गुमला में 250 साल पहले यहां हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत
गुमला में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं। जहां सालों से पूजा-अर्चना होती आ रही है। उन्हीं में से एक शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की पूजा का इतिहास काफी पुरानी है। नागवंशी राजाओं ने जिले के पालकोट प्रखंड में सर्वप्रथम दुर्गा पूजा की आरंभ की थी। उनके द्वारा निर्मित मंदिर और मूर्ति आज भी साक्ष्य के रूप में गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में उपस्थित हैं, जो दशभुजा के नाम से मशहूर है। यहां दुर्गा पूजा की अपनी महत्ता है।
मंदिर के पुजारी जगरनाथ मिश्रा ने कहा कि मां दशभुजा मंदिर का निर्माण लगभग 258वर्ष पूर्व नागवंशी राजा द्वारा किया गया था। यह जिले के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहां मां की 16 भुजाओं वाली प्रतिमा है, जोकि आपरूपी है, यानि स्वयं से प्रकट हुई है। इनका नाम मां महिषासुर मर्दिनी है। शुरुआती समय से आज तक वही मूर्ति विराजमान है। नवरात्रि में यहां राजा एवं उनके परिवार द्वारा विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती थी। वो परंपरा आज भी जीवित है। वर्तमान में उनके वंशज लाल गोविंद नाथ शाहदेव एवं लाल दामोदर नाथ शाहदेव द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि में यहां 3 घंट की पूजा होती है। जो सुबह-शाम की जाती है। मां मनवांछित फल प्रदान करने वाली है, इसलिए बहुत दूर दूर से यहां भक्तों का आना जाना लगा रहता है।
मां से दिल से मांगी गई हर मुरादें होती हैं पूरी
नागवंशी राजा यदुनाथ शाह ने गुमला में 1765 ई में दुर्गा पूजा की आरंभ की थी। उस समय भैंस की बली देने की प्रथा थी। उनके बाद उनके वंशज विश्वनाथ शाह, उदयनाथ शाह, श्यामसुंदर शाह, बेलीराम शाह, मुनिनाथ शाह, धृतनाथ शाहदेव, देवनाथ शाहदेव, गोविंद शाहदेव और जगरनाथ शाहदेव ने मां दशभुजा की इस पूजा अर्चना और बली की परंपरा बरकरार रखी। परंतु जब कंदर्पनाथ शाहदेव राजा बने, तो उन्होंने भैंस की बली देने की प्रथा खत्म कर दी। उसके बाद बकरे की बली दी जाने लगी जो आज भी बरकरार है। यहां 258 साल से दुर्गा पूजा होते आ रही है। नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित यह मंदिर विश्व विख्यात है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं। मान्यता है कि मां से दिल से मांगी गई हर मुरादें पूरी होती है।