कोडरमा में एक भव्य महल के रूप में पूजा पंडाल का दिया जा रहा अंतिम रूप
कोडरमा। शहर के चाराडीह में सार्वजनिक दुर्गोत्सव परिषद के द्वारा 1952 से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है। यहां बंगाली पद्धति से पूजा की जाती है। यहां पूजा की आरंभ बंगाल से आए श्रमिकों द्वारा की गई थी। आज भले ही पूजा की आरंभ करने वाले लोग कोडरमा से पलायन कर चुके हैं, लेकिन दुर्गा पूजा अनवरत जारी है। 71 वर्षों से जारी परंपरा का भी निर्वहन किया जा रहा है। वर्ष 2004 से क्षेत्रीय लोगों द्वारा यहां पूजा का आयोजन किया जा रहा है।
इस साल पूजा समिति के निर्देश पर जामताड़ा के कारीगरों के द्वारा एक भव्य महल के रूप में पूजा पंडाल का निर्माण कार्य इसे आखिरी रूप दिया जा रहा है। पूजा समिति के कोषाध्यक्ष विकास कुमार दास ने कहा कि 71 साल पहले माइका कारोबार से जुड़े बंगाल के कर्मियों के द्वारा दुर्गा पूजा की आरंभ की गई थी। वर्ष 2004 में गवर्नमेंट के निर्देश पर जिले में माइका उत्खनन का कार्य बंद होने के बाद मजदूर भी यहां से पलायन कर गए।
बंगाल से आते हैं कारीगर
यहां पश्चिम बंगाल के बर्धमान से पुजारी, ढोल वादक और भोग बनाने वाले कारीगरों को बुलाने की परंपरा है, ताकि पूजा विशुद्ध रूप से बंगली पद्धति से हो सके। उसी पुरानी परंपरा को बरकरार रखने के लिए आज भी बर्धमान से पूजी, ढोल वादक और भोग बनाने वाले कारीगर को बुलाया जा रहा है।
पूजा का 5 लाख का बजट
विकास कुमार दास ने कहा कि इस साल 60 फीट चौड़ा और 65 फीट ऊंचा भव्य पूजा पंडाल को आखिरी रूप दिया जा रहा है। प्रतिमा का निर्माण जयनगर के मूर्तिकार के द्वारा किया गया है। कहा कि जब से यहां पर पूजा की आरंभ हुई है, तब से पूजा करने वाले पुरोहित, ढोल वाले, भोग बनाने वाले सभी बंगाल से आते हैं। यहां पर बांग्ला पद्धति में पूजा होती है। प्रतिमा निर्माण में 50 हज़ार एवं सुन्दर लाइटिंग में 70 हज़ार लागत आयी है। उन्होंने कहा कि पूजा की पूरी तैयारी में 5 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। जिसमें आसपास के सभी गांव के लोगों का भरपूर योगदान मिला है।