झारखण्ड

झारखंड मे 3 महीने मे 200 से अधिक युवा ब्राउन शुगर और अफीम के हुये शिकार

रांची. आपने फिल्म उड़ता पंजाब तो देखी ही होगी, जिसमें ड्रग्स की चपेट में आए युवाओं की कहानी दिखाई गई थी. लेकिन, अब झारखंड भी उसी राह पर है. यहां पुलिस-प्रशासन अलर्ट नहीं हुआ तो यह राज्य भी ‘उड़ता झारखंड’ बन जाएगा. दरअसल, कांके स्थित RINPAS (Ranchi Institute of Neuro-Psychiatry & Allied Sciences) के आंकड़ों ने लोगों को यह सोचने पर विवश कर दिया है.

RINPAS के मेडिकल सुपरीटेंडेंट डाक्टर विनोद ने Local 18 को कहा कि पिछले 3 महीने में 200 से अधिक युवा खासकर ब्राउन शुगर और अफीम की नशे की लत में यहां पहुंचे हैं. अब यह संख्या पिछले सप्ताह से और भी अधिक होती जा रही है. इस एक सप्ताह में प्रत्येक दिन 8 से 10 युवा ब्राउन शुगर की लत के कारण ओपीडी में आ रहे हैं. वहीं, सीआईपी के साइकेट्रिस्ट चिकित्सक बलबीर ने कहा कि नशे की लत में यहां पहुंचने वाले किशोर या युवाओं को संभालना कठिन हो जाता है.

नशा मुक्ति केंद्र में इलाज
रिनपास की साइकोलॉजिकल प्रोफेसर मसरूर जहां ने कहा कि यहां पर ओपीडी में 8-10 रोगी प्रत्येक दिन आते हैं. उनमें से तीन-चार तो ऐसे होते हैं, जिन्हें तुरंत एडमिट करने की आवश्यकता पड़ती है. उनके माता-पिता उनके हाथ-पैर बांधकर यहां लाते हैं. उनकी मानसिक स्थिति बहुत खराब होती है. ऐसा की उस समय उनकी काउंसलिंग करना भी कठिन होता है. इस समय केवल मेडिसिन के दौरान उन्हें स्टेबल किया जाता है.

ज्यादातर 12 से 17 वर्ष के
प्रोफेसर ने आगे कहा कि नशे के लतियों में अधिकतम 12 से 17 वर्ष की उम्र के बीच के रोगी होते हैं. दरअसल, ये उम्र ऐसी होती है कि इसमें शरीर में काफी तरह के हार्मोन चेंज आते हैं. ऐसे में हर चीज के प्रति उनकी जिज्ञासा काफी बढ़ती है. हमने कई ऐसे युवा को भी देखा है जो केवल एक बार ट्राई करने के बहाने इस तरह के नशे करते हैं, फिर उसकी चपेट में आ जाते हैं. इसलिए अभिभावकों को काफी सावधान रहने की आवश्यकता है.

ऐसे पहचाने बच्चे में नशे की लत
प्रोफेसर मसरूर जहां ने कहा कि खासकर अभिभावकों को काफी सचेत रहने की आवश्यकता है. उन्हें बच्चों के बर्ताव को परखना चाहिए. मान लीजिए बच्चा पहले की तरह अधिक हंसता-खेलता नहीं है या फिर पहले की तरह अपनी पसंदीदा हॉबीज को एंजॉय नहीं करता. दिन भर सोया रहता है, किसी भी काम में मन नहीं लगता है. हमेशा चिड़चिड़ा रहता है या कुछ कहो तो गुस्सा जाता है. यदि ऐसी स्थिति है तो अभिभावक सावधान हो जाएं. ऐसे में बच्चों को समझाएं और स्थिति फिर भी न सुधरे तो फौरन साइकेट्रिस्ट के पास लेकर आएं.

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