जानिए, महिलाओं को किस रोग का खतरा सबसे अधिक
International Women Day 2024: इस अंतर्राष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर आइए जानते हैं स्त्रियों को किस बीमारी का सबसे अधिक खतरा होता है।
ब्रेस्ट कैंसर
भारत में ब्रेस्ट कैंसर के लगातार बढ़ते आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे महानगरों की महिलाएं तेजी से इसकी शिकार हो रही हैं। बदलती जीवनशैली के कारण महिलाएं करियर को अहमियत देती हैं और विवाह की उम्र बढ़ती जाती है। जो महिलाएं 25 से 30 साल के बीच या 35 साल के बाद मां बनती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि उनके शरीर में एस्ट्रोजन अधिक समय तक रह जाता है।
इसके अतिरिक्त कामकाजी महिलाएं ठीक तरह से अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करा पाती इससे भी ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। आंकड़ों की मानें तो जो महिलाएं बच्चों को एक वर्ष तक दूध पिलाती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा 11 फीसदी तक कम हो जाता है और यदि यह अवधि 24 महीने तक होती है, तो यह खतरा 25 फीसदी तक कम हो जाता है। जीवन में बढ़ते तनाव के कारण स्त्रियों में मेनोपॉज समय से पहले हो रहा है। इस कारण महिलाएं मां नहीं बन पातीं, इससे भी ब्रेस्ट कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त मोटापा और हॉर्मोन असंतुलन भी इसके रिस्क फैक्टर माने जाते हैं।
हृदय रोग
जंक फूड के प्रचलन ने मैदा, चीनी और नमक का सेवन बढ़ा दिया है। गैजेट्स और मशीनों के बढ़ते चलन के कारण शारीरिक सक्रियता कम हो गयी है। कामकाजी स्त्रियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। जीवन की आपाधापी ने मानसिक तनाव का स्तर बढ़ा दिया है, इससे उनमें प्रीमेच्योर मेनोपॉज होने लगा है, जिससे एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्तर कम हो जाता है, जो स्त्रियों में हार्ट अटैक के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है। मर्दों में हार्ट अटैक के मुद्दे इसलिए अधिक देखे जाते थे कि उनमें एस्ट्रोजन नहीं होता है, लेकिन मेनोपॉज के कारण अंडाशय काम करना बंद कर देता है और एस्ट्रोजन का निर्माण होना बंद हो जाता है। ऐसे में मेनोपॉज के बाद स्त्रियों और मर्दों में दिल रोगों का खतरा समान होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दिल बीमारी स्त्रियों में मृत्यु का तीसरा सबसे प्रमुख कारण है। हाल में हुए एक सर्वे के अनुसार, हिंदुस्तान में 5 में से 3 शहरी महिलाएं दिल की किसी-न-किसी परेशानी से पीड़ित हैं। 35 से 44 की उम्र वर्ग की स्त्रियों में इसका खतरा तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों की मानें तो पूरी दुनिया में दिल रोगों से मरने वाली स्त्रियों की संख्या मर्दों से अधिक होती है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होती हैं। वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती हैं और रोंगों की चपेट में आने के बाद भी उपचार को लेकर सक्रियता नहीं दिखाती।
कमर दर्द
महिलाओं में कमर दर्द की परेशानी लगातार बढ़ रही है। पहले मेनोपॉज को पहुंच चुकी और उम्रदराज स्त्रियों में यह परेशानी देखी जाती थी, लेकिन अब युवा कामकाजी महिलाएं भी अक्सर कमर दर्द की कम्पलेन करती हैं। ऑफिसों में कई घंटों तक बैठ कर काम करने वाली स्त्रियों को कमर दर्द की परेशानी अधिक परेशान कर सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस, मोटापा, गलत पोस्चर और संतुलित और पोषक भोजन की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त कई महिलाएं सुन्दर और आधुनिक दिखने के लिए हाइ हील के फुटवियर पहनती है। नियमित रूप से उन्हें पहनने से भी कमर दर्द की परेशानी हो जाती है। कुछ महिलाएं कंप्यूटर पर आगे की ओर झुक कर कार्य करती हैं। इससे रीढ़ की हड्डी का अलाइनमेंट बिगड़ जाता है, जिससे कमर के निचले हिस्से और गर्दन में दर्द होता है।
हॉर्मोन असंतुलन
कुछ सालों पहले तक हॉर्मोन असंतुलन को अधिकतम मीनोपॉज से जोड़ कर देखा जाता था, लेकिन आज कई युवा महिलाएं भी हॉर्मोन असंतुलन से परेशान हैं। स्त्रियों में बढ़ते हॉर्मोन असंतुलन के मामलों के प्रमुख कारणों में गलत जीवन शैली, पोषण और व्यायाम की कमी, तनाव का स्तर बढ़ना और बढ़ती उम्र प्रमुख है। फास्ट फूड के सेवन से शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। ऑफिस में कार्य के दौरान कॉफी, चाय, चॉकलेट और सॉफ्ट ड्रिंक आदि का अधिक इस्तेमाल करने के कारण कई स्त्रियों की एड्रीनलीन ग्रंथि अत्यधिक एक्टिव हो जाती है, जो दूसरे हार्मोनों के स्त्राव को प्रभावित करती है। गर्भनिरोधक गोलियां का सेवन भी हार्मोनों के स्त्राव को प्रभावित करता है। हॉर्मोन असंतुलन के कारण समय से पहले उम्र बढ़ने के लक्षण नजर आने से लेकर मासिक धर्म संबंधी गड़बड़ियां, सेक्स के प्रति अनिच्छा, गर्भधारण में परेशानी होना और बांझपन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
एनीमिया
आंकड़ों की मानें तो हमारे राष्ट्र की एक तिहाई महिलाएं एनीमिया की शिकार है। इनमें सिर्फ़ वही महिलाएं शामिल नहीं हैं, जो कुपोषण की शिकार हैं। बड़ी संख्या उन स्त्रियों की भी है, जो कामकाजी हैं और बड़े शहरों में रहती हैं। जीवन की आपाधापी और करियर की दौड़ में आगे रहने की चाहत में ये महिलाएं न तो संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करती हैं, न ही नियमित समय पर खाना खाती हैं। हर महीने होने वाले मासिक चक्र के कारण वैसे ही स्त्रियों में आयरन की कमी होती है, पोषक भोजन का सेवन न करने से यह स्थिति और गंभीर हो जाती है और वे एनीमिया की शिकार हो जाती हैं। एनीमिया के कारण उन्हें थकान और कमजोरी का सामना भी करना पड़ता है। स्त्रियों को यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि वह रोजाना 18 मिलीग्राम आयरन का सेवन नहीं करेंगी तो उनके शरीर को ठीक प्रकार से काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। हमारा शरीर सीमित मात्रा में ही आयरन का अवशोषण कर पाता है, इसलिए आयरन युक्त खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से सेवन करना बहुत महत्वपूर्ण है।