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आइए जानते हैं होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा….

सनातन धर्म में हर वर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि की रात्रि में होलिका दहन मनाया जाता है और अगले दिन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंगोत्सव मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन की अग्नि जीवन के सभी दुखों और कष्टों से मुक्ति दिलाती है. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पावन पर्व होली का बड़ा महत्व है. साथ ही हर वर्ष पूरे विधिविधान से होलिका पूजा की जाती है और होलिक दहन भी होता है. दृक पंचांग के अनुसार, आज सुबह  9 बजकर 23 मिनट से पूर्णिमा तिथि का शुरुआत हो चुका है, जो कि 25 मार्च को सुबह 11:31 खत्म होगा. होलिका दहन के दिनभर भद्रा का साया रहने के कारण रात्रि 11:13 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 27 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त बन रहा है. पौराणिक कथाओं में होलिका दहन मनाए जाने के पीछे प्रभु श्रीहरि विष्णुजी के भक्त प्रहलाद की कहानी का वर्णन किया गया है.

क्या है होलिका दहन की कथा : होलिका दहन की कथा पर चर्चा करते हुए आचार्य ने कहा कि ईश्वर विष्णु के परम भक्त प्राद के पिता राक्षसराज हिरणाकश्यप था. जो अपने आप को ईश्वर मानता था. प्राद को रास्ते से हटाने के लिए वह उसका वध करना चाहता था. जबकि उसकी बहन को आग से नहीं जलने का वरदान था. प्राद को अपने गोद में रखकर आग की धधकती ज्वाला में वह बैठ गई. लेकिन प्रभु की कृपा के कारण होलिका जल गई और विष्णु भक्त प्राद बच गया. पूर्णिमा के रात्रि घटित घटना को लेकर उसी समय से होलिका दहन के बाद रंगों का उत्सव होली उसके दूसरे दिन मनायी जाती है.

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