आस्था कोसी क्षेत्र के इस कुटी में आज भी सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामनाएं होती हैं पूरी
कहते हैं कि यदि सच्ची आस्था हो तो कंकड़ भी ईश्वर बन जाते हैं। ऐसी ही आस्था कोसी क्षेत्र के लोगों की अष्ट सिद्धि प्राप्त सिद्ध लोक संत और भारतीय साहित्य निर्माता कहे जाने वाले परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाई के प्रति भी है। इस क्षेत्र में विद्वानों का खजाना भरा पड़ा है। यहां के लोग देश-विदेश में एक से बढ़कर एक सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में बड़े ओहदे पर हैं। लोगों की मान्यता है कि बाबा की शक्ति के कारण इस क्षेत्र के लोग अपार विद्या प्राप्त करते हैं। सुपौल जिले के सदर प्रखंड के परसरमा गांव में उनका जन्म स्थल है।
यहां मान्यता है कि उनकी कुटी में आज भी सच्चे मन से मांगी गई इच्छा पूरी होती हैं। इतना ही नहीं, उस जगह की एक चुटकी मिट्टी और संत परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाई के चरण पादुका के जल से लोगों को बुरी नजर से निजात मिल जाती है। मनुष्यों के अतिरिक्त मवेशियों ने लिए भी यह जगह जरूरी है। कुटी के पुजारी दिनेश झा बताते हैं कि परसरमा स्थित बाबाजी की कुटी में आज भी उनकी चरण पादुका विद्यमान है। श्रद्धा के साथ लोग उसे पूजते हैं। इसी कुटी में ईश्वर नारायण का भी मंदिर है। वह कहते हैं कि आसपास के क्षेत्र में यदि किसी की गाय कम दूध देने लगती है या मवेशियों को बुरी नजर लग जाती है, तो उसे बाबा की कुटी परिसर की एक चुटकी मिट्टी और बाबा के चरण पादुका को धोकर उस जल को पिलाने से सभी तरह की बुरी नजर से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही प्रेतबाधा से भी मुक्ति मिलती है।
आधा दर्जन ग्रंथों की रचना
पुजारी श्री झा ने कहा कि संत लक्ष्मीनाथ गोसाई का जन्म 7 दिसंबर 1793 में परसरमा निवासी बच्चा झा और निर्मला देवी के घर हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा मधुबनी जिले के महिनाथपुर गांव में हुई। उन्हें मधुबनी जिले के ही रहुआ-संग्राम गांव में सिद्धि की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद उन्होंने अपना धर्म स्थल सहरसा जिले के बड़गांव को बनाया। उनका भागवत भजन स्थल मधुबनी जिले के लखनौर, दरभंगा जिले के रमौली, समस्तीपुर जिले के सिंघिया और सहरसा जिले का कहरा रहा। जबकि, देहावसान मधुबनी जिले के फैटकी में वर्ष 1872 में हुआ। उन्होंने पंचरत्न गीतावली, विवेक रत्नावली, अकारादि दोहावली, भाषा तत्वबोध, श्रीराम रत्नावली, गुरु चौबीसी, श्रीकृष्ण रत्नावली आदि की रचना की थी।