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नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से पेश विधेयक को लेकर लगातार उठाते ये सवाल

महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास हो चुका है हालांकि, अभी इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलनी बाकी है इस बीच, नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से पेश विधेयक को लेकर लगातार ये सवाल उठते रहे कि आखिर यह क्यों महत्वपूर्ण है? इससे पहले पंचायत स्तर पर जो आरक्षण दिया गया, उसने स्त्रियों को कितना सशक्त बनाया है? हम आपको ऐसे प्रश्नों का उत्तर विस्तार से दे रहे हैं छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रिसामा पंचायत की सरपंच का नाम गीता महानंद है उन्होंने बोला कि यदि पंचायती राज प्रबंध में स्त्रियों के लिए आरक्षण नहीं होता तो वह कभी भी ग्रामीण चुनाव लड़ने के लिए आगे नहीं आतीं महानंद एक गृहिणी हैं, जो स्त्रियों के लिए सीट आरक्षित होने के बाद राजनीति में आईं उन्होंने बोला कि आरक्षण ने न सिर्फ़ उन्हें फैसला लेने के लिए सशक्त बनाया, बल्कि समाज के लिए और अधिक करने के लिए उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाया

पंचायती राज संस्थाओं में स्त्रियों के लिए सीटों का आरक्षण प्रारम्भ होने के बाद से तीन दशक बीत चुके हैं इस दौरान राष्ट्र ने स्त्रियों को जमीनी स्तर पर सियासी क्षेत्र में नेतृत्व करने और उत्कृष्टता हासिल करने के लिए लैंगिक बाधाओं को तोड़ते देखा है वर्ष 1992 में पी वी नरसिंह राव गवर्नमेंट ने 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया था, जिसमें पंचायती राज संस्थानों में स्त्रियों के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना महत्वपूर्ण किया गया उसके तीन दशक से अधिक समय के बाद 128वां संविधान संशोधन विधेयक को राजनीति में लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में एक और जरूरी कदम के तौर पर देखा जाता है इस विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है

‘शुरुआत में विरोध का करना पड़ा सामना’
सरपंच बनने के बाद महानंद ने अपनी पंचायत में स्वच्छता में सुधार के लिए एक्टिव कदम उठाए उन्होंने कहा, ‘हमें अपने स्वच्छता प्रयासों के लिए 20 लाख रुपये का ग्रांट मिला है हमने सभी संस्थानों में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया हमने स्वच्छ हिंदुस्तान पहल के अनुसार शौचालयों का निर्माण किया और स्त्रियों को रोजगार दिया, उन्हें पंचायत निधि से भुगतान किया हमने स्वच्छता कर भी लगायाआरंभ में उन्हें कुछ विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि लोगों को नयी पहल के बारे में शक था महानंद ने कहा, ‘शुरुआत में कुछ असहमतियां थीं हमने बड़ों को समझाने के लिए बच्चों का योगदान लिया और वे अब कूड़ा-कचरा के डिस्पोजल के बारे में बात करते हैं हम अभी लाइब्रेरी बनाने की प्रक्रिया में हैं

‘महिलाओं को अपने अधिकारों पर देना होगा जोर’
राजनीति में अपनी एंट्री के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, ‘गांव वालों ने सुझाव दिया कि मैं पढ़ी-लिखी हूं, इसलिए मुझे चुनाव लड़ना चाहिए मैं राजनीति में नयी थी और मेरे परिवार में कोई भी इस क्षेत्र में नहीं था आरंभ में मेरे पति ने एक सलाहकार के रूप में कार्य कियास्त्री आरक्षण विधेयक के संसद में पारित होने के बारे में महानंद ने कहा, ‘यह पहले ही हो जाना चाहिए था हम समानता की बात करते हैं, लेकिन इसे कब लागू किया जाएगा, इस पर अभी भी कोई स्पष्टता नहीं है’ यह पूछे जाने पर कि कुछ लोगों ने चिंता व्यक्त की है कि विधेयक अपने वर्तमान स्वरूप में सियासी परिवारों की स्त्रियों को हावी होने दे सकता है, जिससे उन लोगों के लिए बहुत कम स्थान बचेगी जिन्हें वास्तव में अवसर की जरूरत है उन्होंने कहा, ‘ऐसा हो सकता है, लेकिन स्त्रियों को आगे आना चाहिए और अपने अधिकारों पर बल देना चाहिए

‘आरक्षण से मुझे सशक्तिकरण मिला’
राजस्थान के एक दूरदराज के गांव की स्त्री सरपंच ने कहा, ‘आरक्षण के माध्यम से मुझे सशक्तिकरण मिला’ चुनाव मैदान में उतरने पर उन्हें घरेलू दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा उन्होंने कहा, ‘मेरे पति ने मुझे नियंत्रित करने की प्रयास की, लेकिन गांव की महिलाएं मेरे समर्थन में आ गईं धीरे-धीरे यहां तक कि मेरे अपने परिवार ने भी मेरा सम्मान करना प्रारम्भ कर दिया उन्हें एहसास हुआ कि मैं बस अपने गांव की स्थिति में सुधार करना चाहती हूं’ उन्होंने बोला कि जैसे-जैसे मेरे बच्चे बड़े हुए उन्होंने भी मेरा समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया यदि आरक्षण नहीं होता तो मैं कभी भी अपने घर से बाहर निकलने और चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोचती

‘घर से बाहर नहीं निकलने देते थे पुरुष’
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सालखेड़ा गांव में ग्राम परिषद सदस्य अनीता का यात्रा सशक्तिकरण का प्रतीक है अनीता ने कहा, ‘इस छोटे से गांव में स्त्रियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था पुरुष उन्हें बाहर नहीं निकलने देते थे यदि आरक्षण नहीं होता तो एक स्त्री के लिए चुनाव लड़ना अविश्वसनीय रूप से मुश्किल होता जब मैं सदस्य बनी तो एक NGO (गैर सरकारी संस्था) ने सिखाया कि हमें अपने विचारों को लोगों तक कैसे पहुंचाना है और परिवर्तन लाना है मैं अपनी पंचायत में स्त्रियों को आगे बढ़ने और अधिक जिम्मेदारियां लेने के लिए प्रोत्साहित करती हूं मेरा दृढ़ विश्वास है कि उन्हें बड़ी किरदार निभानी चाहिए’ जमीनी स्तर के संगठन ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया’ से जुड़ी सीमा भास्करन ने बोला कि पंचायत में स्त्री आरक्षण ने स्त्रियों के लिए सियासी जगह खोल दिया है उन्होंने कहा, ‘जिन राज्यों में पंचायती राज में आरक्षण को स्त्री निर्वाचित प्रतिनिधियों की क्षमता निर्माण के साथ जोड़ा गया है, वहां परिवर्तन प्रभावशाली रहा है

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