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गुजरात के खेड़ा में निवर्तमान सांसद चौहान का कांग्रेस के दिग्गज डाभी से मुकाबला

लोकसभा चुनाव निकट आते ही गुजरात का खेड़ा निर्वाचन क्षेत्र सियासी गतिविधियों का केंद्र बन गया है. यहां बीजेपी और कांग्रेस पार्टी एक और चुनावी मुकाबले के लिए हैं.

भारत के पहले उप पीएम वल्लभभाई पटेल के जन्मस्थान और तंबाकू की खेती के लिए मशहूर खेड़ा गुजरात के सियासी परिदृश्य में एक प्रभावशाली क्षेत्र रहा है.

अपने ऐतिहासिक महत्व और जीवंत सियासी गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में बीजेपी के निवर्तमान सांसद देवुसिंह जेसिंगभाई चौहान और कांग्रेस पार्टी उम्मीदवार कालूसिंह डाभी के बीच मुकाबला है.

वर्तमान में संचार राज्य मंत्री चौहान 17वीं लोकसभा में खेड़ा का अगुवाई करते हुए, गुजरात की राजनीति में एक प्रमुख शख्शियत रहे हैं.

इस क्षेत्र में चौहान की सियासी यात्रा 2014 के आम चुनाव में जीत के साथ प्रारम्भ हुई. यहां उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की.

2019 के चुनाव में उन्होंने 714,572 वोट हासिल करतेे हुए 367,145 वोटों के अंतर से जीत हासिल की.

उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी के बिमल शाह को 347,427 वोट मिला था.

इस वर्ष 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक कार्यक्रम के अवसर पर खेड़ा में “मांस-निषेध” दिवस मनाने की घोषणा कर देवुसिंह चर्चा में आए थे.

दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी ने क्षेत्रीय समुदाय में अपनी गहरी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ नेता कालूसिंह डाभी पर दाव लगाया है.

66 वर्षीय डाभी ने अपना सियासी जीवन एक सरपंच (ग्राम प्रधान) के रूप में प्रारम्भ किया और कांग्रेस पार्टी पार्टी में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने कठलाल तालुका इकाई के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया.

उन्होंने राज्य विधानसभा में कपडवंज का भी अगुवाई किया. 2017 के राज्य विधानसभा के चुनाव में उन्होंने 27 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की.

ऐतिहासिक नाम कैरा से भी जाना जाने वाले खेड़ा की न सिर्फ़ सियासी पहचान है, बल्कि सांस्कृतिक और कृषि की दृष्टि से भी यह क्षेत्र जरूरी है.

इस निर्वाचन क्षेत्र में दसक्रोई, ढोलका, मटर, नडियाद, महुधा और कपडवंज सहित सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.

खेड़ा में गौरतलब जाट जनसंख्या है. इस जाति के लोग प्रदेश में मुख्य रूप से बनासकांठा, मेहसाणा, सबरभांथा और कच्छ जिलों में रहते हैं.

खेड़ा में जैन धर्म की एक विशेष पहचान है. जिले में राजपूतों में चौहान सबसे अधिक हैं.

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