकर अर्घ्य देने से शरीर के सातों चक्र जागृत हो जाते हैं वहीं सातों चक्र जागृत होने से शरीर में दिव्यता का प्रवेश होता है ऐसे में जब शरीर में दिव्यता प्रवेश करती है तो शरीर ने नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है

इसका एक कारण यह भी होता है कि यदि आप बैठकर अर्घ्य देते हैं, तो धरती पर गिरते जल या दूध की छींटे आपके पैर को छूएंगी इससे अर्घ्य दिए जाने की पवित्रता भंग हो जाती है और इसमें गुनाह आ जाता है इसके अतिरिक्त शास्त्रों में कहा गया है कि खड़े होकर अर्घ्य देने के दौरान आपके हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए इस तरह से अर्घ्य देने से मानसिक बीमारियां दूर होने के साथ स्ट्रेस भी कम होता है और मन-मस्तिष्क को शांति मिलती है वहीं इस तरह की मुद्रा ईश्वर के चरणों में समर्पित होती है इसलिए हमेशा खड़े होकर अर्घ्य देना शुभ माना जाता है

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