21 अप्रैल को मनाई जा रही है महावीर जयंती, जैन समुदाय के लिए बेहद खास है आज का दिन
हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को बड़े धूमधाम से महावीर जयंती मनाई जाती है. ईश्वर महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर हैं. इस वर्ष 21 अप्रैल को महावीर जयंती मनाई जा रही है. बता दें कि ईश्वर महावीर को वीर, वर्धमान, अतिवीर और संमति भी बोला जाता है. ईश्वर महावीर ने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया. इस दिन जैन धर्म का समुदाय जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं. वहीं कई जगहों पर भव्य जुलूस भी निकाला जाता है.
भगवान महावीर
बता दें कि ईश्वर महावीर जैनधर्म के 24वें और आखिरी तीर्थकर थे. महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व हुआ था. इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था. वहीं ईश्वर महावीर का नाम वर्द्धमान था.
कौन बनें तीर्थकर
जैन धर्म में तीर्थकर का अभिप्राय उन 24 दिव्य महापुरुषों में हैं, जिन्होंने सख्त तपस्या कर आत्मज्ञान प्राप्त किया और जिन्होंने अपनी भावनाओं और इंद्रियों पर पूरी तरह से विजय प्राप्त की.
क्यों नहीं धारण करते वस्त्र
भगवान महावीर ने अपनी तपस्या के दौरान दिगंबर रहना स्वीकार किया. वहीं दिगंबर मुनि आकाश को अपना वस्त्र मानते हैं, जिस कारण वह लोग वस्त्र धारण करते हैं. जैन मान्यता के अनुसार, वस्त्र विकार को ढकने के लिए होते हैं. जो विकारों से परे हैं, ऐसे मुनि को वस्त्रों को धारण करने की क्या जरूरत है.
ऐसे मिला ज्ञान
भगवान महावीर अपने जीवन के शुरूआती सील वर्षों तक राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में कमल की फूल की तरह रहे. इसके बाद उन्होंने मंगल साधना और आत्म जागृति के लिए 12 वर्ष जंगल में तपस्या की. वह अपनी आराधना में इतना अधिक लीन हो गए कि उनके शरीर से कपड़े अलग होकर गिर गए. 12 वर्ष की मौन तपस्या के बाद उनको ‘केवलज्ञान’ प्राप्त हुआ. इसके बाद अगले तीस वर्षों तक वह जनकल्याण हेतु चार तीर्थों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की रचना की.
महावीर के सिद्धांत
भगवान महावीर का आत्म धर्म दुनिया की प्रत्येक आत्मा के लिए एक समान था. वह मानते थे कि हमें दूसरों के प्रति भी ठीक वैसा ही व्यवहार रखना चाहिए. जैसा हमें स्वयं को पसंद हो. वह ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं. ईश्वर महावीर ने इस जगत को मुक्ति का संदेश देते हुए मुक्ति की आसान और सच्ची राह दिखाने का काम किया. उन्होंने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य जैसे पांच मूलभूत सिद्धांतों के बारे में बताया.
भगवान महावीर की दृष्टि में हिंसा
भगवान महावीर ने अपनी सारी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर जितेंद्र कहलाए. महावीर ने केवल शरीर को कष्ट दिए जाने को अत्याचार नहीं माना बल्कि मन, कर्म और वचन से किसी को आहत करना भी वह अत्याचार मानते हैं.
सबको क्षमा करना
भगवान महावीर कहते हैं कि वह सब जीवों से क्षमा चाहते हैं. क्योंकि इस जगत के सभी जीवों के प्रति वह मैत्री रेट रखते हैं. उनका किसी से वैर नहीं है और वह सच्चे दिल से धर्म में स्थिर हैं. इसलिए वह सब जीवों से अपने सारे अपराधों की क्षमा मांगते हैं. साथ ही सब जीवों ने जो उनके प्रति क्राइम किए, उसे भी वह क्षमा करते हैं.