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रैगिंग से तंग आकर स्टूडेंट ने दी जान

18 फरवरी 2024 को केरल के पुकुडे वेटरनरी कॉलेज के विद्यार्थी सिद्धार्थन जेएस ने रैगिंग की वजह से सुसाइड कर ली. हॉस्टल के वॉशरूम में उसका मृतशरीर छत से लटकता मिला.

सिद्धार्थन सेकेंड ईयर का विद्यार्थी था जो तिरुवनंतपुरम के पास एक गांव का रहने वाला था. रैगिंग का मुद्दा इतना गंभीर है कि CBI इसकी जांच कर रही है. एंटी रैगिंग स्क्वॉयड ने जो रिपोर्ट दी है वह रोंगेटे खड़े करने वाले हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, सिद्धार्थन को उसके सीनियर्स और क्लासमेट्स पिछले 8 महीने से परेशान कर रहे थे. कॉलेज जॉइन करने के बाद से ही उसे प्रत्येक दिन कॉलेज यूनियन के प्रेसिडेंट के पास सुबह-शाम अपनी हाजिरी लगानी पड़ती.

सीनियर्स उसके साथ हाथापाई करते. धमकाते कि उसके जन्मदिन पर उसे लोहे के पिलर में बांध कर आग में झोंक देंगे.

वो आए दिन सिद्धार्थन के कपड़े उतरवा कर न्यूड करते, गाली-गलौच करते. बेल्ट, केबल वॉयर और चप्पल से सबके सामने पीटते. पोस्टमाटर्म रिपोर्ट में कहा गया कि सिद्धार्थन के पूरे शरीर पर जख्म के निशान थे. 8 महीनों से उसकी रैगिंग हो रही थी.

सिद्धार्थन के पिता के अनुसार, सुसाइड से पहले 29 घंटे तक सीनियर्स ने सिद्धार्थन को टॉर्चर किया था. उसे न्यूड कर पूरे हॉस्टल में घुमाया गया. 3 दिनों तक खाना-पानी नहीं दिया गया था. सब ओर से निराश होने पर उसने खुदकुशी कर ली.

घटना के बाद 31 स्टूडेंट्स को एक्सपेल्ड किया गया है जबकि 33 स्टूडेंट्स को सस्पेंड किया गया है. केरल ही नहीं, देशभर में रैगिंग की घटनाएं सुनने को मिलती हैं. इनमें से कई मुद्दे इतने गंभीर होते हैं कि स्टूडेंट्स जान तक दे देते हैं.

साढ़े 5 सालों में रैगिंग के कारण 25 स्टूडेंट्स ने की आत्महत्या

देशभर में पिछले साढ़े 5 सालों में 25 स्टूडेंट्स ने रैगिंग के कारण सुसाइड कर ली. यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने आरटीआई के उत्तर में कहा है कि 1 जनवरी 2018 से 1 अगस्त 2023 के बीच ये शिकायतें दर्ज कराई गई थीं.

मध्यप्रदेश के नीमच के रहनेवाले आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर गौड़ ने सूचना के अधिकार के अनुसार ये जानकारी मांगी थी.

इसके अनुसार, रैगिंग की वजह से सुसाइड करने की 4-4 घटनाएं महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हुईं. ओडिसा में 3, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में 2-2 मुद्दे हुए. वहीं छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब से सुसाइड की 1-1 घटनाएं हुईं.

यूजीसी की एंटी रैगिंग सेल ने 10वर्षों (2013-22) की एक रिपोर्ट दी है जिसके अनुसार, यूपी में रैगिंग की 832 शिकायतें मिलीं

यूजीसी की जिस रिपोर्ट में तमिलनाडु में 4 स्टूडेंट्स के सुसाइड करने की बात कही गई है उसमें दो विद्यार्थी आईआईटी मद्रास के विद्यार्थी थे जबकि सुसाइड करने वाला एक और विद्यार्थी थुटुकुडी स्थित सरकार मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था.

महाराष्ट्र में जिन 4 स्टूडेंट्स ने रैगिंग के बाद जान दी उनमें से दो आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट थे जबकि दो टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज और एमजीएम मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट थे.

सोसाइटी अगेंस्ट वॉयलेंस इन एजुकेशन (SAVE) के फाउंडर डाक्टर कुशल बनर्जी रैगिंग को कहते हैं कि इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में सबसे अधिक रैगिंग की जाती है. इनमें भी मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग अधिक है.

भारत में हर तीन में से एक मेडिकल कॉलेज रैगिंग के बारे में रिपोर्ट करते हैं. यानी 75 फीसदी मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग हो रही है. 2019 तक रैगिंग कंट्रोल में था लेकिन अब स्थितियां ठीक नहीं हैं. इसका मुख्य कारण यूजीसी का उदासीन रवैया होना है.

60% से अधिक स्टूडेंट्स रैगिंग सामना करते हैं

भारत के कॉलेजों, यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों या आईआईटी, मेडिकल जैसे प्रीमियर संस्थानों में कठोरता के बावजूद रैगिंग नहीं रुक रही है.

रैगिंग पर जेएनयू की एक स्टडी के अनुसार, देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले 60% स्टूडेंट्स के साथ रैगिंग होती है. इनमें से कई स्टूडेंट्स गंभीर रूप से घायल होते हैं और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ता है.

कई स्टूडेंट्स रैगिंग की वजह से संस्थान छोड़ देते हैं. कई संस्थानों में सजा देने के नाम पर रैगिंग होती है जिसे ‘रगड़ा’ कहते हैं. इसकी वजह से 2008 से 2017 के बीच 1256 कैडटों ने नेशनल डिफेंस एकेडमी छोड़ दिया.

2016 में भारतीय मिलिटरी एकेडमी ने अपने 16 अंडर ट्रेनिंग कैडेट को डिमोट किया. 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन संस्थानों में हर वर्ष 16 से 20% ड्रॉपआउट दर है. ये वो संस्थान हैं जहां दाखिला लेना भी किसी स्टूडेंट्स के लिए गर्व की बात होती है.

रैगिंग के विरुद्ध कैंपेन चलाने वाले IIT कानपुर के एलुमिनी गौरव सिंघल कहते हैं कि रैगिंग रोकने के लिए कई तरीका किए जाते हैं लेकिन हकीकत में ये नाकाफी होते हैं.

एंटी रैगिंग नेशनल हेल्पलाइन नंबर काम नहीं करता. हेल्पलाइन पर कंप्लेन दर्ज नहीं होती. प्रताड़ित स्टूडेंट्स को कॉलेज के प्रिंसिपल या डीन के पास जाने को बोला जाता है. कम्पलेन के बाद भी अक्सर कॉलेज मैनेजमेंट एक्शन नहीं लेता. कॉलेज के रेपुटेशन पर फोकस होते हैं.

हेल्पलाइन पर विद्यार्थियों का दर्द नहीं सुना जाता, जिससे सीनियर्स का हौसला बढ़ता है. कॉलेज प्रबंधन ही मुद्दे को दबाने में लग जाता है. सच्चाई यह है कि हिंदुस्तान के 5 फीसदी कॉलेजों में भी नियम का पालन नहीं किया जा रहा.

रैगिंग के नाम पर विद्यार्थियों को सेक्शुअल एक्टिविटी में जबरन धकेला जाता है.

 

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