अंतर्राष्ट्रीय

रूस ने मिसाइल किया टेस्ट,रूस और अमेरिका के बीच तनातनी का पुराना इतिहास

What is CTBT:  क्या एक बार फिर परमाणु परीक्षणों का दौर प्रारम्भ हो जाएगा दरअसल यह प्रश्न इसलिए है क्योंकि परमाणु अप्रसार संधि यानी सीटीबीटी से रूस बाहर निकल चुका है खास बात यह भी है कि इस संधि से बाहर निकलने के बाद रूस ने मिसाइल टेस्ट किया है जिसके बाद तनाव का बढ़ना लाजिमी है रूस और अमेरिका के बीच विवाद का पुराना इतिहास रहा है दोनों राष्ट्रों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव के दौर को दुनिया देख चुकी है यूक्रेन पर जब रूस ने आक्रमण किया उसके बाद अमेरिका के साथ उसके संबंध बहुत खराब हो चुके हैं अब सीटीबीटी से निकलने के बाद मिसाइल टेस्ट के बाद रिश्तों पर पड़ी बर्फ और मोटी हो जाएगी हालांकि यहां पर हम बताएंगे कि सीटीबीटी क्या है इसे लाए जाने के पीछे मकसद क्या था और इससे क्या हासिल हुआ है

1996 में सीटीबीटी पर सहमति

1996 में परमाणु अप्रसार के संबंध में दुनिया के कद्दावर राष्ट्रों में सहमति बनी इसका मकसद यह था कि दुनिया के किसी भी हिस्से में परमाणु विस्फोट, परमाणु परीक्षण विस्फोट पर लगाम लगाया जाए इसके साथ ही धीरे धीरे परमाणु हथियारों के जखीरों में कमी ला उन्हें समाप्त कर दिया जाए इसकी प्रस्तावना में परमाणु हथियारों के निरस्त्रकरण और अप्रसार पर खास बल दिया गया यही नहीं ऐसे राष्ट्रों पर लगाम लगाने की बात थी जिनके पास परमाणु हथियार पहले से उपस्थित थे और वे उन्हें और शक्तिशाली बनाने की प्रयास में जुटे थे

इतने राष्ट्रों ने किए हैं हस्ताक्षर

अभी तक कुल 187 राष्ट्रों ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर किए हैं और 178 राष्ट्रों की संसद ने इसे कानूनी मान्यता दी अब रुस के अलग हो जाने के बाद यह संख्या 177 हो चुकी है दुनिया के कुल 9 देशों के पास परमाणु हथियार हैं इनमें से फ्रांस और ब्रिटेन ने हस्ताक्षर के साथ कानूनी मान्यता दी है अमेरिका, इजरायल, चीन ने हस्ताक्षर किए हैं लेकिन कानूनी मान्यता नहीं दी है रूस ने हस्ताक्षर और कानूनी मान्यता दी थी हालांकि रूस अब अलग हो चुका है भारत, पाक और उत्तर कोरिया ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं

सीटीबीटी कितना प्रभावी
यह संधि तब तक वैध नहीं है जब तक कि परमाणु हथियारों से लैस 9 राष्ट्र और 35 वे राष्ट्र जिनके पास न्यूक्लियर पावर और रिसर्च रिएक्टर हैं वो अनुमोदन नहीं करते यहां प्रश्न यह है कि तब इसका क्या व्यवहारिक असर होगा इसका अर्थ यह है कि धरातल पर यदि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बड़े पैमाने पर टेस्ट नहीं हुए हैं अपवाद के तौर पर केवल उत्तर कोरिया है जिसने 2017 में 6 टेस्ट किए थे इसके अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूक्लियर टेस्ट के संबंध में निगहबानी की जाती है इसके लिए शॉकवेव, रेडियो सक्रिय विकिरण को मांपा जाता है, जब सीटीबीटी अपने पूर्ण स्वरूप में आएगा तो पूरे विश्व में 321 मॉनिटरिंग स्टेशन, 16 प्रयोगशालाएं बनायी जाएंगी

क्या हांथी की दांत की तरह है सीटीबीटी

अब रूस ने ऐसा क्यों किया रूस का बोलना है कि जब तक अमेरिका न्यूक्लियर टेस्ट नहीं करेगा तब तक वो कुछ नहीं करेगा लेकिन अब जानकारों का बोलना है कि यूक्रेन के साथ जंग में पश्चिमी राष्ट्रों के रुख से रूस बेचैन हो उठा है रूस कहता भी रहा है कि यदि अमेरिका से यूक्रेन को सहायता ना मिले तो यह लड़ाई हम बहुत पहले जीत चुके होते जानकारों के अनुसार यदि आप परमाणु अप्रसार संधि को देखें तो इसकी सफलता में दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्रों का समर्थन होना महत्वपूर्ण है लेकिन यह देखा गया है कि शक्तिशाली देश इस तरह की संधियों की व्याख्या अपने हिसाब से करते हैं रूस ने अपनी सुविधा के हिसाब से सीटीबीटी से बाहर निकलने का निर्णय किया दरअसल रूस के इस एक्शन को अमेरिकी, ब्रिटेन, फ्रांस पर दबाव के तौर पर देखा जाना चाहिए और यूक्रेन की जंग से सीधा कनेक्शन है रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले भी कह चुके हैं कि यदि पश्चिमी देश यूक्रेन के समर्थन में नहीं आए होते तो तस्वीर कुछ और रही होती

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