फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ आज सिनेमाघरों में हुई रिलीज,जानिए कैसी है ये फिल्म…
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ आज यानी 28 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यदि आप इस वीकेंड नाना पाटेकर और पल्लवी जोशी की यह फिल्म देखना चाहते हैं तो टिकट बुक करने से पहले आपको यह फिल्म रिव्यू जरूर पढ़ना चाहिए।
अमेरिका में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग
‘द वैक्सीन वॉर’ को हिंदुस्तान में रिलीज करने से पहले विवेक अग्निहोत्री और उनकी टीम ने अमेरिका में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी थी। फिल्म को वहां रहने वाले लोगों को दिखाया गया और उनके द्वारा शेयर किए गए वीडियो में सभी लोग फिल्म देखकर भावुक हो गए। घरेलू दर्शकों के साथ-साथ कई विदेशी दर्शकों ने भी फिल्म को हरी झंडी दी और स्वीकार किया कि ‘भारत यह कर सकता है’। इन सभी वीडियो को देखने के बाद ‘द वैक्सीन वॉर’ देखने की उत्सुकता और भी बढ़ गई। आमतौर पर हम अपने वैज्ञानिकों का सम्मान अपने राष्ट्र की सेना की तरह करते हैं, लेकिन इस फिल्म के बाद उनके प्रति सम्मान और बढ़ गया है।
सच्ची कहानी दिखाने का एक प्रयास
एक्शन, रोमांस और थ्रिलर से भरपूर मसाला फिल्मों के इस दौर में निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ‘द वैक्सीन वॉर’ के जरिए हमें एक सच्ची कहानी दिखाने की प्रयास कर रहे हैं। यह एक ऐसी फिल्म है जो राष्ट्र के वास्तविक नायकों की कड़ी मेहनत और बलिदान की कहानी को दर्शाती है। इस फिल्म में यह दिखाने की निष्ठावान प्रयास की गई है कि कोविड-19 वैक्सीन बनाने वाले बायोमेडिकल वैज्ञानिकों को कोविड-19 के मुश्किल समय में हमारे राष्ट्र को मजबूत रखने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन फिर भी इस फिल्म में की गई चर्चा और विश्लेषण दोनों अधूरे लगते हैं।
कहानी
‘द वैक्सीन वॉर’ की कहानी लॉकडाउन से प्रारम्भ होती है। जहां सड़क पर पुलिस के अतिरिक्त कोई नजर नहीं आता। 1 जनवरी 2020 को जब एक तरफ पूरा राष्ट्र नए वर्ष का उत्सव इंकार रहा था तो दूसरी तरफ आईसीएमआर चीफ बलराम भार्गव (नाना पाटेकर) पूरी तरह सोए हुए थे। वजह ये थी कि कोविड-19 वायरस का पहला रोगी चीन के वुहान में मिला था। इस वायरस के हिंदुस्तान पहुंचने से पहले ही आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने इसे रोकने की तैयारी प्रारम्भ कर दी थी। वायरस के विरुद्ध इस युद्ध की आरंभ से लेकर हिंदुस्तान की अपनी ‘कोवैक्सिन’ के निर्माण तक की प्रेरक यात्रा का वर्णन 12 अध्यायों में किया गया है।
भारत यह कर सकता है
फिल्म में दिखाया गया है कि जब बलराम भार्गव डाॅ। प्रिया अब्राहम, डॉ। जहां निवेदिता जैसे 70 फीसदी सुपरहीरो स्त्री वैज्ञानिकों के साथ मिलकर वैक्सीन बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे और अपने राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने की प्रयास कर रहे थे, वहीं कुछ लोग इस मिशन के विरुद्ध थे। मैं सोशल मीडिया पर बहुत सारी चीजें पोस्ट करता था। ये पोस्ट दिखा रहे थे कि ‘भारत वैक्सीन नहीं बना पाएगा। लेकिन इस फिल्म में आईसीएमआर चीफ बलराम भार्गव की किरदार में नाना पाटेकर ने अपने इण्डिया कैन डू इट डायलॉग से साबित कर दिया कि यदि हिंदुस्तान के लोग कुछ करने की ठान लें तो उसे जरूर कर सकते हैं।
जानिए कैसी है ये फिल्म
‘द वैक्सीन वॉर’ एक अच्छी फिल्म है, लेकिन इसका पहला भाग बहुत उबाऊ है। को-वैक्सीन का मीडिया और सेलिब्रिटीज ने किस तरह विरोध किया, इस पर बात करते समय मेकर्स ये बात पूरी तरह से भूल गए कि चंद मीडिया हाउस के अतिरिक्त अनेक मीडिया और उनके साथ प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन से लेकर कंगना रनौत तक कई स्टार्स ने भी इसकी प्रशंसा की है।
निर्देशन एवं लेखन
‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्म करने के बाद विवेक अग्निहोत्री से काफी उम्मीदें थीं। फिल्म के प्रमोशन के दौरान डायरेक्टर ने दावा किया कि पूरी कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। लेकिन कहानी का कथानक कई स्थान हकीकत से मेल नहीं खाता। चाहे वह ‘नौकरानी’ हो जो मैडम रिपोर्टर को बताती है कि इटली में क्या चल रहा है या वह रिपोर्टर (राइमा सेन) जो किसी एजेंसी के पास जाने के बजाय घर बैठकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को कोविड-19 महामारी की फोटोज़ बेचती है। ‘कोवैक्सिन’ के निर्माण की कहानी प्रेरणादायक है, लेकिन इसके विरोध की कहानी बहुत प्रभावशाली नहीं है। यही वजह है कि बेहतरीन अभिनय और अच्छी कहानी के बावजूद इसका पूरा लुत्फ नहीं उठाया जा सका।
अभिनय
नाना पाटेकर ने आईसीएमआर प्रमुख बलराम भार्गव की किरदार बिना देखे ही बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाई है। इस फिल्म में नाना एक ऐसे मुखिया बने हैं जो कभी अपने इर्द-गिर्द के लोगों से प्यार से बात नहीं करते और कभी उनके काम की प्रशंसा नहीं करते। फिल्म में पल्लवी जोशी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की निदेशक वायरोलॉजिस्ट प्रिया अब्राहम की किरदार निभा रही हैं। उनका भूमिका बहुत दमदार है और उनके कुछ डायलॉग्स बेहतरीन हैं। यदि हम रॉकेट की पूंछ में आग लगाकर उसे आकाश में नहीं भेजेंगे तो आपको पता भी नहीं चलेगा कि हमने क्या किया है। इस डायलॉग पर सिनेमाघर तालियां बजा रहा है। फिल्म में गिरजा ओक और सप्तमी गौड़ा ने भी अच्छा एक्टिंग किया।
संपादन और संगीत
एडिटिंग टेबल पर फिल्म को और बेहतर बनाया जा सकता था। ‘द कश्मीर फाइल’ का संपादन काफी क्रिस्प था, लेकिन ‘द वैक्सीन वॉर’ बोर करता है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कमाल का है, जो सीधे दिल को छू जाता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और बेहतर हो सकती थी।
फिल्म देखें या न देखें
हमारे राष्ट्र की पहली वैक्सीन बनाने की प्रेरक यात्रा को जानने के लिए आप ‘द वैक्सीन वॉर’ जरूर देख सकते हैं। लेकिन इसे सच्ची कहानी नहीं बताया जा सकता। कोवैक्सिन की प्रशंसा करते हुए कोविशील्ड का जिक्र केवल एक लाइन तक ही सीमित रह गया है। फिल्म आपको सिक्के का एक पहलू दिखाती है, ये नहीं दिखाती कि फिल्म में जिस मीडिया को निशाना बनाया जा रहा था, उसने डॉक्टरों से लेकर वैज्ञानिकों तक को ‘कोरोना वॉरियर्स’ की उपाधि से सम्मानित किया है। अगर आपको आधा सच जानने में दिलचस्पी नहीं है तो आप ये फिल्म छोड़ सकते हैं।