यहां भोलेबाबा ने कामदेव को किया था भस्म, आज भी मौजूद है ये त्रिशूल
उत्तराखंड के चमोली जिले में वैसे तो कई शिव मंदिर हैं। लेकिन, यहां पर स्थित एक मंदिर अपने नाम के एकदम उलट है। मंदिर में भोलेनाथ को श्रीकृष्ण की गोपी के रूप में पूजा जाता है। जिला मुख्यालय गोपेश्वर में प्राचीन गोपीनाथ मंदिर (Gopinath Temple Chamoli) स्थित है, जो लगभग 9वीं और 11वीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित करवाया गया था। इस मंदिर के नाम को लेकर एक रोचक प्रसंग है। मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब ईश्वर कृष्ण बांसुरी बजाकर गोपियों संग रासलीला कर रहे थे। तब ईश्वर शिव भी रासलीला से मोहित हो गए। और वह गोपी रूप धारण कर वहां पहुंच गए। लेकिन, श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया। तब उन्होंने भोलेनाथ को गोपीनाथ नाम दिया।
मंदिर प्रांगण में प्राचीन करीब पांच मीटर लंबा विशाल त्रिशूल स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बिंदु है। मान्यता है कि ईश्वर शिव ने क्रोधित होकर इसी त्रिशूल से कामदेव को भस्म किया था। आज भी इस त्रिशूल को शरीर के पूरे बल से भी नहीं हिलाया जा सकता है। लेकिन, यदि हाथ की छोटी उंगली से स्पर्श किया जाए, तो त्रिशूल हिलने लगता है।
कामदेव से भी है गोपीनाथ मंदिर का संबंध
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार और जानकार क्रांति भट्ट बताते हैं कि गोपीनाथ अथवा रूद्रनाथ की (शीतकालीन गद्दी स्थल) के नाम से मशहूर यह शिव मंदिर बद्रीनाथ और केदारनाथ के प्राचीन यात्रा मार्ग पर स्थित है। जो गढ़वाल क्षेत्र के सर्वाधिक विशाल तथा ऊंचे मंदिरों में से एक है। इसी जगह कर कामदेव को जब ईश्वर शंकर ने भस्म किया था, तो उसके बाद रति ने तप किया और ईश्वर शंकर ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में कामदेव और उनकी पत्नी रति मछली के रूप में रहते हैं। गोपीनाथ मंदिर में सदैव पूजा के लिए जल रति कुंड से ही लाया जाता है।