स्वास्थ्य

जन्म से पहले ही ऐसे पहचाना जा सकता है बच्चों में दिल की बीमारी का बढ़ रहा खतरा

अल्ट्रासाउंड इमेजिंग 

अमृता अस्पताल, फरीदाबाद के डॉक्टरों के अनुसार, गर्भावस्था के 16-20 हफ्तों (लगभग 4 और एक आधा महीना) के दौरान, अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड इमेजिंग से चिकित्सक बच्चे के विकसित हो रहे दिल की संरचना और कार्य को अच्छी तरह से देख सकते हैं और किसी भी तरह की परेशानी का पता लगा सकते हैं

डॉक्टर कहते हैं, “इस समय माता-पिता को महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है, जिससे वे गर्भावस्था (Pregnancy) के बारे में निर्णय ले सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बच्चे के जन्म के बाद समय पर उपचार करवा सकते हैं

सबसे आम जन्मजात दिल बीमारी (Heart disease) हैं “Ventricular septal defect” और “Atrial septal defect” (जिसे आम तौर पर “Hole in the heart” बोला जाता है) वहीं, “टेट्रालॉजी ऑफ फालोट” उन बच्चों में अधिक पाया जाता है, जिन्हें “सायनोसिस” (ऑक्सीजन की कमी) की परेशानी होती है

जन्मजात दिल बीमारी Congenital heart disease

विशेषज्ञों का मानना है कि नियमित प्रसवपूर्व जांच और अत्याधुनिक इमेजिंग तकनीक से लैस डॉक्टरों से जांच करवाने से गर्भ में ही जन्मजात दिल बीमारी (Congenital heart disease) का पता लगाया जा सकता है

जन्म के बाद दिल की रोग का पता लगाने के लिए “Echocardiography” का इस्तेमाल किया जाता है कभी-कभी सीटी स्कैन और MRI जैसी तकनीकें भी महत्वपूर्ण हो सकती हैं चिकित्सक सुशील आज़ाद, प्रिंसिपल कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी, अमृता अस्पताल, कहते हैं, “जन्म के बाद दिल की रोग का पता चलने पर उपचार का समय दिल की परेशानी की गंभीरता पर निर्भर करता है गंभीर समस्याओं का उपचार जन्म के समय ही करना पड़ता है, जबकि कुछ कम गंभीर समस्याओं का उपचार कुछ महीनों या वर्षों बाद भी किया जा सकता है

उन्होंने यह भी कहा कि उपचार के ढंग रोग के प्रकार के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, जैसे दवाएं, कैथेटर से उपचार या खुली दिल की सर्जरी अब तो आप भी समझ गए होंगे कि जन्म से पहले ही डॉक्टरी जांच से बच्चों में दिल की रोग (Heart disease) का पता लगाकर समय पर उपचार करवाना कितना महत्वपूर्ण है

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